महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 112 श्लोक 1-20

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द्वादशाधिकशततम (112) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: द्वादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देते हुए उसे भीष्म की रक्षा के लिये धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश देना संजय कहते है- राजन् ! तदनन्तर महाधनुर्धर, मत वाले हाथी के समान पराक्रमी, वीर, नरश्रेष्ठ, महाबली तथा शुभाशुभ निमित्तों के ज्ञाता एवं अद्भुत शक्तिशाली द्रोणाचार्य मतवाले हाथियों की गति को कुण्ठित कर देने वाले विशाल धनुष को हाथ में लेकर उसे खींचने और विपक्षी सेना को भगाने लगे। उन्होंने पाण्डवों की सेना में प्रवेश करते समय सब ओर बुरे निमित्त ( शकुन ) देखकर शत्रुसेना को संताप देते हुए पुत्र अश्वत्थामा से इस प्रकार कहा- तात ! यही वह दिन है, जब कि महाबली अर्जुन समर भूमि में भीष्म को मार डालने की इच्छा से महान प्रयत्न करेंगे। मेरे बाण तरकस से उछले पडते है, धनुष फड़क उठता है, अस्त्र स्वयं ही धनुष से संयुक्त हो जाते है और मेरे मन में क्रूरकर्म करने का संकल्प हो रहा है। सम्पूर्ण दिशाओं में पशु और पक्षी अशान्तिपूर्ण भयंकर बोली बोल रहे है। गीध नीचे आकर कौरव सेना में छिप रहे है। सूर्य की प्रभा मन्द सी पड गयी है। सम्पूर्ण दिशाएँ लाल हो रही है। पृथ्वी सब ओर से कोलाहलपूर्ण, व्यथित और कम्पित सी हो रही है। कंक, गीध और बगले बार बार बोल रहे है। अमगंलमयी घोररूपवाली गीदडियाँ महान भय की सूचना देती हुई सूर्य की और मुँह करके भयानक बोली बोला करती है और उनका मुँह प्रज्वलित सा जान पडता है। सूर्यमण्डल मध्यभाग से बडी-बडी उल्काएँ गिरी है। कबन्धयुक्त परिघ सूर्य को चारो ओर से घेरकर स्थित है। चन्द्रमा और सूर्य के चारो ओर भयंकर घेरा पड़ने लगा है, जो क्षत्रियों के शरीर का विनाश करने वाले घोर भय की सूचना दे रहा है। कौरवराज धृतराष्ट्र के देवालयां की देवमूर्तियाँ हिलती, हँसती, नाचती तथा रोती जान पड़ती है। ग्रहो ने सूर्य की वामावर्त परिक्रमा करके उन्हे अशुभ लक्षणो का सूचक बना दिया है, भगवान् चन्द्रमा अपने दोनो कोनो के सिरे नीचे करके उदित हुए है।
राजाओ के शरीरो को मैं श्रीहीन देख रहा हूँ। दुर्योधन की सेनाओ मे जो लोग कवच धारण करके स्थित है, उनकी शोभा नहीं हो रही है। दोनो ही सेनाओ में चारो ओर पाँचजन्य शंग का गम्भीर घोष और गाण्डीव धनुष की टंकार ध्वनि सुनायी देती है। इससे यह निश्चय जान पड़ता है कि अर्जुन युद्धस्थल में उत्तम अस्त्रो का आश्रय ले दूसरे योद्धाओ को दूर हटाकर रणभूमि में पितामह के पास पहुँच जायेंगे। महाबाहो ! भीष्म और अर्जुन के युद्ध का विचार करके मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं और मन शिथिल-सा होता जा रहा है। शठता के पूरे पण्डित उस पापात्मा पांचाल राजकुमार शिखण्ड़ी को यहाँ रण में आगे करके कुंतीकुमार अर्जुन भीष्म से युद्ध करने के लिये गये हैं। भीष्म ने पहले ही यह कह दिया था कि मैं शिखण्ड़ी को नहीं मारूँगा; क्योकि विधाता ने इसे स्त्री ही बनाया था। फिर भाग्यवश यह पुरूष हो गया। इसके सिवा दु्रपद यह महाबली पुत्र अपनी ध्वजा में अमंगलसूचक चिह्न धारण करता है। अतः इस अमांगलिक शिखण्ड़ी पर गगानंदन भीष्म कभी प्रहार नहीं करेंगे। इन सब बातो पर जब मैं विचार करता हूँ, तब मेरी बुद्धि अत्यन्त शिथिल हो जाती है। आज अर्जुन ने पूरी तैयारी के साथ रणभूमि में कुरूकुल के वृद्ध पुरूष भीष्मजी पर धावा किया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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