महाभारत शल्य पर्व अध्याय 21 श्लोक 18-37

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एकविंश (21) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 18-37 का हिन्दी अनुवाद

उस कटे हुए श्रेष्ट धनुष को फेंककर शिनिप्रवर सात्यकि ने बाणसहित दूसरे धनुष को वेगपूर्वक हाथ में ले लिया । सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ महाबली एवं महापराक्रमी युयुधान ने उस उत्तम धनुष को लेकर शीघ्र ही उसपर बाण चढ़ाया और कृतवर्मा के द्वारा अपने धनुष का काटा जाना सहन न करके उन अतिरथी वीर ने कुपित हो शीघ्रतापूर्वक उसपर आक्रमण किया । तत्पश्चात् शिनिप्रवर सात्यकि ने अत्यन्त तीखें दस बाणों के द्वारा कृतवर्मा के ध्वज, सारथि और घोड़ों को नष्ट कर दिया।। राजन् ! महधनुर्धर महारथी कृतवर्मा अपने सुवर्णभूषित रथ को घोडे़ और सारथि से रहित देख महान् रोष से भर गया। मान्यवर ! फिर उसने शिनिप्रवर सात्यकि को मार डालने की इच्छा से एक शूल उठाकर उसे अपनी भुजाओं के सम्पूर्ण वेग-से चला दिया । परंतु सात्यकि ने युद्धस्थल में अपने बाणोंद्वारा उस शूल को काटकर चकनाचूर कर दिया और कृतवर्मा को मोह में डालते हुए से उस चूर-चूर हुए शूल को पृथ्वी पर गिरा दिया।। इसके बाद उन्होंने कृतवर्मा की छाती में एक भल्ल द्वारा गहरी चोट पहुँचायी । तब वह युयुधान द्वारा घोड़ों और सारथि से रहित किया हुआ कृतवर्मा रथ छोड़कर युद्धस्थल में पृथ्वी पर खड़ा हो गया ।।25।। उस द्वैरथ युद्ध में सात्यकि द्वारा वीर कृतवर्मा के रथहीन हो जाने पर आपके सारे सैनिक के मन में महान् भय समा गया।। जब कृतवर्मा के घोड़े और सारथि मारे गये तथा वह रथ हीन हो गया, तब आपके पुत्र दुर्योधन के मन में बड़ा खेद हुआ।। शत्रुदमन नरेश ! कृतवर्मा के घोड़ों और सारथि को मारा गया देख कृतवर्मा सात्यकि को मार डालने की इच्छा से वहाँ दौडे़ हुए आये ।।28।। फिर सम्पूर्ण धनुर्धरों के देखते-देखते महाबाहु कृतवर्मा को अपने रथपर बिठाकर वे उसे तुरन्त ही युद्ध से दूर हटा ले गये । राजन् ! जब सात्यकि युद्ध के लिये डटे रहे और कृतवर्मा रथहीन होकर भाग गया, तब दुर्योधन की सारी सेना पुनः युद्ध से विमुख हो वहाँ से पलायन करने लगी । परन्तु सेनाद्वारा उड़ायी हुई धूल से आच्छादित होने के कारण शत्रुओं के सैनिक कौरव-सेना के भागने की बात न जान सके। राजन् ! राजा दुर्योधन के सिवा, आपके सभी योद्धा वहाँ से भाग गये । दुर्योधन अपनी सेना को निकट से भागती देख बडे़ वेग से शत्रुओं पर टूट पड़ा और उन सबको अकेले ही शीघ्रतापूर्वक रोकने लगा माननीय नरेश ! उस समय क्रोध में भरा हुआ आपका महाबली पुत्र दुर्धर्ष दुर्योधन सावधान हो बिना किसी घबराहट के समस्त पाण्डवों, द्रुपदपुत्र धृष्‍टधुम्न, शिखण्डी, द्रौपदी के पाँचों पुत्रों, पांचालों, केकयों, सोमकों और सृंजयों- पर पैने बाणों की वर्षा करने लगा तथा निर्भय होकर गुरूभूमि में डटा रहा । जैसे यज्ञ में मन्त्रों द्वारा पवित्र हुए महान् अग्निदेव प्रकाशित होते हैं, उसी प्रकार संग्राम में राजा दुर्योधन सब ओर से देदीप्यमान हो रहा था । जैसे मरणधर्मा मनुष्य अपनी मृत्यु का उल्लंघन नहीं कर सकते, उसी प्रकार युद्धभूमि में शत्रुसैनिक राजा दुर्योधन का सामना न कर सके। इतने ही में कृतवर्मा दूसरे रथ पर आरूढ़ होकर वहाँ आ पहुँचा ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में सात्यकि और कृतवर्मा का युद्धविषयक इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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