महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 130 श्लोक 17-34

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त्रिंशदधिकशतकम (130) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: त्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 17-34 का हिन्दी अनुवाद

शकुनि की बुद्धि में जो जुआ खेलने की बात पैदा हुई थी, वह वास्तव में आज इस रूप में सफल हो रही है। उस दिन सभा में किसी पक्ष की जीत या हार नहीं हुई थी। आज यहाँ जो हम लोग प्राणों की बाजी लगाकर जूआ खेल रहे हैं, इसी में वास्तविक हार जीत होने वाली है। याकुनि कौरव सभा में पहले जिन भयंकर पासों को हाथ में लेकर जूए का खेल खेलता था, उन्हें वह तो पासे ही समझता था, परंतु वास्तव में वे दुर्धर्ष बाण थे। तात ! ( असली जूआ तो वहाँ हो रहा है ) जहाँ तुम्हारे बहुत से कौरव यौद्धा खड़े हैं। इस सेना को ही तुम जुआरी समझो। प्रजानाथ ! बाणों को ही पासे मान लो। राजन् ! सिंधुराज जयद्रथ को ही बाजी या दाँव समणे। उसी पर जूए की हार जीत का फैसला होगा। महाराज ! सिंधुराज के ही जीवन की बाजी लगाकर शत्रुओं के साथ हमारी भारी द्यूत क्रीड़ा चल रही है। यहाँ तुम सब लोग अपने जीवन का मोह छोड़कर रण भूमि में विधि पूर्वक जयद्रथ की रक्षा करो। निश्चय ही उसी पर हम द्यूत क्रीड़ा करने वालों की असली हार जीत निर्भर है।
राजन् ! जहाँ वे महाधनुर्धर योद्धा सावधान होकर सिंधुराज की रक्षा करने लगे हैं, वहीं तुम स्वयं भी शीघ्र चले जाओ और सिंधुराज की रक्षा करो। मैं तो यहीं रहूँगा और तुम्हारे पास दूसरे दूसरे रक्षकों को भेजता रहूँगा। साथ ही पाण्डवों तथा सृंजयों सहित आये हुए पान्चालों को व्यूह के भीतर जाने से रोकूँगा। तदनन्तर आचार्य की आज्ञा से दुर्योधन अपने आपको उग्र कर्म करने के लिये तैयारद करके अपने अनुचरों के साथ शीघ्र वहाँ से चला गया। अर्जुन के चक्ररक्षक पान्चाल कुमार युधामन्यु और उत्तमौजा सेना के बाहरी भाग से होकर सव्यसाची अर्जुन के समीप जाने लगे। महाराज ! जब अर्जुन युद्ध की इच्छा से आपकी सेना के भीतर घुसे थे, उस समय ( ये दोनों भीम के साथ ही थे, किंतु ) कृतवर्मा ने उन दोनों को पहले रोक दिया था। अब वे दोनों वीर पाश्र्व भाग से आपकी ोना का भेदन करके उसके भीतर घुस गये। पाश्र्व भाग से सेना के भीतर आते हुए उन दोनों वीरों को कुरुराज दुर्योधन ने देखा।
तब उस बलवान् भरतवंशी वीर दुर्योधन ने तुरंत आगे बढ़कर बड़ी उतावली के साथ आते हुए उन दोनों भाइयों के साथ भारी युद्ध छेड़ दिया। वे दोनों क्षत्रिय शिरोमणि विख्यात महारथी वीर थे। उन दोनों ने युद्ध स्थल में धनुष उठाकर दुर्योधन पर धावा बोल दिया। युधामन्यु ने कंकपत्र युक्त तीस बाणों द्वारा दुर्योधन को घायल कर दिया। फिर बीस बाणों से उसके सारथि को और चार से चारों घोड़ों को बींध डाला। तब आपके पुत्र दुर्योधन ने एक बाण से युधामन्यु की ध्वजा काट डाली और एक से उसके धनुष के दो टुकड़े कर दिये। इतना ही नहीं, एक भल्ल मारकर उसने युधामन्यु के सारथि को भी रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया। फिर चार तीखे बाणों द्वारा उसके चारों घोड़ों को भी घायल कर दिया। इससे युधामन्यु भी कुपित हो उठा। उसने युद्ध स्थल में बड़ी उतावली के साथ आपके पुत्र की छाती में तीस बाण मारे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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