महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 79 श्लोक 1-18

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:१०, २५ अगस्त २०१५ का अवतरण (→‎एकोनाशीतितम (78) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व ))
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकोनाशीतितम (79) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व:एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

श्री कृष्‍ण का अर्जुन की विजय के लिये रात्रि में भगवान् शिव का पूजन करवाना, जागते हुए पाण्‍डव सैनिकों की अर्जुन के लिये शुभाशंसा तथा अर्जुन की सफलता के लिये श्रीकृष्‍ण के दारुक के प्रति उत्‍साहभरे वचन संजय कहते है- राजन्। तदनन्‍तर कमल नयन भगवन् श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन के अनुपम भवन में प्रवेश करके जल का स्‍पर्श किया और शुभ लक्षणों से युक्त वेदी पर वैदूर्यमणि के सदृश कुशों की सुन्‍दर श्‍य्या बिछायी। तत्‍पश्‍चात् विधिपूर्वक परम मंगलकारी अक्षत: गन्‍ध एवं पुष्‍पमाला आदि से उस शय्या को सजाया। उसके चारों ओर उत्तम आयुध रख दिये। इसके बाद जब अर्जुन आचमन कर चुके, तब विनीत (सुशिक्षित) परिचार को ने उन्‍हें दिखाते हुए उनके निकट ही भगवान् शंकर का निशीथ-पूजन किया । तत्‍पश्चात् अर्जुन ने प्रसन्नचित्त होकर श्रीकृष्‍ण को गन्‍ध और मालाओं से अलंकृत कर‍के रात्रि का वह सारा उपहार उन्‍हीं को समर्पित किया। तब मुसकराते हुए भगवान् गोविन्‍द अर्जुन से बोले ।‘कुन्‍तीकुमार। तुम्‍हारा कल्‍याण हो। अब शयन करो। मैं तुम्‍हारे कल्‍याण-साधन के लिये ही जा रहा हूं’ ऐसा कहकर वहां अस्‍त्र-शस्‍त्र लिये हुए मनुष्‍यों को द्वारपाल एवं रक्षक नियुक्त करके भगवान् श्रीकृष्‍ण दारु के साथ उपने शिविर में चले गये । वहां बहुत से कार्यों का चिन्‍तन करते हुए उन्‍होंने शुभ्र शय्यापर शयन किया। कमलनयन भगवान् श्रीकृष्‍ण सबके ईशवरों के भी ईश्‍वर हैं। उनका यश महान् है। वे विष्‍णुरुप गोविन्‍द अर्जुन का प्रिय करने वाले हैं और सदा उनके कल्‍याण की कामना रखते है। उन युक्तात्‍मा श्रीहरि ने उत्तम योग का आश्रय ले अर्जुन के लिये वह सारा विधि-विधान सम्‍पन्न किया, जो उनके शोक और दु:ख को दूर करने वाला तथा तेज और कान्ति को बढ़ाने वाला था।राजन्। उस रात में पाण्‍डवों के शिबिर में कोई नही सोया। सब लोगों में जागरण का आवेश हो गया था।

सब लोग इसी चिन्‍ता में पड़े थे कि पुत्रशोक से संतप्‍त हुए गाण्‍डीवधारी महामना अर्जुन ने सहसा सिंधुराज जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा कर ली है। शत्रुवीरों का सहार करने वाले वे महाबाहु इन्‍द्रकुमार अपनी उस प्रतिज्ञा को कैसे सफल करेंगे । महामना पाण्‍डव ने यह बड़ा कष्‍टप्रद निश्चय किया है। उन्‍होंने पुत्रशोक से संतप्‍त होकर बड़ी भारी प्रतिज्ञा कर ली है। उधर राजा जयद्रथ का पराक्रम भी महान् है, तथापि अर्जुन अपनी उस प्रतिज्ञा को पूरी कर लेंगे; क्‍योंकि उनके भाई भी बड़े पराक्रमी है और उनके पास सेनाएं भी बहुत हैं ।धृतराष्‍ट्र पुत्र दुर्योंधन ने जयद्रथ को सब बातें बता दी होंगी। अर्जुन युद्ध में सिधुराज जयद्रथ को मारकर पुन: सकुशल लौट आवें (यही हमारी शुभ कामना है) । अर्जुन शत्रुओं को जीतकर अपना व्रत पूरा करें। यदि वे कल सिधुराज को न मार सके तो अग्‍नि में प्रवेश कर जायंगे। कुन्‍तीकुमार धनंजय अपनी बात झूठी नहीं कर सकते। यदि अर्जुन मर गये तो धर्मपुत्र युधिष्ठिर कैसे राजा होगे । पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर ने अर्जुन पर ही सारा विजय का भार रख दिया। यदि हम लोगों का किया हुआ कुछ भी सत्‍कर्म शेष हो, यदि हमने दान और होम किये हों तो हमारे उन सभी शुभकर्मों के फल से सव्‍यसाची अर्जुन अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्‍त करें ।




« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।