महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 85 श्लोक 1-18

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:३२, १७ सितम्बर २०१५ का अवतरण ('==पञ्चाशीति (85) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)== <div ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

पञ्चाशीति (85) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: पञ्चाशीति अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

दुर्योधन का धृतराष्ट्र आदि की अनुमति से श्रीकृष्ण के स्वागत-सत्कार के लिए मार्ग में विश्रामस्थान बनवाना

वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमजेय ! दूतों के द्वारा भगवान् मधुसूदन के आगमन का समाचार जानकार धृतराष्ट्र के शरीर में रोमांच हो आया । उन्होनें महाबाहु भीष्म, द्रोण, संजय तथा परम बुद्धिमान विदुर का यथावत सत्कार करके मंत्रियों सहित दुर्योधन से इस प्रकार कहा-।'कुरुनंदन ! एक अद्भुत और अत्यंत आश्चर्य की बात सुनाई देती है । घर-घर में स्त्री-बालक और बूढ़े इसी की चर्चा करते हैं । जो यहाँ के निवासी हैं, वे तथा जो बाहर से आए हुए हैं, वे भी आदरपूर्वक उसी बात को कहते हैं । चौराहों पर और सभाओं में भी पृथक-पृथक वही चर्चा चलती है । 'वह बात यह है कि पांडवों की ओर से परम पराक्रमी भगवान् श्रीकृष्ण यहाँ पधारेंगे । वे मधुसूदन हम लोगों के माननीय तथा सब प्रकार से पूजनीय हैं । 'सम्पूर्ण लोकों का जीवन उन्हीं पर निर्भर है, क्योंकि वे सम्पूर्ण भूतों के अधीश्वर हैं । उन माधव में धैर्य, पराक्रम, बुद्धि और तेज सब कुछ है । 'उन नरश्रेष्ठ श्रीकृष्ण का यहाँ सम्मान होना चाहिए; क्योंकि वे सनातन धर्मस्वरूप हैं । सम्मानित होने पर वे हमारे लिए सुखदायक होंगे और सम्मानित न होने पर हमारे दुःखों के कारण बन जाएँगे । 'शत्रुओं का दमन करनेवाले भगवान् श्रीकृष्ण यदि हमारे सत्कार-साधनों से संतुष्ट हो जाएँगे, तब हम समस्त राजाओं में उनसे अपने सारे मनोरथ प्राप्त कर लेंगे । 'परंतप ! तुम श्रीकृष्ण के स्वागत के लिए आज से ही तैयारी करो । मार्ग में अनेक विश्रामस्थान बनवाओ और उनमें सब प्रकार की मनोनुकूल उपभोग-सामग्री प्रस्तुत करो । 'महाबाहु गांधारीनंदन ! तुम ऐसा प्रयत्न करो, जिससे श्रीकृष्ण के हृदय में तुम्हारे लिए प्रेम उत्पन्न हो जाये । अथवा भीष्मजी ! इस विषय में आपकी क्या सम्मति है ? '। तब भीष्म आदि सब लोगों ने उस प्रस्ताव की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए राजा धृतराष्ट्र से कहा- 'बहुत उत्तम बात है' । उन सबकी अनुमति जानकार राजा दुर्योधन ने उस समय जगह-जगह सुंदर सभामंडप तथा विश्रामस्थान बनवाने के लिए आदेश जारी किया । तब कारीगरों ने विभिन्न रमणीय प्रदेशों में अलग-अलग सब प्रकार के रत्नों से सम्पन्न अनेक विश्रामस्थान बनाये । नाना प्रकार के गुणों से युक्त विचित्र आसन, स्त्रियाँ, सुगंधित पदार्थ, आभूषण, महीन वस्त्र, गुणकारक अन्न, और पेय पदार्थ, भाँति-भाँति के भोजन तथा सुगंधित पुष्पमालाएँ आदि वस्तुओं को राजा दुर्योधन ने उन स्थानों में रखवाया ।विशेषत: वृकस्थल नामक ग्राम में निवास करने के लिए कुरुराज दुर्योधन ने जो विश्रामस्थल बनवाया था, वह बड़ा मनोरम तथा प्रचुर रत्नराशि से सम्पन्न था । मनुष्यों के लिए अत्यंत दुर्लभ यह सब देवोचित व्यवस्था करके राजा दुर्योधन ने धृतराष्ट्र को इसकी सूचना दे दी ।परंतु यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण उन विश्रामस्थानों तथा नाना प्रकार के रत्नों की ओर दृष्टिपात तक न करके कौरवों के निवासस्थान हस्तिनापुर की ओर बढ़ते चले गए ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में मार्ग में विश्रामस्थल निर्माण विषयक पचासीवाँ अध्याय पूरा हुआ ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।