महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 14 श्लोक 38-46
चतुर्दश (14) अध्याय: भीष्म पर्व (भूमि पर्व)
जब मेरे पक्ष के बहुत-से वीर उनकी रक्षा करते थे और वे भी उन वीरों की रक्षा में दत्तचित्त थे, तब भी उन सब लोगों ने मिलकर शत्रुपक्ष की दुर्जय सेनाओं को कैसे वेगपूर्वक परास्त नहीं कर दिया। संजय! भीष्म जी सम्पूर्ण लोकों के स्वामी परमेष्ठी प्रजा पति ब्रह्माजी के समान अजेय थे; फिर पाण्डव उनके ऊपर कैसे प्रहार कर सके? संजय! जिन द्वीपस्वरूप भीष्मजी के आश्रय के, निर्भय एवं निश्र्चिंत होकर समस्त कौरव शत्रुओं के साथ युद्ध करते थे, उन्हीं नरश्रेष्ठ भीष्म को तुम मारा गया बता रहे हो, यह कितने दु:ख की बात है? जिनके पराक्रमका आश्रय लेकर विशाल सेनाओं से सम्पन्न मेरा पुत्र पाण्डवों को कुछ नहीं गिनता था, वे शत्रुओं द्वारा किस प्रकार मारे गये? पहले की बात है, दानवों का संहार करनेवाले सम्पूर्ण देवताओं ने जिन मेरे महान् व्रतधारी पिता रणदुर्मद भीष्मजी को अपना सहायक बनाने की अभिलाषा की थी, जिन महापराक्रमी पुत्ररत्न के जन्म लेने पर लोकविख्यात महाराज शांतनु ने शोक, दीनता और दु:ख का सदा के लिये त्याग कर दिया था, जो सबके आश्रयदाता, बुद्धिमान्, स्वधर्मपरायण, पवित्र और वेदवेदाङ्गों के तत्त्वज्ञ बताये गये हैं, उन्हीं भीष्म को तुम मारा गया कैसे बता रहे हो? जो सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा से सम्पन्न, शांत,जितेन्द्रिय और मनस्वी थे, उन शांतनुनंदन भीष्म को मारा गया सुनकर मुझे यह विश्र्वास हो गया कि अब हमारी सारी सेना मार दी गयी। आज मुझे निश्र्चित रूप से ज्ञात हुआ कि धर्म से अधर्म ही बलवान् है; क्योंकि पाण्डव अपने वृद्ध गुरूजन की हत्या करके राज्य लेना चाहते हैं।
पूर्वकाल में अम्बा के लिये उद्यत होकर सम्पूर्ण अस्त्र-वैत्ताओं में श्रेष्ठ जगदग्निनंदन परशुराम युद्ध करने के लिये आये थे, परंतु भीष्म ने उन्हें परास्त कर दिया, उन्हीं इन्द्र के समान पराक्रमी तथा सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ भीष्म को तुम मारा गया कह रहे हो, इससे बढ़कर दु:ख की बात और क्या हो सकती है? शत्रुवीरों का संहार करने वाले जिन वीरवर परशुराम जी ने अनके बार समस्त क्षत्रियों को युद्ध में परास्त किया था, उनसे भी जो मारे न जा सके, ये ही परम बुद्धिमान् भीष्म आज शिखण्डी के हाथ से मार दिये गये! इससे जान पड़ता है कि महापराक्रमी युद्धदुर्मद परशुरामजी की अपेक्षा भी तेज, पराक्रम और बल में द्रुपदकुमार शिखण्डी निश्र्चय ही बहुत बढ़ा-चढ़ा है, जिसकने सम्पूर्ण शास्त्रों के ज्ञान में निपुण, परमास्त्रवेत्ता और शूरवीर विद्वान् भरतकुशलभूषण भीष्म जी का वध कर डाला है। उस समय युद्ध में शत्रुहंता भीष्मजी के साथ कौन-कौन से वीर थे?
संजय! पाण्डवों के साथ भीष्म का किस प्रकार युद्ध हुआ? यह मुझे बताओ। उन वीर सेनापति के मारे जाने पर मेरे पुत्र की सेनाविधवा स्त्री के समान असहाय हो गयी है। जैसे ग्वाले के बिना गौओं का समुदाय इधर-उधर भटकता फिरता है, उसी प्रकार अब मेरी सेना उद्भ्रांत हो रही होगी। महान् युद्ध के समय जिनमे सम्पूर्ण जगत्का परम पुरूषार्थ प्रकट दिखायी देता था, वे ही भीष्म जब परलोक के पथिक हो गये? उस समय तुम लोगों के मन की अवस्था कैसी हुई थी। संजय! आज जीवित रहने पर भी हम लोगों में क्या सामर्थ्य है? जगत्के विख्यात धर्मात्मा महापराक्रमी पिता भीष्म को युद्ध में मरबाकर हम उसी प्रकार शोक में डूबे गये हैं, जैसे पर जाने की इच्छावाले पथिक नाव को अगाध जल में डूबी हुई देखकर दुखी होते हैं।
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