महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 36 श्लोक 16-29

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षट्त्रिंश (36) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: षट्त्रिंश अध्याय: श्लोक 16-29 का हिन्दी अनुवाद

यदि क्रोध और मोह के वशीभूत होकर मनको प्रिय या अप्रिय लगने वाले शुभ कार्य को जाते हैं तो उनके निवारण के लिये दृष्‍टान्‍त प्रतिपादक शास्‍त्र की दृष्टियों से उपवास आदि के द्वारा शरीर को सुखाना ही करने योग्‍य प्रायश्चित माना गया है। इसके सिवा हविष्‍यान्‍न भोजन मन्‍त्रों के जप तथा अन्‍यान्‍य प्राश्चितों से भी क्रोध आदि के कारण किये गये पाप की शान्ति होती है । यदि राजा दण्‍डनीय पुरुषों को दंड न दे तो उसे अपनी शुद्धि के लिए एक रात का वास करना चाहिए यदि पुरोहित राजा को ऐसा अवसर पर कर्तव्य का उपदेश ना दे तो उसे तीन रात का उपवास करना चाहिए । यदि पुत्र आदि की मृत्यु के कारण शोक करने वाला पुरुष आमरन उपवास करने के लिए बैठ जाए अथवा शस्‍त्र आदि से आत्मघात की चेष्‍टा करे परंतु उसकी मृत्यु न हो उस दशा मे भी उस निध कर्म के लिए जो चेष्‍टा की गई थी उसके दोष की निर्वती के लिए उसी तीन रात का उपवास बताना चाहिए ।
परंतु जो पुरुष अपनी जाति आश्रम तथा कुल के धर्मों का सर्वथा परित्याग कर देते हैं और जो लोग धर्म मात्र को छोड़ बैठते हैं उसके लिए कोई धर्म (प्रायश्चित) नहीं है अर्थात किसी भी प्रायश्चित से उनकी शुद्धि नहीं हो सकती है । यदि प्रायश्चित की आवश्यकता पड़ जाए और धर्म के निर्णय में संदेह उपस्थित हो जाए तो वेद और धर्मशास्त्र को जानने वाले दस अथवा निरंतर धर्म का विचार करने वाले तीन ब्राह्माण उस प्रश्‍न पर विचार करके जो कुछ कहे उसे ही धर्म मानना चाहिए । बेल, मिट्टी, छोटी छोटी चीटियाँ, श्‍लेष्‍मा तक (लसोडा) और विष– ये सब ब्राह्माण के लिए अभक्ष्‍य है। कांटो से रहित जो मत्स्य हैं वे सभी ब्राह्माणों के लिए आवश्यक है कश्यप और उसके सिवा अन्‍य चार पैर वाले सभी जीव अभक्ष्‍य है मेंढक और जल मे उत्पन्‍न होने वाले अन्‍य जीव भी अभक्ष्‍य ही है। भास, हंस, गरुड़, चक्रवाक, बतक, बगुले, कौए मदगु, गीध, बाज, उल्लू, कच्चे मांस खाने वाले वे सभी हिंसक पशु चार पैर वाले जीव ओर पक्षी तथा दोनों और दांत और चार दाढों वाले सभी जीवों का अभक्ष्‍य हैं। भेड, घोडी, गदही, ऊंटनी, दिन के भीतर की ब्‍याई हुई गाय मानवी स्त्री और हिरनीयों का दूध ब्राह्माण न पीये । यदि किसी के यहाँ मरना शौच या जनाना शौच हो गया हो तो उसके यहाँ दस दिनों तक कोई अन्‍न नहीं ग्रहण करना चाहिए इसी प्रकार ब्‍याइ हुइ गाय का दूध भी यदि दस दिन के भीतर का हो तो उसे नहीं पीना चाहिए। राजा का अन्‍न तेज हर लेता है शुद्र का ब्रह्मतेज को नष्ट कर देता है सुनार के तथा पति और पुत्र से हीन युवती का अन्‍न आयु का नाश करता है । व्याज खोर अन्‍न विस्टा के समान है और वेश्‍या के वीर्य समान है जो अपनी स्त्री के पास उसकी उपपति का आना सेह लेते है उसके कायरों का तथा सदा स्त्री के वशीभूत करने वाले पुरुषों का अन्‍न वीर्य के तुल्‍य है । जिसने यज्ञ दीक्षा ली हो उनका आना अन्‍न अगिनषोमिय होम विशेष के लिए पहले आगाह है। कंजूस यज्ञ बेचने वाले बढ़ई चमार या मोची व्‍यभिचारिणी स्त्री धोबी वेद तथा चौकीदार के अन्‍न भी खाने योग्य नहीं है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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