महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 82 श्लोक 1-14

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द्वयशीतितम (82) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: द्वयशीतितम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

सात्यकि के द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध, कर्ण का पराक्रम एवं दुःषासन एवं भीमसेन का युद्ध

संजय कहते हैं- राजन् ! जब कौरव सैनिक बडे़ वेग से भागने लगे, उस समय जैसे वायु मेंघों के समूह को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार सूतपुत्र कर्ण ने श्वेत धोड़ों वाले रथ के द्वारा आक्रमण करके अपने विशाल बाणों से पांचाल राजकुमारों का संहार आरम्भ किया। उसने अंजलिक नामवाले बाणेां से जनमेंजय के सारथि को रथ से नीचे गिराकर उसके घोड़ों को भी मार डाला। फिर शतानीक तथा सुतसोम को भल्लों से ढक दिया और उन दोनों के धनुष भी काट डाले। तत्पश्चात् छः बाणों से युद्धस्थल में धृष्टधुम्न को घायल कर दिया और उनके घोड़ों को भी वेगपूर्वक मार डाला। इसके बाद सूतपुत्र ने सात्यकि के घोड़ों को नष्ट करके केकयराजकुमार विशोक का भी वध कर डाला। केकयराजकुमार के मारे जाने पर वहां के सेनापति उग्रकर्मा ने कर्ण पर धावा किया। उसने धनुष को तीव्र वेग से संचालित करते हुए भयंकर वेगवाले बाणों द्वारा कर्ण के पुत्र प्रसेन को भी घायल कर दिया। तब कर्ण ने हॅसकर तीन अर्धचन्द्राकार बाणों से उग्रकर्मा की दोनों भुभुजाएं और मस्तक काट डाले। वह प्राणशुन्य होकर कुल्हाड़ी से काटे हुए शाखू के पेड़ के समान रथ से पृथ्वी पर गिर पड़ा। उधर कर्ण ने जब सात्यकि के घोडे़ मार डाले, तब कर्णपुत्र प्रसेन ने तीव्रगामी पैने बाणों द्वारा शिनिप्रवर सात्यकि को ढक दिया।
इसके बाद सात्यकि के बाणों से चोट खाकर वह नाचता हुआ-सा पृथ्वी पर गिर पडा। पुत्र के मारे जाने पर क्रोध से व्याकुलचित्त हुए कर्ण ने शिनिप्रवर सात्यकि का वध करने के लिये उनपर एक शत्रुनाशक बाण छोड़ा और कहा- सात्यके ! अब तू मारा गया। परन्तु उसके उस बाण को शिखण्डी ने तीन बाणों द्वारा काट दिया और उसे भी तीन बाणों से पीड़ित कर दिया। तब कर्ण दो छुरों से शिखण्डी की ध्वजा और धनुष काट कर नीचे गिरा दिये। फिर भयंकर वीर कर्ण ने छः बाणों से शिखण्डी को घायल कर दिया और धृष्टधुम्न के पुत्र का मस्तक काट डाला। साथ ही महामनस्वी अधिरथपुत्र ने अत्यन्त तीखे बाण से सुतसोम को भी क्षत-विक्षत कर दिया। राजसिंह ! इस प्रकार जब वह भयंकर घमासान युद्ध चलने लगा और धृष्टधुम्न का पुत्र मारा गया, तब भगवान् श्रीकृष्ण ने वहाँ अर्जुन से कहा-पार्थ ! कर्ण पांचालों का संहार कर रहा है, अतः आगे बढ़ो और उसे मार डालो।
तदनन्तर सुन्दर भुजाओं वाले नरवीर अर्जुन हॅसकर भय के अवसर पर घायल सैनिकों की रक्षा के लिये रथ समुहों के अधिपति विशाल रथ के द्वारा सूतपुत्र के रथ की ओर शीघ्रतापूर्वक आगे बढ़े । उन्होनें भयानक टंकार करनेवाले गाण्डीव धनुष को फैलाकर उसकी प्रत्यंचा द्वारा अपनी हथेली में आघात करते हुए सहसा बाणों द्वारा अन्धकार फैला दिया और शत्रुपक्ष के हाथी, घोडे़, रथ एवं ध्वज नष्ट कर दिये। उस भयंकर मुहूर्त में गाण्डीव धनुष की प्रत्यंचा को मण्डलाकार करके जब किरीटधारी अर्जुन शत्रुसेना पर टूट पडे़ तथा बल और प्रताप में बढ़ने लगे, उस समय धनुष की टंकार की प्रतिध्वनि आकाश में गूँठी, जिससे डरे हुए पक्षी पर्वतों की कन्दराओं में छिप गये। प्रमुख वीर भीमसेन पीछे से पाण्डुनन्दन अर्जुन की रक्षा करते हुए रथ के द्वारा उनका अनुसरण करने लगे। वे दोनों पाण्डवराजकुमार बड़ी उतावली के साथ शत्रुओं से जूझते हुए कर्ण की ओर बढ़ने लगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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