महाभारत वन पर्व अध्याय 184 श्लोक 19-23

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चतुरशीत्यधिकशततम (183) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)

महाभारत: वन पर्व: चतुरशीत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 19-23 का हिन्दी अनुवाद

'ब्राह्मणके जो शुभ कर्म हैं, उन्हींकी हम चर्चा करते हैं। उनक दोषोंका बखान नहीं करते हैं। इसलिये हमें मृत्युसे समय नहीं हैं। हम अतिथियोंको अन्न और जलसे तृप्त करते हैं। हमारे उपर जिनके भरण पोषण का भार हैं, उन्हें हम पूरा भोजन देते हैं उन्हें भोजन करानेसे बचा हुआ अन्न हम स्वयं भोजन करते हैं, अतः हमें मृत्युसे भय नहीं हैं। 'हम सदा शम, दम, क्षमा, तीर्थ-सेवन और दानमें तत्पर रहनेवाले हैं तथा पवित्र देशमें निवास करते हैं। इसलिये भी हमें मृत्युसे भय नहीं हैं। इतना ही नहीं हमलोग तेजस्वी पुरूषोंके देशमें निवास करते हैं अर्थात् सत्पुरूषोंके समीप रहा करत हैं। इस कारण से भी हमें मृत्युसे भय नहीं होता हैं। 'ईषर्यारहित राजाओं! ये सब बाते मैंने तुम्हें संक्षेपसे सुनायी हैं। अब तुम सब लोग एक साथ यहां से जाओ, तुम्हें ब्रह्महत्याके पापसे भय नहीं रहा'। भरतश्रेष्ठ! यह सुनकर उन हैहयवंशी क्षत्रियोंने 'एवमस्तु' कहकर महामुनि अरिष्टनेमिका सम्मान एवं पूजन किया और प्रसन्न होकर अपने स्थानको चले गये ।

इस प्रकार महाभारत वनपर्वके अन्तर्गत मार्कण्डेयसमास्यापर्वमें ब्राह्मणमाहात्म्य-वर्णनविषयक एक सौ चौरासीवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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