महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 91 श्लोक 61-69

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एकनवतितम (92) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकनवतितम अध्याय: श्लोक 61-69 का हिन्दी अनुवाद

सभी अंगों में बाणों व्याप्त और खून से लथपथ हुआ कर्ण का शरीर अपनी किरणों से प्रकाशित होने वाले अंशुमाली सूर्य के समान शोभा पा रहा था। बाणमयी उदीप्त किरणों से शत्रु की सेना को तपाकर कर्णरूपी सूर्य बलवान् अर्जुनरूपी काल से प्रेरित हो अस्ताचल को जा पहुँचा। जैसे अस्ताचल को जाता हुआ सूर्य अपनी प्रभा को लेकर चला जाता है, उसी प्रकार वह बाण कर्ण के प्राण लेकर चला गया। माननीय नरेश! दान देते समय जो दूसरे दिन के लिये वादा नहीं करता था, उस सूतपुत्र कर्ण का अंजलिक नामक बाण से कटा हुआ देहसहित मस्तक अपराहृ काल में धराशायी हो गया। उस बाण ने सारी सेना के ऊपर-ऊपर जाकर अर्जुन के शत्रुभूत कर्ण के शरीर सहित मस्तक को वेगपूर्वक अनायास ही काट डाला था। शूरवीर कर्ण को बाण से व्याप्त और खून से लथपथ होकर पृथ्वी पर पड़ा हुआ देख मद्रराज शल्य उस कटी हुई ध्वजा वाले रथ के द्वारा ही वहाँ से भाग खडे़ हुए। कर्ण के मारे जाने पर युद्ध में अत्यन्त घायल हुए कौरव सैनिक अर्जुन के प्रज्वलित होते हुए महान ध्वज को बारंबार देखते हुए भय से पीड़ित हो भागने लगे। सहस्त्र नेत्रधारी इन्द्र के समान पराक्रमी कर्ण का सहस्त्रदल कमल के समान एक सुन्दर मस्तक उसी प्रकार पृथ्वी पर गिर पड़ा, जैसे सायंकाल में सहस्त्र किरणों वाले सूर्य का मण्डल अस्त हो जाता है। जिसकी छाती चैड़ी और नेत्र कमल के समान सुन्दर थे तथा कांति तपाये हुए सुवर्ण के समान जान पड़ती थी, वह कर्ण अर्जुन के बाणों से संतप्त हो धरती पर पड़ा, धूल में सना मलिन हो गया था। अपने उस पुत्र की ओर बारंबार देखते हुए मन्द किरणों वाले सूर्यदेव धीरे-धीरे अपने मंदिर (अस्ताचल) की ओर जा रहे थे।

इस प्रकार महाभारत कर्णपर्व में कर्णवधविषयक इक्यानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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