महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 10 श्लोक 1-15
दशम (7) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व)
भारतवर्ष में युगों के अनुसार मनुष्यों की आयु तथा गुणों का निरूपण
धृतराष्ट्र ने कहा- संजय! तुम भारतवर्ष और हैमवत वर्ष के लोगों के आयु का प्रमाण, बल तथा भूत, भविष्य एवं वर्तमान शुभाशुभ फल बताओ। साथ ही हरिवर्ष का भी विस्तारपूर्वक वर्णन करो। संजय ने कहा- कुरूकुल की वृद्धि करने वाले भरतश्रेष्ठ! भारतवर्ष में चार यु्ग होते हैं- सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग। प्रभो! पहले सत्ययुग होता हैं, फिर त्रेतायुग आता है, उसके बाद द्वापरयु्ग बीतने पर कलियुग की प्रवृत्ति होती हैं। कुरूश्रेष्ठ! नृपप्रवर! सत्ययुग के लोगों की आयु का मान चार हजार वर्ष हैं। मनुजेश्र्वर! त्रेता के मनुष्यों की आयु तीन हजार वर्षों की बतायी गयी हैं। द्वापर के लोगों की आयु दो हजार वर्षों की है, जो इस समय भूतल पर विद्यमान है। भरतश्रेष्ठ! इस कलियुग में आयु प्रमाण की कोई मर्यादा नहीं हैं। यहां गर्भ के बच्चे भी मरते हैं और नवजात शिशु भी मृत्यु को प्राप्त होते हैं। सत्ययुग में महाबली, महान् सत्त्वगुणसम्पन्न, बुद्धिमान्, धनवान् और प्रियदर्शन मनुष्य उत्पन्न होते हैं ओर सैकड़ों तथा हजारों संतानों को जन्म देते हैं, उस समय प्रात: तपस्या के धनी महर्षिगण जन्म लेते हैं।
राजन्! इसी प्रकार त्रेतायुग में समस्त भूमण्डल के क्षत्रिय अत्यन्त उत्साही, महान् मनस्वी, धर्मात्मा, सत्यवादी, प्रियदर्शन, सुन्दर शरीरधारी, महापराक्रमी, धनुर्धर, वर पाने के योग्य, युद्ध में शूरशिरोमणि तथा मानवों की रक्षा करने वाले होते हैं। द्वापर में सभी वणों के लोग उत्पन्न होते हैं एवं वे सदा परम उत्साही, पराक्रमी तथा एक दूसरे को जीतने के इच्छुक होते हैं। भरतनन्दन! कलियुग में जन्म लेने वाले लोग प्राय: अल्पतेजस्वी, क्रोधी, लोभी तथा असत्यवादी होते हैं। भारत! कलियुग के प्राणियों में ईर्ष्या, मान, क्रोध, माया, दोष-दृष्टि, राग तथा लोभ आदि दोष रहते हैं। नरेश्वर! इस द्वापर में भी गुणों की न्यूतना होती हैं। भारतवर्ष की अपेक्षा हैमवत तथा हरिवर्ष में उत्तरोत्तर अधिक गुण हैं।
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