महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 93 श्लोक 41-60

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त्रिनवतितम (93) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिनवतितम अध्याय: श्लोक 41-60 का हिन्दी अनुवाद

उस समय वहाँ खडे़ हुए बलवान् पराक्रमी सव्यसाची पाण्डुपुत्र अर्जुन आपकी सेना का कुछ भाग अब शिष्ट देखकर कुपित हो उठे और अपने त्रिलोकविख्यात गाण्डीव धनुष की टंकार करते हुए आपकी रथसेना पर जा चढे़। उन्होंने अपने बाणसमूहों द्वारा उन सबको सहसा आच्छादित कर दिया। उस समय सब ओर अन्धकार फैल गया; कुछ भी दिखायी नहीं देता था। महाराज ! इस प्रकार जब जगत में अँधेरा छा गया और भूतल पर धूल-ही-धूल उड़ने लगी, तब आपके समस्त योद्धा भयभीत होकर भाग गये। प्रजानाथ ! आपकी सेना में भगदड़ मच जाने पर आपके पुत्र कुरूराज दुर्योधन ने अपने सामने खडे़ हुए शत्रुओं पर धावा किया। भरतश्रेष्ठ ! जैसे पूर्वकाल में राजा बलि ने देवताओं को युद्ध के लिये ललकारा था, उसी प्रकार दुर्योधन ने भी समस्त पाण्डवों का युद्ध के लिये आवहान किया। तब नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण किये कुपित पाण्डव सैनिक एक साथ गर्जना करते हुए वहाँ दुर्योधन पर टूट पडे़ और बारंबार उसे फटकारने लगे। इससे दुर्योधन को तनिक भी घबराहट नहीं हुई। वह रणभूमि में कुपित हो पैने बाणों से शत्रुपक्ष के सैकड़ों और हजारों योद्धाओं का संहार करने लगा। वह सब ओर धूम-धूम कर पाण्डवसेना के साथ जूझ रहा था।
राजन् ! वहाँ वह लोगों ने आपके पुत्र का यह अद्भुत पुरूषार्थ देखा कि उसने अकेले ही रणभूमि में एक साथ आये हुए पाण्डवों का डटकर सामना किया राजेन्द्र ! उस समय आपके बुद्धिमान पुत्र महामनस्वी दुर्योधन ने अपनी सेना को जब बहुत दुखी देखा, तब उन सबको सुस्थिर करके उनका हर्ष बढ़ाते हु इस प्रकार बोले-योद्धाओं !तुम भय से पीड़ित हो रहे हो। परंतु मैं ऐसा कोई स्थान नहीं देखता, जहाँ तुम भागकर जाओ और वहाँ जाने पर तुम्हें पाण्डुपुत्र अर्जुन या भीमसेन से छुटकारा मिल जाय। ऐसी देशा में तुम्हारे भागने से क्या लाभ है ? इन शत्रुओं के पास थोड़ी-सी सेना बच गयी है। श्रीकृष्ण और अर्जुन भी बहुत घायल हो चुके हैं; अतः आज में इन सब लोगों को मार डालूँगा। हमारी विजय अवश्य होगी। यदि तुम अलग-अलग होकर भागोगे तो पाण्डव तुम सब अपराधियों का पीछा करके तुम्हें मार डालेंगे। ऐसी दशा में युद्ध में मारा जाना ही हमारे लिये श्रेयस्कर है। क्षत्रिय घर्म के अनुसार युद्ध करनेवाले वीरों की संग्राम में सुखपूर्वक मृत्यु होती है। वहाँ मरे हुए को मृत्यु के दुःख का अनुभव नहीं होता और परलोक में जाने पर उस अक्षय सुख की प्राप्ति होती है। तुम जितने क्षत्रिय वीर यहाँ आये हो सभी कान खोलकर सुन लो।
जब प्राणियों का अन्त करने वाला यमराज शूरवीर और कायर दोनों को ही मार डालता है, तब मेरे-जैसा क्षत्रिय व्रत का पालन करने वाला होकर भी कौन ऐसा मूर्ख होगा, जो युद्ध नहीं करेगा ? हमारा शत्रु भीमसेन क्रोध में भरा हुआ है। यदि भागोगे तो उसके वश में पड़कर मारे जाओगे; अतः अपने आप दादों के द्वारा आचरण में लाये हुए क्षत्रिय धर्म का परित्याग न करो। कौरववीरों ! क्षत्रिय के लिये युद्ध से पीठ दिखाकर भागने से बढ़कर दूसरा कोई महान पाप नहीं है तथा युद्ध धर्म के पालन से बढ़कर दूसरा कोई स्वर्ग की प्राप्ति का कल्याण कारी मार्ग नहीं है; अतः योद्धाओं ! तुम युद्ध में मारे जाकर शीघ्र ही उत्तम लोकों के सुख का अनुभव करो। संजय कहते हैं- महाराज ! आपका पुत्र इस प्रकार व्याख्यान देता ही रह गया; किंतु अत्यन्त घायल हुए सैनिक उसकी बात पर ध्यान दिये बिना ही सम्पूर्ण दिशाओं में भाग गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व के कौरव सेना का पलायन विषयक तिरानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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