महाभारत आदि पर्व अध्याय 219 श्लोक 1-18

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एकनोविंशत्यधिकद्विशततम (219) अध्‍याय: आदि पर्व (सुभद्राहरण पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: एकनोविंशत्यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

यादवों की युद्ध के लिये तैयारी और अर्जुन के प्रति बलरामजी के क्रोधपूर्ण उद्गार

वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय ! तदनन्तर उस विवाह सम्बन्धी संदेश पर युधिष्ठिर की आज्ञा मिल जाने के पश्चात् धनंजय को जब यह मालूम हुआ कि सुभद्रा रैवतक पर्वत पर गयी हुई है, तब उन्होनें भगवान श्रीकृष्ण से सलाह ली। श्रीकृष्ण ने उन्हें आगे क्या करना है, यह बताकर सुभद्रा से विवाह करने तथा उसे हर ले जाने की अनुमति दे दी। श्रीकृष्ण की सम्मति पाकर भरतश्रेष्ठ अर्जुन अपने विश्राम स्थान पर चले गये। (भगवान की आज्ञा से दारूक ने) उनके सुवर्णमय रथ को विधिपूर्वक सजाकर तैयार किया था। उसमें स्थान-स्थान पर छोटी-छोटी घंटिकाएँ तथा झालरें लगा दी थीं और शैव्य, सुग्रीव आदि अश्व भी उसमें जोत दिये थे। उस रथ के भीतर सब प्रकार के अस्त्र-शस्त्र मौजूद थे। उसकी घर्घराहट से मेघ की गर्जना के समान आवाज होती थी। वह प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी जान पड़ता था। उसे देखते ही शत्रुओं का हर्ष हवा हो जाता था। नरश्रेष्ठ धनंजय कवच और तलवार बाँधकर एवं हाथों में दस्ताने पहनकर उसी रथ के द्वारा शिकार खेलने के बहाने रैवतक पर्वत पर गये। उधर सुभद्रा गिरिराज रैवतक तथा सब देवताओं की पूजा करके ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराकर पर्वत की परिक्रमा पूरी करके द्वारका की ओर लौट रही थी। अर्जुन कामदेव के बाणों से अत्यन्त पीड़ित हो रहे थे। उन्होनें दौड़कर सर्वांग सुन्दरी सुभद्रा को बलपूर्वक रथ पर बिठा लिया। इसके बाद पुरूष सिंह धनंजय पवित्र मुस्कानवाली सुभद्रा को साथ ले उस सुवर्णमय रथ द्वारा अपने नगर की ओर चल दिये।
सुभद्रा का अपहरण होता देख समस्त सैनिकगण हल्ला मचाते हुए द्वारकापुरी की ओर दौड़ गये। उन्होनें एक साथ सुधर्मा सभा में पहुँचकर सभापाल से अर्जुन के उस साहसपूर्ण पराक्रम का सारा हाल कर सुनाया। उनकी बातें सुनकर सभापाल ले सबको युद्ध के लिये तैयार होने की सूचना देने के उद्देश्य से सुवर्णखचित नगाड़ा बजाया, जिसकी आवाज बहुत ऊँची और दूर तक फैलने वाली थी। उसकी आवाज सुनकर भोज, वृष्णि और अन्धकवंश के वीर क्षुब्ध हो उठे और खना-पीना छोड़कर चारों ओर से दौड़े आये। उस सभा में सैंकड़ों सिंहासन रक्खे गये थे, जिनमें सुवर्ण जड़ा गया था। उन सिंहासनों पर बहुमूल्य बिछौने पड़े थे। वे सभी आसन मणि और मूँगों से चित्रित होने के कारण प्रज्जवलित अग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे। भोज, वृष्णि और अन्धकवंश के पुरूषसिंह महारथी वीर उन्हीं सिंहासनों पर आकर बैठे, मानो यज्ञ की वेदियों पर प्रज्वलित अग्निदेव शोभा पा रहे हों। देव समूह की भाँति यहाँ बैठे हुए उन यदुवंशियों के समुदाय में सेवकों सहित समापाल ने अर्जुन की वह सारी करतूत कह सुनायी। यह सुनते ही युद्धोन्माद से लाल नेत्रों वाले वृष्णिवंशी वीर अर्जुन के प्रति अमर्ष से भर गये और गर्व से उछल पड़े ।।१६।। (वे बड़ी उतावली से कहने लगे -) ‘जल्दी रथ जोतो, फौरन प्रास ले आओ, धनुष तथा बहुमूल्य एवं विशाल कवच लाओ। कोई सारथियों को पुकार कर कहने लगे - ‘अरे ! जल्दी रथ जोतो।’ कुछ लोग स्वयं ही सोने के आभूषणों से विभूषित घोड़ों को रथो में जोतने लगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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