महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 79 श्लोक 80-95

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एकोनाशीतितम (79) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 80-95 का हिन्दी अनुवाद

वध की इच्छा से आक्रमण करनेवाले उन सब योद्धाओं द्वारा प्रयत्नपूर्वक चलाये गये उन उत्तम बाणों को महासमर में युद्धकुशल पाण्डुपुत्र अर्जुन ने तुरन्त ही अपने बाणों द्वारा काट डाला और उन सबकी छाती में तीन-तीन बाण मारे।। खींचे हुए गाण्डीव धनुषरूपी पूर्ण मण्डल से युक्त अर्जुनरूपी सूर्य अपनी बाणरूपी प्रचण्ड किरणों से प्रकाशित हो शत्रुओं को संताप देते हुए ज्येष्ठ और आषाढ़ के मध्यवर्ती उस सूर्य के समान सुशोभित हो रहे थे, जिसपर घेरा पड़ा हुआ हो। तदनन्तर द्रोणपूत्र अश्वत्थामा ने दस बाणों से अर्जुन को, तीन से भगवान् श्रीकृष्ण को और चार से उनके चारों घोडों को घायल कर दिया। तत्पश्चात् वह ध्वजापर बैठे हुए वानर के ऊपर बाणों तथा उत्तम नारचों की वर्षा करने लगा। तब अर्जुन ने तीन बाणों से चमकते हुए उसके धनुष को, एक छुरके द्वारा सारथि के मस्तक को, चार बाणों से उसके चारों घोडों को तथा तीन से उसके ध्वज को भी अश्वत्थामा के रथ से नीचे गिरा दिया। फिर अश्वत्थामा ने रोष में भरकर मणि, हीरा और सुवर्ण अलंकृत तथा तक्षक के शरीर की भांति अरूण कांतिवाले दूसरे बहुमूल्य धनुष को हाथ में लिया, मानो पर्वत के किनारे से विशाल अजगर को उठा लिया हो। अपने टूटे हुए धनुष को पृथ्वी पर फेंक कर अधिक गुणशाली अश्वत्थामा ने उस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायी और किसी से पराजित न होने वाले उन दोनों नरश्रेष्ठ श्रीकृष्ण और अर्जुन को उत्तम बाणोंद्वारा निकट से पीड़ित एवं घायल करना आरम्भ किया।
युद्ध के मुहाने पर खडे़ हुए कृपाचार्य, कृतवर्मा और आप के पुत्र दुर्योधन-ये तीन महारथी युद्धस्थल में अनेक बाणों द्वारा पाण्डवप्रवर अर्जुन को चोट पहुंचाने लगे, मानो बहुत-से मेंघ सूर्यदेव पर टूट पडे़ हों। सहस्त्र भुजाओं वाले कात्तवीर्य अर्जुन के समान पराक्रमी कुन्तीकुमार अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा कृपाचार्य के बाण-सहित धनुष, घोडे़, ध्वज और सारथि को भी उसी प्रकार बींध डाला, जैसे पूर्वकाल में वज्रधारी इन्द्र ने राजा बलि के धनुष आदि को क्षतिग्रस्त कर दिया था। उस महासमर में अर्जुन के बाणों द्वारा जब कृपाचार्य के आयुध नीचे गिरा दिये गये और ध्वज खण्डित कर दिया गया, उस समय किरीटधारी अर्जुन ने जैसे पहले भीष्मजी को सहस्त्रों बाणों से आवेष्टित कर दिया था, उसी प्रकार कृपाचार्य को हजारों बाणों से बांध-सा लिया। तत्पश्चात् प्रतापी अर्जुन ने गर्जना करनेवाले आपके पुत्र दुर्योधन के ध्वज और धनुष को अपने बाणों द्वारा काट दिया। फिर कृतवर्मा के सुन्दर घोडों को मार डाला और उसकी ध्वजा के भी टुकडे़-टुकडे़ कर डाले। इसके बाद अर्जुन ने बड़ी उतावली के साथ घोडे़, सारथि, धनुष और ध्वजाओं सहित रथों, हाथियों और अश्वों को भी मारना आरम्भ किया। फिर तो पानी में टूटे हुए पुल के समान आपकी वह विशाल सेना सब ओर बिखर गयी। तदनन्तर श्रीकृष्ण ने व्याकुल हुए समस्त शत्रुओं को अपने रथ के द्वारा शीघ्र ही दाहिने कर दिया।
फिर वृत्रासुर को मारने की इच्छा से आगे बढ़ने वाले इन्द्र के समान वेगपूर्वक आगे जाते हुए धनंजय पर दूसरे योद्धाओं ने ऊॅचे किये ध्वजवाले सुसज्जित रथों द्वारा पुनः धावा किया। अर्जुन के सम्मुख जाते हुए उन शत्रुओं के सामने पहुंच का महारथी शिखण्डी, सात्यकि, नकुल और सहदेव ने उन्हें रोका और पैने बाणोंद्वारा उन सबको विदीर्ण करते हुए भयंकर गर्जना की। तत्पश्चात् सृंजयों के साथ भिडे़ हुए कौरव वीर कुपित हो शीघ्रगामी और तेज बाणोंद्वारा एक दूसरे पर उसी प्रकार चोट करने लगे, जैसे पूर्वकाल में देवताओं के साथ युद्ध करने वाले असुरों ने संग्राम में परस्पर प्रहार किया था। शत्रुओं को तापने वाले नरेश ! हाथीसवार, घुड़सवार तथा रथी योद्धा विजय चाहते हुए स्वर्गलोक में जाने के लिये उत्सुक हो शत्रुओं पर टूट पड़ते, उस स्वर से गर्जते और अच्छी तरह छोडे़ हुए बाणों द्वारा एक दूसरे को पृथक्-पृथक् गहरी चोट पहुंचाते थे। महाराज ! उस महासमर में महामनस्वी श्रेष्ठ योद्धाओं ने परस्पर छोडे़ हुए बाणों द्वारा घोर अन्धकार फैला दिया। चारों दिशाएं, विदिशाएं तथा सूर्य की प्रभा भी उस अन्धकार से आच्छादित हो गयीं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वं में संकुल युद्ध विषयक उन्यासीवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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