महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 61 श्लोक 1-20

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एकषष्टितम (61) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

कर्ण द्वारा शिखण्डीथ की पराजय, धृष्टद्युम्नय और दु:शासन का तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध, सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्य कि द्वारा शकुनि की पराजय, कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु् एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजी पराजय तथा भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय, गजसेना का संहार और पलायन

धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय। जब भीमसेन और पाण्डुर पुत्र युधिष्ठिर लौट आये, पाण्ड्व और सृंजय मेरी सेना का वध करने लगे और मेरा सैन्यज समुदाय आनन्दा शून्य होकर बराबर भागने लगा, उस समय कौरवों ने क्याल किया यह मुझे बताओ। संजय कहते हैं-राजन्। आपकी कुमन्त्रणा के फलस्वररुप उन कौरवों का महान् संहार हुआ है। महाराज। प्रतापी सूतपुत्र महाबाहु भीमसेन को देखकर क्रोध से लाल आंखें किये उन पर टूट पड़ा। राजन्। आपकी सेना को भीमसेन के भय से विमुख हुई देख बलवान् कर्ण ने बड़े यत्न से उसे स्थिर किया। महाबाहु कर्ण आपके पुत्र की सेना को स्थिर करके रण दुर्मद पाण्डवों की ओर बढ़ा। उस समय पाण्डकव महारथी भी राधापुत्र कर्ण का सामना करने के लिये अपने धनुष हिलाते और बाणों की वर्षा करते हुए रणभूमि में आगे बढ़े। भीमसने, सात्य कि, शिखण्डीो, जनमेजय, बलवान् धृष्टद्युम्नि और समस्त प्रभद्रकगण-ये सभी पुरुषसिंह वीर समरागण में विजय से उल्लऔसित होते हुए क्रोध में भरकर आपकी सेना को मार डालने की इच्छा, से चारों ओर से उसके ऊपर टूट पड़े। राजन्। इसी प्रकार आपके महारथी वीर भी पाण्डव सेना का वध करने के लिये बड़े वेग से उसकी ओर दौड़े। पुरुषसिंह। रथ, हाथी, घोड़े, पैदल योद्धा और ध्वेजों से व्याप्ते हुई वह सारी सेना अभ्दु,त दिखायी दे रही थी। महाराज। शिखण्डीज ने कर्ण पर और धृष्टद्युम्ना ने विशाल सेना से घिरे हुए आपके पुत्र दु:शासन पर आक्रमण किया।
राजन्। नकुल ने वृषसेन पर, युधिष्ठिर ने चित्रसेन पर तथा सहदेव ने समरागण में उलूक पर चढ़ाई की। सात्य कि ने शकुनि पर, द्रौपदी के पांचों पुत्रों ने अन्ये कौरवों पर तथा युद्ध में सावधान रहने वाले महारथी अश्वत्थाषमा ने अर्जुन पर धावा किया। कृपाचार्य युद्धस्थलल में महाधनुर्धर युधामन्युर पर टूट पड़े और बलवान् कृतवर्मा ने उत्तमौजा पर आक्रमण किया। आर्य। महाबाहु भीमसेन अकेले ही सेनासहित समस्तप कौरवों और आपके पुत्रों को आगे बढ़ने से रोक दिया । महाराज। तदनन्तसर भीष्म‍न्तार शिखण्डी ने निर्भय से विचरते हुए कर्ण को अपने बाणों के प्रहार से रोका। अपनी गति अवरुद्ध हो जाने पर रोष के मारे कर्ण के ओठ फड़कने लगे। उसने तीन बाणों द्वारा शिखण्डी् को उसकी दोनों भौंहों के मध्य भाग में गहरी चोट पहुंचायी। उन बाणों को ललाट में धारण किये शिखण्डीो तीन उठे हुए शिखरों से संयुक्त रजतमय पर्वत के समान बड़ी शोभा पाने लगा। युद्धस्थमल में सूतपुत्र के द्वारा अत्यंन्त घायल किये हुए महाधनुर्धर शिखण्डीर ने नब्बेध पैने बाणों द्वारा कर्ण को भी समर भूमि में घायल कर दिया । महारथी कर्ण ने शिखण्डीख के घोड़ों को मारकर तीन बाणों द्वारा इसके सारथि को भी नष्ट कर दिया। फिर एक क्षुरप्र द्वारा उसकी ध्वजा को काट गिराया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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