महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 96 श्लोक 38-56

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षण्णवतितम (96) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: षण्णवतितम अध्याय: श्लोक 38-56 का हिन्दी अनुवाद

अभिमन्यु ने रथियों में श्रेष्ठ लोकविख्यात राजा अम्बष्ठ को सायकों द्वारा रथहीन करके आगे बढ़ने से रोक दिया। यशस्वी सुभद्राकुमार अभिमन्यु से पीडि़त एवं रथहीन होकर राजा अम्बष्ठ अपने रथ से कूद पड़े और महामना सुभद्राकुमार पर उन्होंने रणक्षेत्र में तलवार चलायी। फिर वे महाबली नरेश कृतवर्मा के रथ पर जा बैठे। युद्ध के पैतरों को जानने में कुशल तथा शत्रुवीरों का संहार करने वाले सुभद्राकुमार ने अपनी ओर आती हुई अम्बष्ठ की तलवार को अपनी फुर्ती के कारण निष्फल कर दिया।प्रजानाथ ! उस समय रणक्षेत्र मे अम्बष्ठ की चलायी हुई तलवार को सुभद्राकुमार द्वारा निष्फल की गयी देख समस्त सैनिकों के मुख से निकली हुई साधु-साधु (वाह-वाह) की ध्वनि गूँज उठी।धृष्टद्युम्न आदि अन्य महारथी आपकी सेना के साथ तथा आपके प्रमुख सैनिक पाण्डव सेना के साथ युद्ध करने लगे।भारत ! राजेन्द्र ! एक दूसरे पर सुदृढ़ प्रहार और दुष्कर पराक्रम करने वाले आपके और पाण्डवों के सैनिकों में अत्यन्त भयंकर महान् संग्राम होने लगा।कितने की मानी शूरवीर उस रणक्षेत्र में एक दूसरे के केश पकड़कर नखों, दाँतों, मुक्कों और घुटनों से प्रहार करते हुए लड़ रहे थे।अवसर पाकर वे थप्पड़ों, तलवारों तथा सुदृढ़ भुजाओं द्वारा भी एक दूसरे को यमलोक पहुँचा देते थे।उस युद्ध में पिता ने पुत्र को और पुत्र ने पिता को मार डाला। सबके सभी अंग व्याकुल हो गये थे, तो भी सब लोग युद्ध कर रहे थे।आर्य ! उस रणक्षेत्र में मारे गये नरेशों के सुवर्णमय पृष्ठ से विभूषित सुन्दर धनुष तथा बहुमूल्य तरकस जहाँ-जहाँ पड़े हुए थे।सोने अथवा चाँदी के पंखों से युक्त तथा तेल के धोये हुए तीखे बाण केचुल छोड़कर निकले हुए सपों के समान सुशोभित होते थे।हमने देखा कि रणभूमि में धनुर्धर वीरों की तलवारें और ढालें फेंकी पड़ी है। तलवारों में हाथी के दाँत की मूँठें लगी थीं और उनमें यथास्थान सुवर्ण जड़ा हुआ था।
इसी प्रकार ढालों में सुवर्णमय विचित्र तारक चिन्ह दिखायी देते थे। सुवर्णभूषित प्रास, स्वर्णजटित पटिट्श, सोने की बनी हुई ऋृष्टियाँ तथा स्वर्णभूषित चमकीली शक्तियाँ यंत्र-तंत्र पड़ी हुई थी।आर्य ! वहाँ सुन्दर कवच पड़े थे। भारी मुसल, परिघ, पटिट्श और मिन्दिपाल भी इधर-उधर बिखरे दिखायी देते थे।नाना प्रकार के विचित्र एवं स्वर्णभूषित धनुष गिरे हुए थे। हाथी की पीठ पर बिछाये जाने वाले भाँति भाँति के कम्बल तथा चँवर और व्यजन भी यत्र-तत्र गिरे दिखायी देते थे।भाँति भाँति के अस्त्र-शस्त्रों को हाथों से लेकर पृथ्वी पर पड़े हुए प्राणहीन महारथी सैनिक जीवित से दिखायी देते थे।। किन्ही के शरीर गदा की चोट से चूर-चूर हो गये थे, किन्हीं के मस्तक मुसलों की मार से फट गये थे तथा कितने ही मनुष्य घोड़े, हाथी एवं रथों से कुचल गये थे। ये सभी वहाँ पृथ्वी पर प्राणहीन होकर सो गये थे।राजन् ! इसी प्रकार घोड़े, हाथी और मनुष्यों के मृत शरीरों से सारी वसुधा आच्छादित हो उस समय पर्वतों से ढकी हुई सी जान पड़ती थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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