महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 96 श्लोक 1-18

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:०५, २१ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==षण्णवतितम (96) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)== <div sty...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

षण्णवतितम (96) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: षण्णवतितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

इरावान् के वध से अर्जुन का दुःखपूर्ण उदार, भीमसेन के द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध, अभिमन्यु और अम्बष्ठका का युद्ध, युद्ध की भयानक स्थिति का वर्णन तथा आठवें दिन के युद्ध का उपसंहार

संजय कहते हैं- राजन् ! अपने पुत्र इरावान् के वध का वृत्तान्त सुनकर अर्जुन को बड़ा दुख हुआ। वे सर्प के समान लंबी साँस खींचने लगा।

नरेश्वर ! तब उन्होंने समरभूमि में भगवान् वासुदेव से इस प्रकार कहा- भगवन् ! निश्चय ही महाज्ञानी विदुर ने पहले ही यह सब देख लिया था। कौरवों और पाण्डवों का यह भयंकर विनाश परम बुद्धिमान विदुर की दृष्टि में पहले ही आ गया था। इसलिये उन्होंने राजा धृतराष्ट्र को मना किया था। मधुसूदन ! और भी बहुत से वीरों को संग्राम में कौरवों ने मारा और हमने कौरव सैनिकों का संहार किया। नरश्रेष्ठ ! धन के लिये यह कुत्सित कर्म किया जा रहा है। धिक्कार है उस धन को, जिसके लिये इस प्रकार जाति भाईयों का विनाश किया जा रहा है। मनुष्य का निर्धन रहकर मर जाना अच्छा है, परंतु जाति भाईयों के वध से धन प्राप्त करना कदापि अच्छा नहीं है। कृष्ण ! हम यहाँ आए हुए जाति भाईयों को मारकर क्या प्राप्त कर लेंगे। दुर्योधन के अपराध से और सुबल पुत्र शकुनि तथा कर्ण की कुमन्त्रणा से ये क्षत्रिय मारे जा रहे है। महाबाहु मधुसूदन ! राजा युधिष्ठिर ने दुर्योधन से पहले जो याचना की थी, वहीं उत्तम कार्य था; यह बात अब मेरी समझ में आ रही है। युधिष्ठिर ने आधा राज्य अथवा पाँच गांव माँगे थे, परंतु दुर्बुद्धि दुर्योधन ने उनकी माँग पूरी नहीं की। आज क्षत्रिय वीरों को रणभूमि में सोते देख मैं सबसे अधिक अपनी निन्दा करता हूँ। क्षत्रियों की इस जीविका को धिक्कार है। मधुसूदन ! रणक्षेत्र में मेरे मुख से ऐसी बात सुनकर ये क्षत्रिय मुझे असमर्थ समझेंगे, परंतु इन जाति भाईयों के साथ युद्ध करना मुझे अच्छा नहीं लगता है। (तथापि मैं आपके आदेशानुसार युद्ध करूँगा; अतः) आप शीघ्र ही अपने घोड़ों को दुर्योधन की सेना की ओर हाँकिये, जिससे इन दोनों भुजाओं द्वारा अपार सैन्य सागर को पार करूँ। माधव ! यह समय को व्यर्थ बिताने का अवसर नहीं है। अर्जुन के ऐसा कहने पर शत्रुवीरों का विनाश करने वाले केशव ने वायु के समान वेगशाली उन श्वेत घोड़ों को आगे बढ़ाया। भारत ! तदनन्तर जैसे पूर्णिमा को वायु की प्रेरणा से समुद्र का वेग बढ़ जाने से उसकी भीषण गर्जना सुनायी पड़ती है, उसी प्रकार आपकी सेना का महान् कोलाहल प्रकट हुआ। महाराज ! अपराहकाल में पाण्डवों के साथ भीष्म का भीषण संग्राम आरम्भ हुआ, जिसमें मेघ की गर्जना के समान गम्भीर घोष हो रहा था। राजन् ! तब आपके पुत्र, जैसे वसुगण इन्द्र के सब ओर खड़े होते है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य को चारों ओर से घेरकर रणभूमि में भीमसेन पर टूट पड़े। तत्पश्चात् शान्तनुनन्दन भीष्म, रथियों में श्रेष्ठ कृपाचार्य भगदत्त और सुशर्मा ने अर्जुन पर धावा किया। कृतवर्मा और बाहृीक सात्यकि पर टूट पड़े। राजा अम्बष्ठ ने अभिमन्यु का सामना किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में भगदत्त का युद्धविषयक पंचानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।