महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 36 श्लोक 14-29

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:३२, १७ अगस्त २०१५ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

षट्-त्रिंश (36) अध्याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: षट्-त्रिंश अध्याय: श्लोक 14-29 का हिन्दी अनुवाद

मनुष्‍य जिन-जिन विषयों से मन को हटाता जाता है, उन-उनसे उसकी मुक्ति होती जाती है; इस प्रकार यदि सब ओर से निवृत्ति हो जाय तो उसे लेशमात्र दु:ख का भी कभी अनुभव नहीं होता। जो न तो स्‍वयं किसी से जीता जाता, न दूसरों को जीतने-की इच्‍छा करता है, न किसी के साथ वेर करता और नदूसरों को चोट पहुंचाना चा‍हता है, जो निंदा ओर प्रशंसा में समानभाव रखता है, वह हर्ष-शोक से परे हो जाता है। जो सबका कल्‍याण चाहता है, किसी के अकल्‍याणकी बात मन में भी नहीं लाता, जो सत्‍यवादी, कोमल ओर जितेन्द्रिय है, वह उत्‍तम पुरूष माना गया है। जो झूठी सान्‍त्‍वना नहीं देता, देनेकी प्रतिज्ञा करके दे ही देता है, दूसरों के दोषों को जानता है, वह मध्‍यम श्रेणी का पुरूष । जिसका शासन अत्‍यंत कठोर हो, जो अनेक दोषोंसे दूषित हो, कलिङ्कत हो, जो क्रोधवश किसी की बुराई करने से नहीं हटता हो, दूसरों के किये हुए उपकार को नहीं मानता हो, जिसकी किसी के साथ मित्रता नहीं हो तथा जो दुरात्‍मा हो-ये अधम पुरूष के भेद हैं। जो अपने ही ऊपर संदेह होने के कारण दूसरों से भी कल्‍याण होनेका विश्‍वास नहीं करता,मित्रों को भी दूर रखता है, वह अवश्‍य ही अधम पुरूष है। जो अपनी ऐश्र्वर्य वृद्धि चाहता है, वह उत्‍तम पुरूषों की ही सेवा करे, समय आ पड़ने पर मध्‍यम पुरूषों की भी सेवा कर ले, परंतु अधम पुरूषों की सेवा कदापि न करे। मनुष्‍य दुष्‍टों पुरूषों के बल से, निरन्तर के उद्योग से, बुद्धि से तथा पुरूषार्थ से धन भले ही प्राप्त कर ले; परंतु इससे उत्तम कुलीन पुरूषों के सम्मान और सदाचार को वह पूर्णरूप से कदापि नहीं प्राप्त कर सकता।

धृतराष्‍ट्र ने कहा- विदुर! धर्म और अ‍र्थ के अनुष्‍ठान में परायण एवं बहुश्रूत देवता भी उत्तम कुल में उत्पन्न पूरूषों की इच्छा करते हैं। इसि‍लये मैं तुमसे यह प्रश्‍न करता हूं कि महान् (उत्तम) कुलीन कौन हैं?

विदुरजी बोले- राजन्! जिनमें तप, इन्द्रिय संयम, वेदों का स्वाध्‍याय, यज्ञ, पवित्र विवाह, सदा अन्नदान और सदाचार- ये सात गुण वर्तमान हैं, उन्हें महान् (उत्तम) कुलीन कहते हैं। जिनका सदाचार शिथिल नहीं होता, जो अपने दोषों से माता-पिता को कष्‍ट नहीं पहुंचाते, प्रसन्न चित्त से धर्म का आचरण करते हैं त‍था असत्य का परित्याग कर अपने कुल की विशेष कीर्ति चाहते हैं, वे ही महान् कुलीन हैं। यज्ञ न होने से, निन्दित कुल में विवाह करने से, वेद का त्याग और धर्म का उल्लघंन करने से उत्तम कुल भी अधम हो जाते हैं। देवताओं के धन का नाश, ब्राह्मण के धन का अपहरण और ब्राह्मणों की मर्यादा का उल्लघंन करने से उत्तम कुल भी अधम हो जाते हैं। भारत! ब्राह्मणों के अनादर और निन्दा से तथा धरोहर रक्खी हुई वस्तु को छिपा लेने से अच्छे कुल भी निन्दनीय हो जाते हैं। गौओं, मनुष्‍यों और धन से सम्पन्न होकर भी जो कुल सदाचार से हीन हैं, वे अच्छे कुलों की गणना में नहीं आ सकते। थोडे़ धन वाले कुल भी यदि सदाचार से सम्पन्न हैं तो वे अच्छे कुलों की गणना में आ जाते हैं और महान् यश प्राप्त करते हैं।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।