महाभारत शल्य पर्व अध्याय 59 श्लोक 1-16

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एकोनषष्टितम (59) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन के द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार एवं युधिष्ठिर का भीमसेन को समझाकर अन्याय से रोकना और दुर्योधन को सान्‍त्‍वना देते हुए खेद प्रकट करना संजय कहते हैं- राजन दुर्योधन को ऊंचे एवं विशाल शालवृक्ष के समान गिराया गया देख समस्त पाण्डव मन-ही-मन बडे़ प्रसन्न हुए और निकट जाकर उसे देखने लगे । समस्त सोमकों ने भी सिंह के द्वारा गिराये गये मदमत गजराज के समान जब दुर्योधन को धराशायी हुआ देखा तो हर्ष से उनके अंगों में रोमांच हो आया । इस प्रकार दुर्योधन का वध करके प्रतापी भीमसेन उस गिराये गये कौरवराज के पास जाकर बोले । खोटी बुद्धि वाले मूर्ख तूने पहले मुझे बैल, बैल कहकर और एक वस्‍त्रधारिणी रजस्वला द्रौपदी को सभा में लाकर जो हम लोगों का उपहास किया था तथा हम सबके प्रति कटुवचन सुनाये थे उस उपहास का फल आज तू प्राप्‍त कर ले । ऐसा कहकर भीमसेन ने अपने बायें पैर से उसके मुकुट को ठुकराया और एस राजसिंह के मस्तक पर भी पैर से ठोकर मारा । नरेश्वर इसी प्रकार शत्रु सेना का संहार करने वाले भीमसेन ने क्रोध से लाल आंखें करके फिर जो बात कही उसे भी सुन लीजिये । जिन मूर्खों ने पहले हमें बैल बैल कहकर नृत्य किया था आज उन्हें बैल-बैल कहकर उस अपमान का बदला लेते हुए हम भी प्रसन्नता से नाच रहे हैं । छल-कपट करना घर में आग लगाना जूआ खेलना अथवा ठगी करना हमारा काम नहीं है हम तो अपने बाहुबल का भरोसा करके शत्रुओं को संताप देते हैं । इस प्रकार भारी वैर से पार होकर भीमसेन धीरे-धीरे हंसते हुए युधिष्ठिर श्रीकृष्णे संजयगण अर्जुन तथा माद्रीकुमार नकुल- सहदेव से बोले- । जिन लोगों ने रजस्‍वला द्रौपदी को सभा में बुलाया जिन्होंने उसे भरी सभा में नंगी करने का प्रयत्न किया उन्हीं धृतराष्ट पुत्रों को द्रौपदी की तपस्या से पाण्डवों ने रणभूमि में मार गिराया यह सब लोग देख लो। राजा धृतराष्ट्र के जिन क्रूर पुत्रों ने पहले हमें थोथे तिलों के समान नपुंसक कहा था वे अपने सेवकों और संबंधियों सहित हमारे हाथ से मार डाले गए अब हम भले ही स्वर्ग में जायें या नरक में गिरें इसकी चिन्ता नहीं है । यों कहकर भीमसेन ने पृथ्वी पर पडे़ हुए राजा दुर्योधन के कंधें से लगी हुई उसकी गदा ले ली और बायें पैर से उसका सिर कुचलकर उसे छलिया और कपटी कहा । राजन क्षुद्र बुद्धि वाले भीमसेन हर्ष में भरकर जो कुरूश्रेष्ठ राजा दुर्योधन के मस्तक पर पैर रखा उनके इस कार्य को देखकर सोमकों मे जो श्रेष्ठ एवं धर्मात्मा पुरूष थे वे प्रसन्न नहीं हुए और न उन्होंने उनके इस कुकृत्ये का अभिनन्‍दन ही किया । आपके पुत्र को मारकर बहुत बढ़-बढ़कर बातें बनाते और बारंबार नाचते-कूदते हुए भीमसेन से धर्मराज युधिष्ठिर ने इसक प्रकार कहा- । भीम। तुम वैरसे उऋण हुए । तुमने शुभ या अशुभ कर्म से अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली। अब तो इस कार्य से बिरत हो जाओ । तुम इसके मस्‍तक को पैर से न ठुकराओ। तुम्‍हारे द्वारा धर्म का उल्‍लंघन नहीं होना चाहिए। अनघ। दुर्योधन राजा और हमारा भाई-बन्‍धु हैय यह मार डाला गयाए अब तुम्‍हें इसके साथ ऐसा बर्ताव करना उचित नहीं है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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