महाभारत आदि पर्व अध्याय 63 श्लोक 1-19

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त्रिषष्टितम (63) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: त्रिषष्टितम अध्‍याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

राजा उपरिचर का चरित्र तथा सत्‍यवती, व्‍यासादि प्रमुख पात्रों की संक्षिप्त जन्‍मकथा

वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! पहले उपरिचर नाम से प्रसिद्व एक राजा हो गये हैं, जो नित्‍य-निरन्‍तर धर्म में ही लगे रहते थे। साथ ही सदा हिंसक पशुओं के शिकार के लिये वन में जाने का उनका नियम था । पौरवनन्‍दन राजा उपरिचर वसु ने इन्‍द्र के कहने से अत्‍यन्‍त रमणीय चेदि देश का राज्‍य स्‍वीकार किया था ।एक समय की वात है, राजा वसु अस्त्र-शस्त्रों का त्‍याग करके आश्रम में निवास करने लगे। उन्‍होंने बड़ा भारी तप किया जिससे वे तपोनिधि माने जाने लगे। उस समय इन्‍द्र आदि देवता यह सोचकर कि यह राजा तपस्‍या के द्वारा इन्‍द्र पद प्राप्त करना चाहता है, उनके समीप गये। देवताओं ने राजा को प्रत्‍यक्ष दर्शन देकर उन्‍हें शांतिपूर्वक समझाया और तपस्‍या से निवृत्त कर दिया । देवता बोले- पृथ्‍वीपते ! तुम्‍हें ऐसी चेष्टा रखनी चाहिये जिससे इस भूमि पर वर्णसंकरता न फैलने पावे (तुम्‍हारे न रहने से अराजकता फैलने का भय है जिससे प्रजा स्‍वधर्म में स्थिर नहीं रह सकेगी। अत: तुम्‍हें तपस्‍या न करके इस वसुधा का संरक्षण करना चाहिये)। राजन्। तुम्‍हारे द्वारा सुरक्षित धर्म ही सम्‍पूर्ण जगत को धारण कर रहा है । इन्‍द्र ने कहा- राजन् ! तुम इस लोक में सदा सावधान और प्रयत्‍नशील रहकर धर्म का पालन करो। धर्मयुक्त रहने पर तुम सनातन पुण्‍य लोकों को प्राप्त कर सकोगे। यद्यपि में स्‍वर्ग में रहता हूं और तुम भूमिपर; तथापि आज से तुम मेरे प्रिय सखा हो गये। नेरश्वर ! इस पृथ्‍वी पर जो सबसे सुन्‍दर एवं रमणीय देश हो, उसी में तुम निवास करो । इस समय चेदि देश पशुओं के लिये हितकर, पुण्‍यजनक, पुण्य धन-धान्‍य से सम्‍पन्न, स्‍वर्ग के समान सुखद होने के कारण रक्षणीय, सौम्‍य तथा भोग्‍य पदार्थों और भूमि सम्‍बन्‍धी उत्तम गुणों से युक्‍त हैं। यह देश अनेक पदार्थों से युक्‍त और धन रत्‍न आदि सम्‍पन्‍न है। यहां की वसुधा वास्‍तव में वसु (धन-संपत्ति) से भूरी-पूरी है। अत: तुम चेदि देश के पालक होकर उसी में निवास करो। यहां के जनपद धर्मशील, संतोषी और साधु हैं। यहां हास-परिहास में भी कोई झूठ नहीं बोलता, फि‍र अन्‍य अवसरों पर तो बोल ही कैसे सकता है? पुत्र सदा गुरुजनों के हित में लगे रहते हैं, पिता अपने जीते-जी उनका बंटवारा नहीं करते। यहां के लोग बैलों को भार ढ़ोने में नहीं लगाते और दीनों एवं अनाथों का पोषण करते हैं। मानद ! चेदि देश में सब वर्णों के लोग सदा अपने-अपने धर्म में स्थित रहते हैं। तीनों लोकों में जो कोई घटना होगी, वह सब यहां रहते हुए भी तुमसे छिपी न रहेगी- तुम सर्वज्ञ बने रहोगे । जो देवताओं के उपभोग में आने योग्‍य हैं, ऐसा स्फटिक मणि का बना हुआ एक दिव्‍य, आकाशचारी एवं विशाल विमान मैंने तुम्‍हें भेंट किया है। वह आकाश में तुम्‍हारी सेवा के लिये सदा उपस्थित रहेगा ।सम्‍पूर्ण मनुष्‍यों में एक तुम्‍हीं इस श्रेष्ट विमान पर वैठकर मूर्तिमान् देवता की भांति सबके ऊपर-ऊपर बिचरोगे। मैं तुम्‍हें यह वैजयन्‍ती माला देता हूं, जिसमें पिरोये हुए कमल कभी कुम्‍हलाये नहीं हैं। इसे धारण कर लेने पर यह माला संग्राम में तुम्‍हें अस्त्र-शस्त्रों के आघात से बचायेगी। नरेश्वर ! यह माला ही इन्‍द्रमाला के नाम से विख्‍यात होकर इस जगत् में तुम्‍हारी पहचान कराने के कलये परम धन्‍य एवं अनुपम चिन्ह होगी। ऐसा कहकर वृत्रासुर का नाश करने वाले इन्‍द्र ने राजा को प्रमोपहार स्‍वरुप बांस की एक छड़ी दी, जो शिष्ट पुरुषों की रक्षा करने वाली थी। तदनन्‍तर एक वर्ष बीतने पर भूपाल वसु ने इन्‍द्र की पूजा के लिये उस छड़ी को भूमि में गाड़ दिया। राजन् ! तव से लेकर आज तक श्रेष्ठ राजाओं द्वारा छड़ी धरती में गाड़ी जाती है। वसुने जो प्रथा चली दी, वह अब तक चली आती है ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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