महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 84 श्लोक 22-29
चतुरशीति (84) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)
दारुक ने भी घोड़ों को खोलकर शास्त्रविधि अनुसार उनकी परिचर्या की और उनका सारा साज-बाज उतार दिया तथा उन्हें बंधनमुक्त करके छोड़ दिया ।संध्या-वंदन आदि सारा कार्य समाप्त करके मधुसूदन श्रीकृष्ण ने कहा- 'युधिष्ठिर का कार्य सिद्ध करने के लिए आज रात में हम लोग यहीं रहेंगे' । उनका यह विचार जानकार सेवकों ने वहीं डेरे डाल दिये । क्षण भर में उन्होनें खाने-पीने के उत्तमोत्तम पदार्थ प्रस्तुत कर दिये । राजन् ! उस गाँव में जो प्रमुख ब्राह्मण रहते थे, वे श्रेष्ठ, कुलीन, लज्जाशील और ब्राह्मणोचित्त वृत्ति का पालन करनेवाले थे । उन्होनें शत्रुदमन महात्मा हृषीकेश के पास जाकर आशीर्वाद तथा मङ्गलपाठपूर्वक उनका यथोचित पूजन किया । सर्वलोकपूजित दशार्हनंदन श्रीकृष्ण की पूजा करके उन्होनें उन महात्मा को अपने रत्नसम्पन्न गृह समर्पित कर दिये अर्थात अपने-अपने घरों में ठहरने के लिए प्रभु से प्रार्थना की । तब भगवान् ने यह कहकर कि यहाँ ठहरने के लिए पर्याप्त स्थान है, उनका यथायोग्य सत्कार किया और ( उनके संतोष के लिए ) उन सबके घरों पर जाकर पुन: उनके साथ ही लौट आए । तत्पश्चात केशव ने वहीं उन ब्राह्मणों को सुस्वादु अन्न भोजन कराया, फिर स्वयं भी भोजन करके उन सबके साथ उस रात में वहाँ सुखपूर्वक निवास किया।
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