महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 46 श्लोक 31-45

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षट्चत्वारिंश (46) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षट्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 19-35 का हिन्दी अनुवाद

'अत: इस विशाल शत्रुसेना की ओर देखकर तुम ऐसी नीतिका निर्माण करो, जिससे वह हमें परास्तं न कर सके।

राजा युधिष्ठिर के ऐसा कहने पर अर्जुन हाथ जोड़कर उनसे बोले-‘भारत। आप जैसा कहते हैं वह सब वैसा ही है। उसमें थोड़ा सा भी अन्त्र नहीं है । ‘युद्धशास्त्र में इस व्यूतह के विनाश के लिये जो उपाय बताया गया है, उसी का सम्पाहदन करुंगा। प्रधान सेनापति का वध होने पर ही इसका विनाश हो सकता है; अत: मैं वही करुंगा’। युधिष्ठिर बोले- अर्जुन। तब तुम्हें राधा पुत्र कर्ण के साथ भिड़ जाओ। भमसेन दुर्योंधन से, नकुल वृषसेन से, सहदेव शकुनि से, शतानीक दु:शासन से, सात्य्कि कृतवर्मा से और धृष्टसद्युम्न। अश्वत्था मा से युद्ध करे तथा स्वियं मैं कृपाचार्य के साथ युद्ध करुंगा । द्रौपदी के पुत्र शिखण्डी के साथ रहकर धृतराष्ट्रस के शेष बचे हुए पुत्रों पर धावा करें। इसी प्रकार हमारे विभिन्न सैनिक हमलोगों के उन-उन शत्रुओं का विनाश करें। धर्मराज के ऐसा कहने पर अर्जुन ने ‘तथास्तुण’ कहकर अपनी सेनाओं को युद्ध के लिये आदेश दे‍ दिया और स्वकयं वे सेना के मुहाने पर जा पहुंचे। महाराज।
अर्जुन दाहिने पक्ष में खड़े हुए और महाबाहु भीमसेन बायें पक्ष का आश्रय लिया। सात्याकि, द्रौपदी के पुत्र तथा स्वनयं राजा युधिष्ठिर अपनी सेना से घिरकर व्यूकह के मुहाने पर खड़े हुए। युधिष्ठिर ने अपनी सेना द्वारा प्रतिरोध करके शत्रुकी उस सेना को ठहर जाने के लिये विवश कर दिया और धृष्ट़द्युम्र तथा शिखण्डीध को आगे करके उसके मुकाबले में अपनी सेना का व्यूाह बनाया। घुड़सवारों, हाथियों, पैदलों और रथों से भरा हुआ वह प्रबल व्यू ह, जिसके प्रमुख भाग में धृष्टथद्युम्र थे, बड़ी शोभा पा रहा था।। वेद-मन्त्रों द्वारा प्रज्वनलित और सबसे पहले प्रकट हुए सम्पू र्ण विश्व के नेता अग्रि देव, जो ब्रह्माजी के सुख से सर्व प्रथम उत्पदन्न हैं और इसी कारण देवता जिन्हें ब्राह्मण मानते हैं, अर्जुन के उस दिव्यी रथ के अश्व बने हुए थे। जो प्राचीन काल में क्रमश: ब्रह्मा, रुद्र, इन्द्र और वरुण की सवारी में आ चुका था, उसी आदि रथ पर बैठकर श्रीकृष्णा और अर्जुन शत्रुओं की ओर बढ़े चले जा रहे थे। अत्यएन्तर अभ्दु्त दिखायी देने वाले उस रथ को आते देख शल्यर ने रणदुर्मद सूतपुत्र कर्ण से पुन: इस प्रकार कहा ‘कर्ण। तुम जिन्हेंथ बारंबार पूछ रहे थे, वे ही ये कुन्तीस कुमार अर्जुन शत्रुओं का संहार करते हुए रथ के साथ आ पहुंचे। उनके घोड़े श्वे्त रंग के हैं, श्रीकृष्ण उनके सारथि हैं और वे कर्मों के फल की भांति तुम्हा्री सम्पूगर्ण सेनाओं के लिये दुर्निवार्य हैं। ‘उनके रथ का भयंकर शब्दा ऐसा सुनायी दे रहा है, मानो महान् मेघ की गर्जना हो रही हो। निश्चय ही वे महात्मा श्रीकृष्णय और अर्जुन ही आ रहे हैं। ‘कर्ण। यह ऊपर उठी हुई धुल आकाश को आच्छाेदित करके स्थित हो रही है और पृथ्वी अर्जुन के रथ के पहियों द्वारा संचालित सी होकर कांपने लगी है ‘तुम्हारी सेना के सब ओर यह प्रचण्ड। वायु बह रही है, ये मांसभक्षी पशु-पक्षी बोल रहे हैं और मृगगण भयंकर क्रन्दरन कर रहे है। ‘कर्ण। वह देखो, रोंगटे खड़े कर देनेवाला भयदायक मेघसदृश महाघोर कबन्धासकार केतु नामक ग्रह सूर्यमण्ड ल को घेरकर खड़ा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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