महाभारत सभा पर्व अध्याय 24 श्लोक 51-60

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चतुर्विंश (24) अध्‍याय: सभा पर्व (जरासंधवध पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 51-60 का हिन्दी अनुवाद

फिर धर्मराज ने हर्ष में भरकर भगवान् श्रीकृष्ण से कहा। युधिष्ठिर बोले- पुरुषसिंह जनार्दन! आपका सहारा पाकर ही भीमसेन ने बल के अभिमान से उन्मत्त रहने वाले प्रतापी मगधराज जरासंध को मार गिराया है ।। अब मैं निश्चिन्त होकर यज्ञों में श्रेष्ठ राजसूय का शुभ अवसर प्राप्त करूँगा। प्रभो! आपके बुद्धि बल का सहारा पाकर मैं यज्ञ करने योग्य हो गया।। पुरुषोत्तम! इस युद्ध से भूमण्डल में आपके यश का विस्तार हुआ। जरासंध के वध से ही आपको प्रचुर सम्पत्ति प्राप्त हुई है।

वैशमपायनजी कहते हैं- जनमेजय! ऐसा कहकर कुतीनन्दन युधिष्ठिर ने भगवान को श्रेष्ठ रथ प्रदान किया। जरासंध के उस रथ को पाकर गोविन्द बड़े प्रसन्न हुए और अर्जुन के साथ उसमें बैठकर बड़े हर्ष का अनुभव करने लगे। धर्मराज युधिष्ठिर के उस भेंट को अंगीकार करके उन्हें बड़ा संतोष हुआ। पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर भाईयों के साथ जाकर समस्त राजाओं से उनकी अवस्था के अनुसार क्रमश: मिले, फिर उन सबका यथायोग्य सत्कार एवं पूजन करके उन्होंने सभी नरपतियों को विदा कर दिया। राजा युधिष्ठिर की आज्ञा ले वे सब नरेश मन ही मन अत्यन्त प्रसन् न हो अनेक प्रकार की सवारियों द्वारा शीघ्रतापर्वूक अपने अपने देश को चले गये। जनमेजय! इस प्रकार महाबुद्धिमान पुरुषसिंह जनार्दन ने उस समय पाण्डवों द्वारा अपने शत्रु जरासंध का वध करवाया। भारत! जरासंध को बुद्धि पर्वूक मरवाकर शत्रुदमन श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर, कुन्ती तथा द्रौपदी से आज्ञा ले, सुभद्रा, भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव तथा धौम्यजी से भी पूछकर धर्मराज के दिये हुए उसी मन के समान वेगशाली दिव्य एवं उत्तम रथ के द्वारा सम्पूर्ण दिशाओं को गुँजाते हुए अपनी द्वारकापुरी को चले गये। भरतश्रेष्ठ! जाते समय युधिष्ठिर आदि समस्त पाण्डवों ने अनायास ही सब कार्य करने वाले भगवान् श्रीकृष्ण की परिक्रमा की। भारत! महान् विजय को प्राप्त करके और जरासंध के द्वारा कैद किये हुए उन रजाओं को अभयदान देकर देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्ण के चले जाने पर उक्त कर्म के द्वारा पाण्डवों के यश का बहुत विस्तार हुआ और वे पाण्डव द्रौपदी की भी प्रीति को बढ़ाने लगे। उस समय धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि के लिये जो उचित कर्तव्य था, उनका राजा युधिष्ठिर ने धर्म पर्वूक पालन किया। वे प्राजाओं की रक्षा करने के साथ ही उन्हें धर्म का उपदेश भी देते रहते थे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत जरासंधवधपर्व में जरासंधवधविषयक चौबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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