महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 77 श्लोक 16-35

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सप्तसप्ततितम (77) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: सप्तसप्ततितम अध्याय: श्लोक 16-35 का हिन्दी अनुवाद

उन हर्ष भरे योद्धाओं ने शक्ति, तोमर, प्रास, कुणय, कूट, मुद्गर, शूल, त्रिशूल, परिघ, भिन्दिपाल, परशु, खंग, हेमदण्ड, डंडे, मुसल और हल आदि आयुधों द्वारा अर्जुन को सब ओर से ढक दिया ।। तब अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा शत्रु पक्ष के सहस्त्रों रथों, हाथियों और घोड़ों को यमलोक भेजना आरम्भ किया। अर्जुन के धनुष से छुटे हुए बाणोद्वारा समरांगण में मारे जाते हुए कौरव महारथी भय के मारे इधर उधर छिपने लगे। उनमें से चार सौ वीर महारथी यत्नपूर्वक लड़ते रहे, जिन्हें अर्जुन अपने पैने बाणौं से यमलोक पहुँचा दिया। संग्राम में नाना प्रकार के चिन्हों से युक्त तीखे बाणों की मार खाकर वे सैनिक अर्जुन को छोड़कर दसों दिशाओं में भाग गये। युद्ध के मुहाने पर भागते हुए उन योद्धाओं का महान् कोलाहल वैसा ही जान पड़ता था, जैसा कि समुद्र के महान् जल प्रवाह के पर्वत से टकराने पर होता है। मान्यवर नरेश ! उस सेना को अपने बाणों से अत्यन्त घायल करके भगा देने के पश्रात् कुन्तीकुमार अर्जुन कर्ण की सेना के सामने चले। शत्रुओं की ओर उन्मुख हुए उन के रथ का महान् शब्द वैसा ही प्रतीत होता था, जैसा कि पहले किसी सर्प को पकड़ने के लिये झपटते हुए गरूड़ के पंख से प्रकट हुआ था। उस शब्द को सुनकर महाबली भीमसेन अर्जुन के दर्शन की लालसा से बडे़ प्रसन्न हुए । महाराज ! पार्थ का आना सुनते ही प्रतापी भीमसेन प्राणों का मोह छोड़कर आपकी सेना का मर्दन करने लगे। प्रतापी वायुपुत्र भीमसेन वायु के समान वेगशाली थे । बल और पराक्रम में भी वायु की ही समानता रखते थे । वे उस रणभूमि में वायु के समान विचरण करने लगे।
महाराज ! प्रजानाथ ! राजेन्द्र ! उन से पीड़ित हुई आपकी सेना समुद्र में टूटी हुई नाव के समान पथभ्रष्ट होने लगी। उस समय भीमसेन अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए आपकी उस सेना को यमलोक भेजने के लिये भंयकर बाणों द्वारा छिन्न भिन्न करने लगे। भारत ! उस समय प्रलयकालीन काल के समान भीमसेन के अलौकिक बल को देखकर रणभूमि में सारे योद्धा इधर-उधर भटकने लगे। भारतनन्दन ! भंयकर बलशाली अपने सैनिकों को भीमसेन के द्वारा इस प्रकार देखकर राजा दुर्योधन ने उन से निम्नांकित वचन कहा। भरतश्रेष्ठ ! उसने अपने महाधनुर्धर समस्त सैनिकों और योद्धाओं को रणभूमि में इस प्रकार आदेश देते हुए कहा-तुम सब लोग मिलकर भीमसेन को मार डालो। उनके मारे जाने मैं सारी पाण्डव सेना को मरी हुई ही मानता हूँ । आपके पुत्र की इस आज्ञा को शिरोधार्य करके समस्त राजाओं ने चारों ओर से बाण वर्षा करके भीमसेन को ढक दिया। राजन् ! राजेन्द्र ! बहुत से हाथियों, विजयाभिलाषी पैदल मनुष्यों तथा रथियों ने भी भीमसेन को घेर लिया था। नरेश्वर ! उन शूरवीरों द्वारा सब ओर से धिरे हुए शौर्यसम्पन्न भरतश्रेष्ठ भीम नक्षत्रों से घिरे हुए चन्द्रमा कें समान सुशोभित होने लगे। जैसे घेरे से घिरे हुए पूर्णिंमा के चन्द्रमा प्रकाशित होते हों, उसी प्रकार युद्ध स्थल में दर्शनीय नरश्रेष्ठ भीमसेन शोभा पा रहा थे । महाराज ! वे अर्जुन के समान ही प्रतीत होते थे । उन में और अर्जुन में कोई अन्तर नहीं रह गया था। तदनन्तर क्रोध से लाल आँखें किये वे समस्त शूरवीर भूपाल भीमसेन को मार डालने की इच्छा से उनके उपर बाणों की वर्षा करने लगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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