महाभारत वन पर्व अध्याय 184 श्लोक 1-18

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चतुरशीत्यधिकशततम (184) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)

महाभारत: वन पर्व: चतुरशीत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

तपस्वी तथा स्वधर्मपरायण ब्राह्मणोंका माहात्म्य

वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय! उस समय पाण्डुपुत्रोंने महात्मा मार्कण्डेयजीसे कहा-'मुने! हम श्रेष्ठ ब्राह्मणोंका माहात्म्य सुनना चाहते हैं, आप उसका वर्णन कीजिये'। उनके ऐसा कहनेपर महातपस्वी, महान् तेजस्वी और सम्पूर्ण शास्त्रोंके निपुण विद्वान् भगवान् मार्कण्डेयने इस प्रकार कहा। मार्कण्डेयजी बोले-हैंहयवंशी क्षत्रियोंकी वंशपरम्पराको बढ़ानेवाला राजा परपुंजय, जो अभी कुमारावस्थामें था, बड़ा ही सुन्दर और बलवान् था, एक दिन वनमें हिंसक पशुओंको मारनेकेलिये गया। तृण और लताओंसे भरे हुए उस वनमें घूमते-घूमते उस राजकुमारने एक मुनिको देखा, जो काले हिंसक-पशुके चर्मकी ओढ़नी ओढ़े थोड़ी ही दूरपर बैठे थे। राजकुमारने उन्हें हिंसक पशु ही समझा और उस वनमें अपने बाणोंसे उन्हें मार डाला। अज्ञानवश यह पापकर्म करके वह राजकुमार व्यथित हो शोकसे मूच्र्छित हो गया। तत्पश्चात् होशमें आकर वह सुविख्यात हैंहयवंशी राजाओंके पास गया। वहां पृथ्वीका पालन करनेवाले उस कमलनयन राजकुमारने उन सबके सामने इस दुर्घटनाका यथावत् समाचार कहा। तात! फल-मूलका आहार करनेवाले एक मुनिकी हिंसा हो गयी, यह सुनकर और देखकर वे सभी क्षत्रिय मन-ही-मन बहुत दुखी हुए। फिर वे सब-के-सब जहां-तहां यह पता लगाते हुए कि ये मुनि किसके पुत्र हैं, शीघ्र ही कश्यप-नन्दन अरिष्टनेमिके आश्रमपर गये। वहां नियमपूर्वक उत्तम व्रतका पालन करनेवाले उन महात्मा मुनिको प्रणाम करके वे सब खड़े हो गये ।तब मुनिने उनके लिये अर्थ अध्र्य आदि पूजन-सामग्री अर्पित की। यह देखकर उन्होंने उन महात्मासे कहा-'मुने! हम अपने दूषित कर्मके कारण आपसे सत्कार पानेयोग्य नहीं रह गये हैं। हमसे एक ब्राह्मणकीहत्या हो गयी हैं। यह सुनकर उन ब्रह्र्षिने कहा-'आपलोगोंसे ब्राह्मणोंकी हत्या कैसे हुई ? और वह मेरा हुआ ब्राह्मण कहां हैं ? बताइये। फिर सब लोग एक साथ मेरी तपस्याका बल देखियेगा'। उनके इस प्रकार पूछनेपर क्षत्रियोंने मुनिके वधका सारा समाचार उनसे ठीक-ठीक कह सुनाया और उन्हें साथ लेकर सभी उस स्थानपर आये, जहां मुनिकी हत्या हुई थी। किंतु उन्होंने वहां मरे हुए मुनिकी लाश नहीं देखी। फिर तो वे लज्जित होकर इधर-उधर उसकी खोज करने लगे। स्वर्गकी भांति उनकी चेतना लुप्तसी हो गयी ।तब मुनिवर अरिष्टनेमिने उनसे कहा-'परपुरंजय! तुम लोगोंने जिसे मार डाला था, वह यही ब्राह्मण तो नहीं हैं ? राजाओ! यह मेरा तपोबलसम्पन्न पुत्र हैं'। राजन्! उन महर्षिको जीवित हुआ देख वे सभी क्षत्रिय बड़े विस्मित हुए और कहने लगे यह तो बड़े आश्चर्यकी बात हैं। 'मेरे हुए मुनि यहां कैसे लाये गये और किस प्रकार इन्हें जीवन मिला ? क्या यह तपस्याकी ही शक्ति हैं, जिससे फिर ये जीवित हो गये ? 'ब्राह्मन्! हम यह सब रहस्य सुनना चाहते हैं। यदि सुनने योग्य हो तो कहिये'। तब महर्षिने उन क्षत्रियों से कहा-'राजाओ! हम लोगोंपर मृत्युका वश नहीं चलता। 'इसका क्या कारण हैं ? यह मै तर्क और युक्तिके साथ संक्षेपसे बता रहा हूं। श्रेष्ठ नृपतिगण्! हमलोगोपर मृत्युका प्रभाव क्यों नही पड़ता-यह बताते हैं, सुनिये-हम शुद्ध आचार विचारते रहते हैं। आलस्यसे रहित हैं, प्रतिदिन संध्योपासनके परायण रहते हैं, शुद्ध अन्न खाते हैं और शुद्ध रीतिसे न्यायपूर्वकम धनोपार्जन करते हैं; यही हमलोग सदा ब्रहमचर्यव्रतके पालनमें लगे रहते हैं। हम लोग केवल सत्यको ही जानते हैं। कभी झूठमें मन नहीं लगाते और सदा अपने धर्मका पालन करते रहते हैं। इसलिये हमें मृत्युसे भय नहीं हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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