महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 83 श्लोक 16-32

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त्रयशीतितम (83) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: त्रयशीतितम अध्याय: श्लोक 16-32 का हिन्दी अनुवाद

उन्होंने वहाँ कर्ण, दुर्योधन, कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा को सम्बोधित करके कहा-आज में पापी दुःशासन को मार डालता हूँ । तुम समस्त योद्धा मिलकर उसकी रक्षा कर सको तो करो। ऐसा कहकर अत्यन्त बलवान् वेगशाली अद्वितीय वीर भीमसेन अपने रथ से कूदकर पृथ्वी पर आ गये और दुःशासन को मार डालने की इच्छा से सहसा उसकी ओर दौडे़। उन्होंने युद्ध में पराक्रम करके दुर्योधन और कर्ण के सामने ही दुःशासन को उसी प्रकार धर दबाया, जैसे सिंह किसी विशाल हाथी पर आक्रमण कर रहा हो। वे यत्नपूर्वक उसी की ओर दृष्टि जमाये हुए थे। उन्होंने उत्तम धारवाली सफेद तलवार उठा ली और उसके गले पर लात मारी। उस समय दुःशासन थरथर काँप रहा था। वे उससे इस प्रकार बोले-दुयात्मन् ! याद है न वह दिन, जब तुमने कर्ण और दुर्योधन के साथ बडे़ हर्ष में भरकर मुझे बैल कहा था। राजसूययज्ञ में अवभृथस्नान से पवित्र हुए महारानी द्रौपदी के केश तूने किस हाथ से खींचे थे ? बता, आज भीमसेन तुझसे यह पूछता और इसका उत्तर चाहता है। भीमसेन का यह अत्यन्त भयंकर वचन सुनकर दुःशासन ने उनकी ओर देखा। देखते ही वह क्रोघ से जल उठा। युद्धस्थल में उनके वैसा कहने पर उसकी त्यौरी बदल गयी थी; अतः वह समस्त कौरवों तथा सोमकों के सुनते-सुनते मुस्कराकर रोषपूर्वक बोला-यह है हाथी की सूँड़ के समान मोटा मेरा हाथ, जो रमणी के ऊँचे उरोजों का मर्दन, सहस्त्रों गोदान तथा क्षत्रियों का विनाश करनेवाला है।
भीमसेन! इसी हाथ से मेंने सभा में बैठे हुए कुरूकुल के श्रेष्ठ पुरूषों और तुम लोगों के देखते-देखते द्रौपदी के केश खींचे थे। युद्धस्थल में ऐसी बात कहते हुए राजकुमार दुःशासन की छाती पर चढ़कर भीमसेन ने उसे दोनों हाथों से बलपूर्वक पकड़ लिया ओर उच्चस्वर में सिंहनाद करते हुए समस्त योद्धाओं से कहा- आज दुःशासन की बाँह उखाड़ी जा रही है। यह अब अपने प्राणों को त्यागना ही चाहता है। जिसमें बल हो, वह आकर इसे मेंरे हाथ से बचा ले। इस प्रकार समस्त योद्धाओं को ललकार कर महाबली, महामनस्वी, कुपित भीमसेन ने एक ही हाथ से वेगपूर्वक दुःशासन की बाँह उखाड़ ली। उसकी वह बाँह वज्र के समान कठोर थी। भीमसेन समस्त वीरों के बीच उसी के द्वारा उसे पीटने लगे। इसके बाद पृथ्वी पर पडे़ हुए दुःशासन की छाती फाड़कर वे उसका नरम-नरम रक्त पीने का उपक्रम करने लगे।
राजन् ! उठने की चेष्टा करते हुए दुःशासन को पुनः गिराकर बुद्धिमान् भीमसेन ने अपनी प्रतिज्ञा सत्य करने के लिये तलवार से आपके पुत्र का मस्तक काट डाला और उसके कुछ-कुछ गरम रक्त को वे स्वाद ले-लेकर पीने लगे। फिर क्रोध में भरकर उसकी और देखते हुए इस प्रकार बोले-मेंने माता के दूध का, मधु और घी का, अच्छी तरह तैयार किये हुए मधूक पुष्प-निर्मित पेय पदार्थ का, दिव्य जल के रसका, दूध और दही से बिलाये हुए ताजे माखन का भी पान या रसास्वादन किया है; इन सबसे तथा इनके अतिरिक्त भी संसार में जो अमृत के समान स्वादिष्ट पीने योग्य पदार्थ हैं, उन सबसे भी मेंरे इस शत्रु के रक्त का स्वाद अधिक है। तदनन्तर भयानक कर्म करनेवाले भीमसेन क्रोध से व्याकुलचित्त हो दुःशासन को प्राणहीन हुआ देख जोर-जोर से अट्टहास करते हुए बोले-क्या करूँ ! मृत्यु ने तुझे दुर्दशा से बचा लिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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