महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 80 श्लोक 1-16

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०८:२८, १७ सितम्बर २०१५ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

अशीतितम (80) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: अशीतितम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना

संजय कहते हैं- राजन् ! कौरव सेना के प्रमुख वीरों ने कुन्तीपुत्र भीमसेन पर धावा किया था और वे उस सैन्य सागर में डूबते-से जान पड़ते थे। भारत ! उस समय उनका उद्धार करने के लिये अर्जुन ने सूतपुत्र की सेना को छोड़कर उधर ही आक्रमण किया और बाणों द्वारा शत्रुपक्ष के बहुत-से वीरों को यमलोक भेज दिया। तदनन्तर अर्जुन के बाणजाल आकाश के विभिन्न भागों में छा गये, वे तथा और भी बहुत-से बाण आपकी सेना का संहार करते दिखायी दिये। जहां पक्षियों के झुंड उड़ा करते थे, उस आकाश को बाणों से भरते हुए महाबाहु धनंजय वहां कौरव-सैनिकों के काल बन गये। पार्थने भल्लों, क्षुरप्रो तथा निर्मल नाराचों द्वारा शत्रुओं का अंग-अंग काट डाला और उनके मस्तक भी धड़ से अलग कर दिये। जिनके शरीरों के टुकड़े-टुकडे़ हो गये थे, कवच कटकर गिर गये थे और मस्तक भी काट डाले गये थे, ऐसे बहुत-से योद्धा वहां पृथ्वी पर गिरे थे और गिरते जा रहे थे, उन सबकी लाशों से वहां की भूमि सब ओर से पट गयी थी। जिनपर अर्जुन के बाणों की बारंबार मार पड़ी थी, वे रथके घोड़े, रथ और हाथी छिन्न-भिन्न और विध्यस्त हो गये थे; उनका एक-एक अंग अथवा अवयव कटकर अलग हो गया था। इन सबके द्वारा वहां की भूमि आच्छादित हो गयी थी।
राजन् ! उस समय रणभूमि महावैतरणी नदी के समान अत्यन्त दुर्गम, बहुत ऊॅची-नीची और भयंकर हो गयी थी, उसकी ओर देखना भी अत्यन्त कठिन जान पड़ता था। योद्धाओं के टूटे-फूटे रथों से रणभूमि ढक गयी थी। उन रथों के ईषादण्ड, पहिये और धुरे खण्डित हो गये थे। कुछ रथों के घोड़े और सारथि जीवित थे और कुछ के अश्व एवं सारथि मार डाले गये थे। किरीटधारी अर्जुन के उत्तम बाणों से आहत होकर नित्य मद बहानेवाले, कवचधारी एवं मंगलमय लक्षणों से युक्त चार सौ रोषभरे हाथी धराशायी हो गये। उन हाथियों पर सुवर्णमय कवच और सोने के आभूषण धारण करनेवाले योद्धा बैठे थे और क्रूर स्वभाव वाले महावत उन्हें अपने पैरों की एडि़यों तथा अंगूठों से आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे थे। उन सबके साथ गिरे हुए वे हाथी जीव-जन्तुओं सहित धराशायी हुए महान् पर्वत के शिखरों के समान सब और पडे़ थे। अर्जुन के बाणों से विशेष घायल होकर गिरे हुए उन गजराजों के शरीरों से रणभूमि ढक गयी थी। जैसे अंशुमाली सूर्य बादलों को छिन्न-भिन्न करते हुए प्रकाशित हो उठते हैं, उसी प्रकार अर्जुन का रथ सब ओर से मेंघों की घटा के समान काले मदस्त्रावी गजराजों को विदीर्ण करता हुआ वहां आ पहुंचा था। मारे गये हाथियों, मनुष्यों और घोड़ों से; टूट-फूटकर बिखरे हुए अनेकानेक रथों से; शस्त्र, यन्त्र तथा कवचों से रहित हुए युद्धकुशल प्राणशून्य योद्धाओं से और इधर-उधर फेंके हुए आयुधों से अर्जुन ने वहां के मार्ग को आच्छादित कर दिया था। उन्होंने आकाश में मेंघ के समान भयानक वज्रपात के शब्द को तिरस्कृत करने वाले भयंकर स्वर में अपने विशाल गाण्डीव धनुष की टंकार की। तदनन्तर अर्जुन के बाणों से आहत हुई कौरवसेना समुद्र में उठे तूफान से टकराये हुए जहाज के समान विदीर्ण हो उठे।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।