महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 129 श्लोक 1-19
एकोनत्रिंशदधिकशतकम (129) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
भीमसेन और कर्ण का युद्ध और कर्ण की पराजय
धृतराष्ट्र ने पूछा - संजय ! इस प्रकार मेघ की गर्जना के समान गम्भीर स्वर से सिंहनाद करते हुए महाबली भीमसेन को किन वीरों ने रोका ? मैं तो तीनों लोकों में किसी को ऐसा नहीं देखता, जो क्रोण में भरे हुए भीमसेन के सामने युद्ध स्थल में खड़ा हो सके। संजय ! मुझे एसा कोई वीर पुरुष नहीं दिखायी देता, जो काल के समान गदा उठाकर युद्ध की इच्छा रखने वाले भीमसेन के सामने समर भूमि में ठहर सके। जो रथ से रथ को और हाथी से हाथाी को मार सकता है, उस वीर पुरुष के सामने साक्षात् इन्द्र ही क्यों न हो, कौन युद्ध के लिये खड़ा होगा ? क्रोध में भरकर मेरे पुत्रों का वध करने की इच्छा वाले भीमसेन के आगे दुर्योधन के हित में तत्पर रहने वाले कौन - कौन योद्धा खड़े हो सके ? भीमसेन दावानल के समान हैं और मेरे पुत्र तिनकों के समान। उन्हें जला डालने की इच्छा वाले भीमसेन के सामने युद्ध के मुहाने पर कौन - कौन वीर खड़े हुए ? जैसे काल समस्त प्रजा को अपना ग्रास बना लेता है, उसी प्रकार युद्ध स्थल में भीमसेन के द्वारा मेरे पुत्रों को काल के गाल में जाते देख किन वीरों ने आगे बढ़कर भीमसेन को रोका ? मुझे भीमसेन से जैसा भय लगता है, वैसा न तो अर्जुन से और न श्रीकृष्ण से, न सात्यकि से और न धृष्टद्युम्न से ही लगता है। संजय ! मेरे पुत्रों को दग्ध करने की इच्छा से प्रज्वलित हुए भीमरूपी अग्निदेव के सामने कौन - कौन शूरवीर डटे रह सके, यह मुझे बताओ।
संजय ने कहा - राजन् ! इस प्रकार गरजते हुए महाबली भीमसेन पर बलवान् कर्ण ने भयंकर सिंहनाद के साथ आक्रमण किया। अत्यन्त अमर्षशील कर्ण ने रण भूमि में अपना बल दिखाने के लिये अपने विशाल धनुष को खींचते और युद्ध की अभिलाषा रखते हुए, जैसे वृक्ष वायु का मार्ग रोकता है, उसी प्रकार भीमसेन का मार्ग अवरुद्ध कर दिया। वीर भीमसेन भी अपने सामने कर्ण को खड़ा देख अत्यन्त कुपित हो उठे और तुरंत ही उसके ऊपर सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए बाण बल पूर्वक छोड़ने लगे। कर्ण ने भी उन बाणों को ग्रहण किया और उनके विपरीत बहुत से बाण चलाये। उस समय कर्ण और भीमसेन के संघर्ष में विजय के लिये प्रयत्नशील होकर देखने वाले सम्पूर्ण योद्धाओं के शरीर काँपने - से लगे। उन दोनों के ताल ठोंकने के आवाज सुनकर तथा समरांगण में भीमसेन की घोर गर्जना सुनकर रथियों और घुड़सवारों के भी शरीर थर - थर काँपने लगे।
वहाँ आये हुए क्षत्रिय शिरोमणि योद्धा महामना पाण्डु नन्दन भीमसेन के बारंबार होने वाले घोर सिंहनाद से आकाश और पृथ्वी को व्याप्त मानने लगे। उस समरांगण में प्रायः सम्पूर्ण योद्धाओं के धनुष तथा अन्य अस्त्र - शस्त्र हाथों से छूटकर पृथ्वी पर गिर पड़े। कितनों के तो प्राण ही निकल गये। सारी सेना के समस्त वाहन संत्रस्त होकर मल-मूत्र त्यागने लगे। उनका मन उदाय हो गया। बहुत से भयंकर अपशकुन प्रकट होने लगे। राजन् ! कर्ण और भीम के उस भयंकर युद्ध में आकाश गीधो, कौवों और कंकों से छा गया।
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