महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 32 श्लोक 1-10

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द्वात्रिंश (32) अध्याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: द्वात्रिंश अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुनद्वारा कौरवों के लिये संदेश देना, संजय का हस्तिनापुर जा घृतराष्‍ट्र से मिलकर उन्‍हें युधिष्ठिर-का कुशल समाचार कहकर धृतराष्‍ट्र के कार्य की निंदा करना

वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय! धर्मराज युधिष्ठिर की बात सुनकर कुंतीपुत्र अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्‍ण के सुनते हुए वहां संजय से इस प्रकार कहा। अर्जुन बोले-संजय! शांतनुनंदन पितामह भीष्‍म, धृतराष्‍ट्र, पुत्रसहित द्रोणाचार्य, महाराज शल्‍य, बाह्लीक, विकर्ण, सोमदत्‍त, सुबलपुत्र शकुनि, विविंशति, चित्रसेन, जयत्‍सेन तथा योद्धाओं में श्रेष्‍ठ शूरवीर भगदत्‍त-इन सबसे और दूसरे भी जो कौरव वहां रहते हैं, युद्ध की इच्‍छा से जो-जो राजा वहां एकत्र हुए हैं तथा दुर्योधन ने जिन-जिन भूमिपालों और सिंधु-देशीय वीरो को बुला रक्‍खा है, उन सबसे भी यथोचित रीति से मिलकर मेरी ओर से कुशल ओर अभिवादन कहना। तत्‍पश्र्चात् राजाओं की मण्‍डली में पापियों के सिरमौर दुर्योधन को मेरा संदेश सुना देना। वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय! इस प्रकार कुंती-पुत्र धनंजयने संजय को जाने की अनुमति देकर अर्थ और अधर्म से युक्‍त बात कही, जो स्‍वजनों को हर्ष देने वाली तथा घृतराष्‍ट्र के पुत्रों को भयभीत करने वाली थी।। अर्जुनके इस प्रकार आदेश देनेपर संजय ने ‘तथास्‍तु‘ कहकर उसे शिरोधार्य किया। तत्‍पश्र्चात् उसने अन्‍य कुंती-कुमारों तथा यशस्‍वी भगवान् श्रीकृष्‍ण से जाने की अनुमति मांगी। पाण्‍डुनंदन युधिष्ठिर की आज्ञा पाकर संजय महामना राजा धृतराष्‍ट्र के सम्‍पूर्ण आदेशों का पालन करके उस समय वहां से प्रस्थित हुए । हस्तिनापुर पहुंचकर उन्‍होंने शीघ्र ही राजभवन में प्रवेश किया और अन्‍त:पुर के निकट जाकर द्वारपाल से कहा-। ‘द्वारपाल! तुम राजा घृतराष्‍ट्र को मेरे आने की सूचना दो ओर कहो-‘पाण्‍डवों के पास से संजय आया है।‘ विलम्‍ब न करो। ‘द्वारपाल! यदि महाराज जागते हो तो तुम उन्‍हें मेरा प्रणाम कहना। उनकी सूचना मिल जाने पर मैं भीतर प्रवेश करूंगा। मुझे उनसे एक आवश्‍यक निवेदन करना है।‘ यह सुनकर द्वारपाल महाराज के पास गया और इस प्रकार बोला।

द्वारपाल ने कहा-महाराज! आपको नमस्‍कार है। पाण्‍डवों के पास से लौटे हुए दूत संजय आपके दर्शन की इच्‍छा से द्वारपर खड़े है। राजन्! आज्ञा दीजिये, ये संजय क्‍या करें? ।।५।। धृतराष्‍ट्र ने कहा-द्वारपाल! संजय का स्‍वागत है। उसे कहो कि मैं सकुशल हूं, अत: इस समय उससे भेंट करने को तैयार हूं। उसे भीतर ले आओ। उससे मिलने में मुझे कभी भी अड़चन नहीं होती। फिर वह दरवाजे पर सटकर क्‍यों खड़ा है?

वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय! इस प्रकार राजा की आज्ञा पाकर सूतपुत्र संजय ने बुद्धिमान्, शूरवीर तथा श्रेष्‍ठ पुरूषों से सुरक्षित विशाल राजभवन में प्रवेश किया और सिंहासन पर बैठे हुए विचित्रवीर्यनंदन महाराज धृतराष्‍ट्र के पास जा हाथ जोड़कर कहा।

संजय बोला-‘भूपाल! आपको नमस्‍कार है। नरदेव! मैं संजय हूं और पाण्‍डवों के पास जाकर लौटा हूं। उदाचित्‍त पाण्‍डुपुत्रयुधिष्ठिर ने आपको प्रणाम करके आपकी कुशल पूछी । उन्‍होने बड़ी प्रसन्‍नता के साथ आपके पुत्रों का समाचार पूछा है। राजन्! आप अपने पुत्रों, नातियों, सुहृदों, मन्त्रियों तथा जो आपके आश्रित रहकर जीवननिर्वाह करते हैं, उन सबके साथ आनन्‍दपूर्वक हैं न? सहामात्‍य: ने कहा-तात संजय! मैं तुम्‍हारा स्‍वागत करके पूछता हूं कि कुंतीनंदन अजातशत्रु युधिष्ठिर सुख से हैं न? क्‍या कौरवों के राजा युधिष्ठिर अपने पुत्र, मंत्री तथा छोटे भाइयोंसहित सकुशल हैं?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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