महाभारत आदि पर्व अध्याय 218 श्लोक 19-26

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित १०:०६, १७ सितम्बर २०१५ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

अष्टादशाधिकद्विशततम (218) अध्‍याय: आदि पर्व (सुभद्राहरण पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: अष्टादशाधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 19-26 का हिन्दी अनुवाद

सखे ! यहद यह वृष्णिकुल की कुमारी और आपकी बहिन सुभद्रा मेरी रानी हो सके तो निश्चय ही मेरा समस्त कल्याणमय मनोरथ पूर्ण हो जाय। जनार्दन ! बताइसे, इसे प्राप्त करने का क्या उपाय हो सकता है ? यदि मनुष्य के द्वारा कर सकने योग्य होगा तो वह सारा प्रयत्न मैं अवश्य करूँगा।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले - नरश्रेष्ठ पार्थ ! क्षत्रियों के विवाह का स्वयंवर एक प्रकार है, परंतु उसका परिणाम संदिग्ध होता है; क्योंकि स्त्रियों का स्वभाव अनिश्चित हुआ करता है (पता नहीं, वे स्वयं किसका वरण करें)। बलपूर्वक कन्या का हरण भी शूरवीर क्षत्रियों के लिये विवाह का उत्तम हेतु कहा गया है; ऐसा धर्मज्ञ पुरूषों का मत है। अतः अर्जुन ! मेरी राय तो यही है कि तुम मेरी कल्याणमयी बहिन को बलपूर्वक हर ले जाओ । कौन जानता है, स्वयंवर में उसकी क्या चेष्टा होगी - वह किसे वरण करना चाहेगी ? तब अर्जुन और श्रीकृष्ण ने कत्र्तव्य का निश्चय करके कुछ दूसरे शीघ्रगामी पुरूषों को इन्द्रप्रस्थ में धर्मराज युधिष्ठिर के पास भेजा और सब बातें उन्हें सूचित करके उनकी सम्मति जानने की इच्छा प्रकट की। महाबाहु युधिष्ठिर ने यह सुनते ही अपनी ओर से आज्ञा दे दी। भीमसेन यह समाचार सुनकर अपने को कृतकृत्य मानने लगे और दूसरे लोगों के साथ ये बातें करके उनको बड़ी प्रसन्नता हुई।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत सुभद्राहरणपर्व में युधिष्ठिर की आज्ञा सम्बन्धी दो सौ अठाहरवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।