महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 114 श्लोक 57-78

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चतुदर्शाधिकशततम (114) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व:चतुदर्शाधिकशततम अध्याय: श्लोक 57-78 का हिन्दी अनुवाद

जब सत्‍यपराक्रमी सात्‍यकि कौरव-सेना में प्रविष्‍ट हो गये, तब भीमसेन आदि कुन्‍तीकुमारों ने आपकी विशाल वाहिनी पर आक्रमण किया। सेवकों सहित कुपित होकर सहसा आक्रमण करने वाले उन पाण्‍डव वीरों को रणक्षेत्र में एकमात्र महारथी कृतवर्मा ने रोका।। जैसे उद्वेलित हुए महासागर को किनारे की भूमि आगे बढ़ने से रोकती हैं, उसी प्रकार युद्धस्‍थल मे कृतवर्मा ने पाण्‍डव-सेना को रोक दिया। वहां हमने कृतवर्मा का अद्रुत पराक्रम देखा। सारे पाण्‍डव एक साथ मिलकर भी समरांगण में उसे लांघ न सके।।तदनन्‍तर महाबाहु भीम ने तीन बाणों द्वारा कृतवर्मा को घायल करके समस्‍त पाण्‍डवो का हर्ष बढ़ाते हुए शंक्‍ख बजाया।। सहदेव ने बीस, धर्मराज ने पांच और नकुल ने सौ बाणों से कृतवर्मा को बींघ डाला। द्रौपदी के पुत्रों ने तिहतर, घटोत्‍कच ने सात और धृष्‍टद्युम्‍न ने तीन बाणों द्वारा उसे गहरी चोट पहुंचायी। विराट, द्रुपद और उनके पुत्र धृष्‍टद्युम्‍न ने पांच-पांच बाणों से उसको घायल कर दिया। फिर शिखण्‍डी ने पहले पांच बाणों द्वारा चोट करके फिर हंसते हुए ही बीस बाणों से कृतवर्मा को बींघ डाला। राजन् ! उस समय कृतवर्मा ने चारों ओर बाण चलाकर उन महारथियों से प्रत्‍येक को पाचं बाणों द्वारा बींघ डाला और भीमसेन को धनुष और ध्‍वज को काटकर रथ से पृथ्‍वी पर गिरा दिया। भीमसेन का धनुष कट जाने पर महारथी कृतवर्मा ने कुपित हो बड़ी उतावली के साथ सतर पैने बाणों द्वारा उनकी छाती में गहरा आघात किया। कृतवर्मा के श्रेष्‍ठ बाणों द्वारा अत्‍यन्‍त घायल हुए बलवान् भीमसेन रथ के भीतर बैठे हुए ही भुकम्‍प के समय हिलनेवाले पर्वत के समान कांपने लगे। राजन् ! भीमसेन को वैसी अवस्‍था मे देखकर धर्मराज आदि महारथियों ने बाणों की वर्षा करके कृतवर्मा को बड़ी पीड़ा दी। माननीय नरेश ! हर्ष में भरे हुए पाण्‍डव सैनिकों भीमसेन की रक्षा के लिये अपने रथसमूह द्वारा कृतवर्मा को कोष्‍ठबद्धसा करके उसे युद्धस्‍थल में अपने बाणों का निशाना बनाने लगे। इसी बीच में महाबली भीमसेन ने सचेत हेकर समरांगण में सुवर्णमय दण्‍ड से विभूषित एक लोहे की शक्ति हाथ में ले ली।। और शीघ्र ही उसे अपने रथ से कृतवर्मा के रथ पर चला दिया। भीमसेन के हाथों से छुटी हुई, केंचुले से निकले हुए सर्प के समान वह भंयकर कृतवर्मा के समीप जाकर प्रज्‍वलित हो उठी। उस समय अपने उपर आती हुई प्रलयकाल की अग्रि के समान उस शक्ति को सहसा दो बाण मारकर कृतवर्मा ने उसके दो टूकड़े कर दिये। राजन् ! सम्‍पूर्ण दिशाओं को प्रकाशित करती हुई वह सुवर्णभूषित शक्ति काटकर आकाश से गिरी हुई बड़ी भारी उल्‍का के समान पृथ्‍वी पर गिर पड़ी। अपनी शक्ति को कटी हई देख भीमसेन को बड़ा क्रोध हुआ। उन्‍होंने बड़ी भारी टंकारध्‍वनि करनेवाले दूसरे वेगशाली धनूष को हाथ हाथ में लेकर समरांगण में कुपति हो कृतवर्मा का सामना किया। राजन् ! आपको ही कुमन्‍त्रणा से वहां भंयकर बलशाली भीमसेन ने कृतवर्मा की छा‍ती मे पांच बाण मारे। माननीय नरेश ! भीमसेन ने उन बाणों द्वारा कृतवर्मा के सम्‍पूर्ण अंगो को क्ष‍त-विक्षत कर दिया। वह रणागण में खून से लथपथ हो खिले हुए लाल फूलोंवाले अशोक वृक्ष के समान सुशोभित होने लगा।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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