महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 57 श्लोक 21-41

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सप्तपञ्चाशत्तम (57) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: सप्तपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 21-41 का हिन्दी अनुवाद

चेकितान द्वैरथ-संग्राम में सोतदत्त के साथ युद्ध करना चाहते हैं। सात्यकि भोजवंशी कृतवर्मा के साथ युद्ध करने को उत्सुक हैं। महाराज! युद्ध में इन्द्र के समान पराक्रमी शूरवीर माद्रीनन्दन सहदेव ने आपके साले सुबलपुत्र शकुनि को अपना भाग निश्चित किया हैं। उस धूर्त जुआरी शकुनि का पुत्र जो उलूक है तथा जो सारस्वतप्रदेश के सैनिक हैं, उन सबको माद्रीकुमार नकुल ने अपना भाग नियत किया हैं। राजन्! दूसरे भी जो-जो नरेश (आपकी ओर से) युद्ध में पदार्पण करेंगे, उन सबका भी नाम ले-लेकर पाण्‍डवों ने उन्हें अपना भाग निश्चित किया हैं। इस प्रकार पाण्‍डवों की सेनाएं पृथक्-पृथक् भागों में बंटी हुई हैं। अब पुत्रों सहित आपका जो कर्तव्य हो, उसे अविलम्ब पूरा करें।

धृतराष्‍ट्र बोले- संजय! समरभुमि के प्रमुख भाग में बलवान् भीमसेन के साथ जिनका युद्ध होने वाला हैं, वे कपटपूर्ण जूआ खेलने वाले मेरे सभी मूर्ख पुत्र अब नहीं के बराबर हैं। भूमण्‍डल के समस्त राजाओं का वध करने के लिये मानों कालधर्मा यमराज ने उनका प्रोक्षण (संस्कार) किया हैं; अत: जैसे पतंग आग में गिरते हैं, वैसे ही ये सब नरेश गाण्‍डीव धनुष की आग में समा जायंगे। मैं तो समझता हूं; जिनका हम लोगों के साथ वैर ठन गया हैं, वे महात्मा पाण्‍डव समराङ्गण में हमारी विशाल सेना को अवश्‍य मार भगायेंगे। उनके द्वारा खदेड़ी हुई उस सेना का अनुसरण अथवा सहयोग कौन कर सकेंगे? समस्त पाण्‍डव अतिरथी शूरवीर, यशस्वी, प्रतापी, युद्धविजयी तथा अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी हैं। संजय! युधिष्ठिर जिनके नेता हैं, भगवान् मधुसूदन जिनके रक्षक हैं, पाण्‍डुपुत्र वीरवर अर्जुन और भीमसेन जिनके प्रमुख योद्धा हैं, नकुल, सहदेव, पृषत्वंशी धृष्‍टद्यूम्न, सात्यकि, द्रुपद, धृष्‍टकेतु, सुकेतु, पाञ्चालदेशीय उत्तमौजा, दुर्जय युधामन्यु, शिखण्‍डी, क्षत्रदेव, विराटकुमार उत्तर, काशि, चेदि तथा मत्स्यदेश के सैनिक, सृंजयवंशी क्षत्रिय, विराटकुमार बभ्रु तथा पाञ्चालदेशीय प्रभद्रकगण जिनके पक्ष में युद्ध के लिये उद्यत हैं, जिनकी इच्छा के बिना देवराज इन्द्र भी इस पृथ्‍वी का अपहरण नहीं कर सकते, जो वीर तथा रणधीर हैं, जो पर्वतों को भी विदीर्ण कर सकते हैं, जिनका प्रताप देवताओं के समान है तथा जो समस्त सद्गुणों से सम्पन्न हैं, उन्हीं पाण्‍डवों के साथ मेरा दुष्‍ट पुत्र दुर्योधन मेरे चीखते-चिल्लाते हुए भी युद्ध करना चाहता है ।

दुर्योधन बोला- पिताजी! हम कौरव तथा पाण्‍डव दोनों एक ही जाति के हैं और दोनों इसी भूमि पर रहते हैं। फिर एकमात्र पाण्‍डवों की ही विजय होगी, यह धारणा आपने कैसे बना ली? तात! पितामह भीष्‍म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, दुर्जय वीर कर्ण, जयद्रथ, सोमदत्त तथा अश्‍वत्थामा, ये सभी उत्तम तेजस्वी और महान् धनुर्धर हैं। देवताओं सहित इन्द्र भी इन्हें युद्ध में जीत नहीं सकते; फिर पाण्‍डवों की तो बात ही क्या है? तात! ये सभी भूपाल श्रेष्‍ठ, शस्त्रधारी और शूरवीर होने के साथ ही मेरे लिये पाण्‍डवों को पीड़ा देने में समर्थ हैं। पाण्‍डव मेरे पक्ष के इन वीरों की ओर आंख उठाकर देखने में भी स‍मर्थ नहीं है। पुत्रों सहित पाण्‍डवों के साथ मैं अकेला ही समराङ्गण में युद्ध करने की शक्ति रखता हूं। भरतनन्दन! जो भूपाल मेरा प्रिय करना चाहते हैं, वे सब उन पाण्‍डवों को आगे बढ़ने से उसी प्रकार रोक देंगे, जैसे फन्दे से हिरन के बच्चों को रोका जाता हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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