महाभारत शल्य पर्व अध्याय 24 श्लोक 51-66

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चतुविंश (24) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: चतुविंश अध्याय: श्लोक 51-66 का हिन्दी अनुवाद

संजय कहते हैं- राजन् ! सव्यसाची अर्जुन के ऐसा कहने पर घोड़ों की बागडोर हाथ में लिये दशार्हकुलनन्दन श्रीकृष्ण ने निर्भय हो शत्रुओं के उस सैन्य-सागर में बलपूर्वक प्रवेश किया।। वह सेना एक वन के समान थी। वह वन कुन्त, खग और बाणों से अत्यन्त भयंकर प्रतीत होता था, शक्तिरूपी काँटो से भरा हुआ था, गदा और परिध उसमें जाने के मार्ग थे, रथ और हाथी उसमें रहने वाले बडे़-बड़े वृक्ष थे, घोडे़ और पैदलरूपी लताओं से यह व्याप्त हो रहा था, महायशस्वी भगवान् श्रीकृष्ण ऊँची पताका वाले रथ के द्वारा उस सैन्य वन में प्रवेश करके सब ओर विचरने लगे ।। राजन् ! श्रीकृष्ण के द्वारा हाँके गये वे सफेद घोडे़ युद्ध स्थल में अर्जुन को ढ़ोते हुए सम्पूर्ण दिशाओं में दिखायी पड़ते थे।। फिर तो जैसे बादल पानी की धारा बरसाता है, उसी प्रकार शत्रुओं को संताप देने वाले अर्जुन युद्धस्थल में सैकड़ों पैने बाणों की वर्षा करते हुए रथ के द्वारा आगे बढे़। उस समय झुकी हुई गाँठ वाले बाणों का महान् शब्द प्रकट होने लगा।। सव्यसाची अर्जुन द्वारा समरभूमि में बाणों से आच्छादित होने वाले सैनिकों के कवचों पर उनके बाण अटकते नहीं थे। वे चोट करके पृथ्वी पर गिर जाते थे । प्रजानाथ ! इन्द्र के वज्र की भाँति कठोर स्पर्श वाले बाण गाण्डीव से प्रेरित हो मनुष्यों, घोड़ों और हाथियों का भी संहार करके शब्द करने वाले टिड्डी दलों के समान रणभूमि में गिर पड़ते थे गाण्डीव धनुष से छुटे हुए बाणों द्वारा उस रणभूमि की सारी वस्तुएँ आच्छादित हो गयी थीं। दिशाओं अथवा विदिशाओं का भी ज्ञान नहीं हो पाता था । अर्जुन के नाम से अंकित, तेल के धोये और कारीगर के साफ किये सुवर्णमय पंखवाले बाणों द्वारा वहाँ का सारा जगत व्याप्त हो रहा था । दावानल के आगे से जलनेवाले हाथियों के समान पार्थ के पैने, बाणों की मार खाकर दग्ध होते हुए वे घोर कौरव-योद्धा अर्जुन को छोड़कर हटते नहीं थे। जैसे जलती हुई आग घास-फूस के ढेर को जला देती है, उसी प्रकार सूर्य के समान प्रकाशित होने वाला धनुष-बाणधारी अर्जुन ने समरांगण में आपके योद्धाओं को दग्ध कर दिया।। जैसे वनचरों द्वारा वन के भीतर लगायी हुई आग धीरे-धीरे बढ़कर प्रज्वलित एवं महान् ताप से युक्त हो घास-फूस के ढेर को, बहुसंख्यक वृक्षों को और सुखी हुई लतावल्लरियों को भी जलाकर भस्म कर देती है, उसी प्रकार नाराचसमुहों द्वारा ताप देनेवाले, बाणरूपी ज्वालाओं से युक्त, वेगवान्, प्रचण्ड तेजस्वी और अमर्ष में भरे हुए अर्जुन ने समरांगण में आपके पुत्र की सारी रथ सेना को शीघ्रतापर्वूक भस्म कर डाला। उनके अच्छी तरह छोडे़ हुए सुवर्णमय पंखवाले प्राणान्तकारी बाण कवचों पर नहीं अटकते थे। उन्हें छेदकर भीतर घुस जाते थे। वे मनुष्य, घोडे़ अथवा विशालकाय हाथी पर दूसरा बाण नहीं छोड़ते थे (एक ही बाण से उसका काम तमाम कर देते थे)। जैसे वज्रधारी इन्द्र दैत्यों का संहार कर डालते हैं, उसी प्रकार एकमात्र अर्जुन ने ही रथियों की विशाल सेना में प्रवेश करके अनेक रूप-रंगवाले बाणोंद्वारा आपके पुत्र की सेना का विनाश कर दिया।।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में संकुलयुद्धविषयक चैबिसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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