महाभारत वन पर्व अध्याय 178 श्लोक 25-33

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अष्टसप्तत्यधिकशततम (178) अध्‍याय: वन पर्व (अजगर पर्व)

महाभारत: वन पर्व: अष्टसप्तत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 25-33 का हिन्दी अनुवाद

उसका शरीर पर्वतके समान विशाल था। वह महाकाय होनेके साथ ही अत्यन्त बलवान् भी था। उसका प्रत्येक अंग शारीरिक विचित्र चिह्नोंसे चिहित होनेके कारण विचित्र दिखायी देता था। उसका रंग हल्दीके सामन पीला था। प्रकाशमान चारों दाढ़ों से युक्त उसका मुख गुफा सा जान पड़ता था। उसकी आंखें अत्यन्त लाल और आग उगलती सी प्रतीत होती थी। वह बार-बार अपने दोनों गलफरोंको चाट रहा था। कालान्तक वह तथायमके समान समस्त प्राणियोंको भयभीत करनेवाला तथा यमने वह भयानक भुजंग अपने उच्छ्वास और सिंहनादसे दूसरोंकी भत्र्सना करता सा प्रतीत होता था। वह अजगर अत्यन्त क्रोधसे भरा हुआ था। ( मनुष्योंको ) जकड़नेवाले उसे सर्पने सहसा भीमसेनके निकट पहुंचकर उनकी दोनों बांहोंको बलपूर्वक जकड़ लिया। उस समय भीमसेनके शरीरके उससे स्पर्श होते ही वे भीमसेन सहसा अचेत हो गये। ऐसा इसीलिये हुआ कि उस सर्पको वैसा ही वरदान मिला था। दस हजार गजराज जितना बल धारण करते हैं, उतना ही बल भीमसेनकी भुजाओंमें विद्यमान था। उनके बलकी ओर कहीं समता नहीं थी। ऐसे तेजस्वी भीम भी उस अजगरके वशमें पड़ गये। वे धीरे-धीरे छटपटाते रहे, परंतु छूटनेकी अधिक चेष्टा करनेमें सफल न हो सके।उनकी प्राणशक्ति दस सहस्त्र हाथियोंके समान थी। दोनों कंधे सिंहके कंधोंके समान थे और भुजाएं बहुत बड़ी थीं। फिर भी सर्पको मिले हुए वरदानके प्रभावसे मोहित हो जानेके कारण सर्पकी पकड़में आकर वे अपना साहस खो बैठे। उन्होंने अपनेको छुड़ानेके लिये घोर प्रयत्न किया, किंतु वीरवर भीमसेन किसी प्रकार भी उस सर्पको पराजित करनेमें सफलता नहीं प्राप्त कर सके।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत आजगरपर्वमें भीमसेनका अजगरद्वारा ग्रहणसम्बन्धी एक सौ अठहतरवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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