महाभारत आदि पर्व अध्याय 59 श्लोक 1-10

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एकोनषष्टितम (59) अध्‍याय: आदि पर्व (अंशावतरण पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: एकोनषष्टितमोअध्‍याय अध्‍याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद

महाभारत का उपक्रम

शौनकजी बोले- तात सूतनन्‍दन ! आपने भृगुवंश से ही प्रारम्‍भ करके जो मुझे यह सब महान् उपाख्‍यान सुनाया है, इससे मैं आप पर बहुत प्रसन्न हूं। सूतपुत्र ! अब मैं पुन: आपसे यह कहना चाहता हूं कि भगवान् व्‍यास ने जो कथाऐं कही हैं, उनका मुझसे यथावत् वर्णन कीजिये। जिसका पार होना कठिन था, ऐसे सर्पयज्ञ में आये हुए महात्‍माओं एवं सभासदों को जब यज्ञकर्म से अवकाश मिलता था, उस समय उनमें जिन-जिन विषयों को लेकर जो-जो विचित्र कथाऐं होती थीं उन सबका आपके मुख से हम यथार्थ वर्णन सुनना चाहते हैं। सूतनन्‍दन ! आप हमसे अवश्‍य कहें। उग्रश्रवाजी ने कहा- शौनक ! यज्ञकर्म से अवकाश मिलने पर अन्‍य ब्राह्मण तो वेदों की कथाऐं कहते थे, परंतु व्‍यास देवजी अति बिचित्र महाभारत की कथा सुनाया करते थे शौनकजी बोले सूतनन्‍दन ! महाभारत नामक इतिहास तो पाण्‍डवों के यश का विस्‍तार करने वाला है। सर्पयज्ञ के विभिन्न कर्मों के बीच में अवकाश मिलने पर जब राजा जनमेजय प्रश्‍न करते, तब श्रीकृष्‍णद्वैयापन व्‍यासजी उन्‍हें विधि पूर्वक महाभारत की कथा सुनाते थे। मैं उसी पुण्‍यमयी कथा को विधि पूर्वक सुनना चाहता हूं । यह कथा पवित्र अन्‍त:करण वाले महर्षि वेदव्‍यास के हृदय रुपी समुद्र से प्रकट हुए सब प्रकार के शुभ विचार रुपी रत्नों से परिपूर्ण है। साधुशिरोमणे ! आप इस कथा को मुझे सुनाइये । उग्रश्रवाजी ने कहा- शौनक ! मैं बड़ी प्रसन्नता के साथ महाभारत नामक उत्तम उपाख्‍यान का आरम्‍भ से ही वर्णन करुंगा, जो श्रीकृष्‍णद्वैपायन वेदव्‍यास को अभिमत है। विप्रवर ! मेरे द्वारा कही जाने वाली इस सम्‍पूर्ण महाभारत कथा को आप पूर्णरुप से सुनिये। यह कथा सुनाते समय मुझे भी महान् हर्ष प्राप्‍त होता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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