महाभारत वन पर्व अध्याय 172 श्लोक 1-23

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द्विसप्तत्यधिकशततम (172) अध्‍याय: वन पर्व (निवातकवचयुद्ध पर्व)

महाभारत: वन पर्व: द्विसप्तत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद

निवातकवचोंका संहार

अर्जुन बोले-राजन्! इस प्रकार अदृश्य रहकर ही वे दैत्य मायाद्वारा युद्ध करने लगे तथा मैं भी अपने अस्त्रोंकी अदृश्य शक्तिके द्वारा ही उनका सामना करने लगा। मेरे गाण्डीव धनुषसे छूटे हुए बाण विधिवत् प्रयक्त दिव्यास्त्रोंसे प्रेरित हो जहां-जहां वे दैत्य थे, वहीं जाकर उनके सिर काटने लगे। जब मैं इस प्रकार युद्धक्षेत्रमें उनका संहार करने लगा, तब वे निवातकवच दानव अपनी मायाको समेटकर सहसा नगरमें घुस गये। दैत्योंके भाग जानेसे वहां सब कुछ स्पष्ट दिखायी देने लगा, तब मैंने देखा, लाखो-दानव वहां मरे पड़े थे। उनके अस्त्र-शस्त्र और आभूषण भी पिसकर चूर्ण हो गये थे। दानवोंके शरीरों और कवचोंके सौ-सौ टुकड़े दिखायी देते थे। वहां दैत्योंकी इतनी लाशें पड़ी थीं। कि घोड़ोंके लिये एकके बाद दूसरा और पैर रखनेके लिये कोई स्थान नहीं रह गया था। अतः वे अन्तरिक्षचारी अश्व वहांसे सहसा उछलकर आकाशमें खडे हो गये। तदनन्तर निवातकवचोंने अदृश्यरूपसे ही आक्रमण किया ओर केवल आकाशको आच्छादित करके पत्थरोंकी वर्षा आरम्भ कर दी। भरतनन्दन! कुछ भयंकर दानवोंने, जो पृथ्वीके भीतर घुसे हुए थे, मेरे घोड़ोके पैर तथा रथके पहिये पकड़ लिये। इस प्रकार युद्ध करते समय मेरे हरे रंगके घोड़ो तथा रथको पकड़कर उन दानवोंने रथसहित मेरे उपर सब ओरसे शिला-खण्ड़ोद्वारा उन प्रहार आरम्भ किया। नीचे पर्वतोंके ढेर लग रहे थे और उपरसे नयी-नयी चटटानें पड़ रही थी। इससे वह प्रदेश जहां हमलोग मौजूद थे, एक गुफाके समान बन गया। एक ओर तो मैं शिला-खण्ड़ोंसे आच्छादित हो रहा था, दूसरी ओर मेरे घोड़े पकड़ लिये जानेसे रथकी गति कुण्ठित हो गयी थी। इस विवशताकी दशामें मुझे बड़ी पीड़ा होने लगी, जिसे मातलिने जान लिया। इस प्रकार मुझे भयभीत हुआ देख मातलिने कहा- 'अर्जुन! अर्जुन! तुम डरो मत। इस समय वज्राशास्त्रका प्रयोग करो'। महाराज! मातलिको वह वचन सुनकर मैंने देवराजके परम प्रिय तथा भयंकर अस्त्र वज्रका प्रयोग किया। अविचल स्थानका आश्रय ले गाण्डीव धनुषको वज्रास्त्रसे अभिमंत्रित करके मैंने लोहेके तीखे बाण छोड़े, जिनका स्पर्श वज्रके समान कठोर था। तदनन्तर वज्रास्त्रसे प्रेरित हुए वे वज्रस्वरूपबाण पूर्वोक्त सारी मायाओं तथा निवातकवच दानवोंके भीतर घुस गये। फिर तो वज्रके मारे गये वे पर्वताकार दानव एक दूसरेका आलिंगन करते हुए धराशायी हो गये। पृथ्वीके भीतर घुसकर जिन दानवोंने मेरे रथके घोड़ोंको पकड़ रखा था, उनके शरीरमें भी घुसकर मेरे बाणोंने उन सबको यमलोक भेज दिया। वहां मरकर गिरे हुए पर्वताकार निवातकवच इधर उधर बिखरे हुए पर्वतोंके समान जान पड़ते थे। वहांका सारा प्रदेश उनकी लाशोंके पट गया था। उस समयके युद्धमें न तो घोड़ोको कोई हानि पहुंची, न रथका ही कोई सामान टूटा, न मातलिको हीचोट लगी और न मेरे ही शरीरमें कोई आघात दिखायी दिया, यह एक अद्भुत-सी बात थी। तब मातलिने हंसते हुए मुझसे कहा-'अर्जुन! तुममें जो पराक्रम दिखायी देता है, वह देवताओंमें भी नहीं है'। उन असुरसमूहोंके मारे जानेपर उनकी सारी स्त्रियां उस नगरमें जोर-जोरसे करूण-क्रन्दन करने लगीं, मानो शरत्कालमें सारस पक्षी बोल रहे हो। तब मैं मातलिके साथ रथकी घर्घराहटसे निवातकवचोंकी स्त्रियोंको भयभीत करता हुआ उस दैत्य-नगरमें गया। मोरके समान सुन्दर उन दस हजार घोड़ोंको तथा सूर्यके समान तेजस्वी उस दिव्य रथको देखते ही झुंड़की झुंड दानव-स्त्रियां इधन-उधर भाग चलीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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