महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 93 श्लोक 1-16

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त्रिनवतितम (93) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिनवतितम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन द्वारा पच्चीस हजार पैदल सैनिको का वध, अर्जुनद्वारा रथसेना का विध्वंस, कौरवसेना का पलायन और दुर्योधन का उसे रोकने के लिये विफल प्रयास

धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय ! कर्ण और अर्जुन के उस संग्राम में, जब कि सब के लिये भयानक दिन उपस्थित हुआ था, बाणों की आग से दग्ध और उन्मथित होकर भागती हुई कौरव सेना तथा सृंजय सेना की कैसी अवस्था हुई ? संजय ने कहा- राजन् ! उस युद्धस्थल में मनुष्य के शरीरों, हाथियों और घोड़ों का जैसा घोर एवं महान विनाश हुआ, वह सब सावधान होकर सुनिये। महाराज ! कर्ण के मारे जाने पर अर्जुन ने महान सिंहनाद किया, उस समय आपके पुत्रों के मन में बड़ा भारी भय समा गया। जब कर्ण का वध हो गया, जब आपके किसी भी योद्धा का मन कदापि जल्दी पराक्रम दिखाने में नहीं लगा और न सेना को संगठित रखने की ओर ही किसी का ध्यान गया। अगाध एवं अपार समुद्र में तूफान उठने पर जब जहाज फट जाता है, उस समय पार जाने की इच्छावाले व्यापारियों की जैसी अवस्था होती है, वही दशा किरीटधारी अर्जुन के द्वारा द्वीपस्वरूप कर्ण के मारे जाने पर कौरवों की हुई।
राजन् ! सूतपुत्र का वध हो जाने पर सिंह से पीड़ित हुए मृगों के समान कौरवसैनिक भयभीत हो उठे। वे अस्त्र-शस्त्रों से घायल हो गये थे और अनाथ होकर अपने लिये कोई रक्षक चाहते थे। हम सब लोग सायंकाल में सव्यसाची अर्जुन ने परास्त होकर षिबिर की ओर लौटे थे। उस समय हमारी दशा उन बैलों के समान हो रही थी, जिनके सींग तोड़ दिये गये हों। हम उन सर्पों के समान हो गये थे, जिनके विषैले दाँत नष्ट कर दिये गये हों। राजन् ! सूतपुत्र के मारे जाने पर पैने बाणों से क्षत-विक्षत एवं पराजित हुए आपके पुत्र भय के मारे-भागने लगे। उनके प्रमुख वीर रणभूमि में मारे जा चुके थे। उनके यन्त्र और कवच गिर गये थे। वे अचेत होकर यह भी नहीं सोच पाते थे कि हम भागकर किस दिशा में जाय ? एक दूसरे को कुचलते और चारों ओर देखते हुए भय से पीड़ित हो गये थे। निश्चय अर्जुन मेरा ही पीछा कर रहे हैं। भीमसेन मेरी ही ओर चढे़ आ रहे हैं, ऐसा मानते हुए कौरव सैनिक घबराहट में पड़कर गिर जाते थे।
वे सब-के-सब उदास हो गये थे। कुछ लोग घोड़ों पर, कुछ हाथियों पर और कुछ दूसरे महारथी रथों पर आरूढ़ हो भय के मारे बडे़ वेग से भागने लगे। उन्होंने पैदल सैनिकों को वही छोड़ दिया। भयभीत होकर भागते हुए हाथियों ने रथों को चकनाचूर कर दिया। विशाल रथ पर बैठे हुए महारथियों ने घुड़सवारों को कुचल दिया और अश्वसमुदायों ने पैदलसमूहों के कचूमर निकाल दिये। राजन् ! जैसे सर्पों और चारों-बटमारों से भरे हुए वन में अपने दल से बिछुडे़ हुए लोग अनाथ हो भारी विपत्ति में पड़ जाते हैं, सूतपुत्र कर्ण के मारे जाने पर आपके योद्धाओं की भी वैसी ही दशा हो गयी। महाराज ! उस समय अपने समस्त योद्धाओं को भीमसेन के भय से व्याकुल हो भागते देख दुर्योधन ने हाहाकार करके अपने सारथि से कहा-सूत ! तुम धीरे-धीरे रथ आगे बढ़ाओ। मैं सम्पूर्ण सेनाओं के पीछे जब हाथ में धनुष लेकर खड़ा होऊँगा, उस समय अर्जुन मुझे लाँघकर आगे नहीं बढ़ सकते।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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