महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 41 श्लोक 1-17
एकचत्वारिंश (41) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
राजा युधिष्ठिर धृतराष्ट्र के अधीन रहकर राज्य की व्यवस्था के लिये भाइयों तथा अन्य लोगो की विभिन्न कार्यो पर नियुक्त करना
वैशम्पायनजी कहते है- जनमेजय मंत्री, प्रजा आदि के उन देश कालोचित वचन को सुनकर राजा युधिष्ठिर ने इसका उत्तर देते हुए कहा- । निश्चय ही हम सभी पांडव धन्य जिनके गुण का बखान यहाँ पधारे हुए सभी ब्राह्माण कर रहे हैं। हममें वास्तव में वे गुण हो या न हो आप लोग हमें गुणवान बता रहें हैं । हमारा विश्वास है कि आप लोग निश्चय ही हमे अपन अनुग्रह का पात्र समझते हैं तभी तो ईर्ष्या और द्वेष छोड़कर हमें इस प्रकार गुण सपन्न बता रहे हैं। महाराजा धृतराष्ट्र मेरे पिता (ताउ) और श्रेष्ठ देवता है। जो लोग मेरा प्रिय करना चाहते हो उन्हें सदा उन की आज्ञा का पालन तथा हित साधना में रहना चाहिए । अपने भाई बंधुओं का इतना बड़ा संहार करके में इन्हीं महाराज के लिए जी रहा हूँ मुझे नित्य-निरंतर आलस्य छोड़कर इन की सेवा शुश्रूषा में संलग्न रहना है ।यदि आप सब सुहृदों का मुझपर अनुग्रह हो तो आप लोग महाराज राष्ट्र के प्रति वैसा ही भाव और बर्ताव बनाए रखें इससे पहले रखते थे । ये ही संपूर्ण जगत की आप लोगों के और मेरे भी स्वामी है यह कि सारी पृथ्वी के समस्त पांडव के अधिकार में है आप सब लोग मेरी प्रार्थना को अपने हृदय स्थान दे ।
इसके बाद राजा युधिष्ठिर ने नगर और जनपद के निवासियों को आप लोगों इच्छानुसार अपने अपने स्थान को पधारे किस प्रकार उस सब को विदा करके कुरुनंदन युधिष्ठिर ने कुन्ती कुमार भीमसेन को युवराज के पद पर प्रतिष्ठित किया । फिर उन्होंने बड़ी प्रसन्नता के साथ विदुरजी को मंत्रणा कर्तव्य निश्चय तथा छहों गुणो के चिंतन के कार्य में नियुक्त किया । कौन सा कार्य और कौन सा नहीं हुआ इसकी जांच करने तथा आय और व्यय पर विचार कर के कार्य में सर्वगुण संपन्न वयोवृद्ध संजय को लगाया । सेना की गणना करना भोजन और वेतन देना तथा उसके काम की देखभाल करना- सब कार्यों के भार राजा युधिष्ठिर ने नकुल को सौंप दिया । महाराजा शत्रुओं के देश पर चढाई करने और दुष्टों का दमन करने के कार्य में युधिष्ठिर ने अर्जुन को नियुक्त किया। ब्राह्माणों और देवताओं से संबंध रखने वाले कार्यों पर तथा अन्यान्य ब्राह्मणाचित कर्तव्यों पर सदा के लिए पुरोहित में श्रेष्ठ धौम्यजी जी की नियुक्ति की गई । प्रजानाथ शाहदेव को राजा युधिष्ठिर ने सदा ही अपने पास रहने का आदेश दिया उन्हें सभी अवस्थाओं में राजा की रक्षा का काम सौंपा गया था। प्रसन्न हुए महाराज युधिष्ठिर ने जिन जिन लोगों के कार्यों के योग्य समझा उन-उनकों उन्हीं उन्हीं कार्यों पर नियुक्त किया। तत्पश्चात शत्रु वीरों का संहार करने वाले धर्म वत्सल धर्मात्मा युधिष्ठिर ने विदूर, संजय तथा परम बुद्धिमान युयुत्सु से कहा- आप लोगों को सदा सावधान रहकर प्रतिदिन उठ उठ कर मेरी तो महाराजा धृतराष्ट्र की सेवा के सारे कार्य यथोचित रुप से संपन्न करना चाहिए। पुरवासियों और जनपद निवासियों के भी जो जो कार्य हो उन्हीं इन्ही महाराज की आज्ञा लेकर पृथक पृथक पूर्ण करना चाहिये ।
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