"महाभारत आदि पर्व अध्याय 2 श्लोक 42-72" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के ५ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
== द्वितीय अध्‍याय: पर्वसंग्रह पर्व (अनुक्रमणिकापर्व)==
+
==द्वितीय (2) अध्‍याय: आदि पर्व (पर्वसंग्रह पर्व)==
{| style="background:none;" width="100%" cellspacing="30"
+
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 42-72 का हिन्दी अनुवाद</div>
|+ <font size="+1">महाभारत पर्वसंग्रहपर्व द्वितीय अध्याय श्लोक 70-110 हिन्दी अनुवाद</font>
 
|-
 
| style="width:50%; text-align:justify; padding:10px;" valign="top"|
 
  
फिर रोंगटे खड़े कर देने वाला द्रोणवध पर्व जानना चाहिये। तदनन्तर नारायणास्त्र मोक्षपर्व कहा गया है। फिर कर्णपर्व और उसके बाद शल्य पर्व है। इसी पर्व में हद-प्रवेश और गदायुद्ध-पर्व भी है। तदनन्तर सारस्वत पर्व है, जिसमे ताथा और वंशो का वर्णन किया गया है। इसके बाद है अत्यन्त बीमत्स सौप्तिक पर्व। इसके बाद अत्यन्त दारूण ऐषीक पर्व की कथा है। फिर जल प्रदानिक और स्त्री विलाप-पर्व आते है। तत्पश्चात् श्रात पर्व है, जिसमें मृत [[कौरव|कौरवों]] की अन्त्येष्टि क्रिया का वर्णन है। उसके बाद ब्राह्मण वेषधार राक्षस चार्वाक के निग्रहक पर्व है। तदनन्तर धर्मबुद्धि सम्पन्न धर्मराज [[युधिष्ठिर]] के अभिषेक का पर्व है तथा इसके पश्चात् गृह प्रविभाग पर्व है। इसके बाद शान्ति पर्व प्रारम्भ होता हैः जिसमें राजधर्मनुशासन, आपद्धर्म और मौक्षधर्म पर्व हैं। फिर शुकप्रश्नाभिगमन, ब्राह्मप्रश्नानुशासन, दुर्बासा का प्रादुर्भाव और मायासंवाद पर्व हैं। इसके बाद धर्मा-धर्म का अनुशासन करने वाला अनुशासनिक पर्व है, तदनन्तर बुद्धिमान, [[भीष्म]] जी का स्वर्गारोहण पर्व है। अब आता है आश्वमेधिक पर्व, जो सम्पूर्ण पापों का नाशक है। उसी में अनुगीता पर्व है, जिसमें अध्यात्म ज्ञान का सुन्दर निरूपण हुआ है। इसके बाद आश्रमवासिक, पुत्र दर्शन और तदनन्तर नारदागमन पर्व कहे गये है। इसके बाद है अत्यन्त भयानक एवं दारूण मौसल-पर्वं तत्पश्चात महाप्रस्थान पर्व और स्वर्गारोहण पर्व आते हैं। इसके बाद हरिवंश पर्व है, जिसे खिल (परिशिष्ट) पुराण भी कहते हैं, इसमें विष्णुपर्व, [[श्रीकृष्ण]] की बाल लीला एवं [[कंस]] वध का वर्णन है। इस खिलपर्व मे भविष्य पर्व भी कहा गया है, जो महान् अद्भुत है। महात्मा श्रव्यास जी ने इस प्रकार पूरे सौ पर्वों की रचना की है। सूतवंशशिरोमणि लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवाजी व्यास जी की रचना पूर्ण हो जाने पर नैमिपारण्य-क्षेत्र में इन्हीं सौ पर्वों को अठारह पर्वों के रूप में सुव्यवस्थित करके ऋषियों के सामने कहा। इस प्रकार यहाँ संक्षेप से महाभारत के पर्वों का संग्रह बताया गया है। पौष्य, पौलोम, आस्तीक, आदि अंशावतरण, सम्भव, लाक्षागृह, हिडिम्ब-वध, बक-वध, चैत्ररथ, देवी [[द्रौपदी]] का स्वयंवर, क्षत्रिय धर्म से राजाओं पर विजय प्राप्ति पूर्वक वैवाहिक विधि, विदुरागमन, राजलम्भ, [[अर्जुन]] का वनवास, [[सुभद्रा]] का हरण, हरणाहरण, खाण्डव दाह तथा मय दानव से मिलने का प्रसंग-यहाँ तक की कथा आदि पूर्व में कही गय है। पौष्य पर्व में उत्तंक के महात्म्य का वर्णन है। पौलोम पर्व में भृगुवंश के विस्तार का वर्णन है। आस्तीक पर्व में सब नागों तथा गरूड़ की उत्पत्ति की कथा है।
+
इसके पश्चात पौष्य, पौलोम, आस्तीक और आदि अंशावतरण पर्व हैं। तदनन्तर सम्भव पर्व का वर्ण है, जो अत्यन्त अदभुत और रोमा़ंचकारी है। इसके पश्चात जंतुगृह (लाक्षाभवन) दाहपर्व है। तदनन्तर हिडिम्बवध पर्व है, फिर बकवध और उसके बाद चैत्ररथ पर्व है। उसके बाद पांचाल राजकुमार देवी [[द्रौपदी]] के स्वयंवर पर्व का तथा क्षत्रिय धर्म से सब राजाओं पर विजय प्राप्तिपूर्वक वैवाहिक पर्व का वर्णन है। विदुरागमन-राज्यलम्भपर्व, तत्पश्चात अर्जुन वनवास पर्व और फिर सुभद्राहरण पर्व है। सुभद्राहरण के बाद हरणाहरण पर्व है, पुनः खाण्डवदाह पर्व है, उसी में मय-दानव के दर्शन की कथा है। इसके बाद क्रमाशः सभापर्व, मन्त्रपर्व, जरासन्ध-वध पर्व और दिग्विजय पर्व का प्रवचन है। तदनन्तर राजसूय अर्धाभिहरण और शिशुपाल वध पर्व कहे गये हैं। इसके बाद क्रमशः द्यूत एवं अनुद्यूत पर्व हैं। तत्पश्चात वन यात्रा पर्व तथा किर्मरिवध पर्व है। इसके बाद अर्जुनाभिगमन पर्व जानना चाहिये और फिर कैरातपर्व आता है, जिसमें संर्वेश्वर भगवान शिव तथा अर्जुन के युद्ध का वर्णन है। तत्पश्चात इन्द्रलोकाभिगमनपर्व है, फिर धार्मिक तथा करुणोत्पादक नलोपाख्यानपर्व है। तदनन्तर बुद्धिमान करुराज का तीर्थ यात्रा पर्व, जटासुरवध पर्व और उसके बाद यक्ष यु़द्ध पर्व है। इसके पश्चात निवातकवचयुद्ध, अजगर और मार्कण्डेय समास्या पर्व क्रमशः कहे गये हैं। इसके बाद आता है द्रौपदी और सत्यभामा के संवाद का पर्व, इसके अनन्तर घोषयात्रा-पर्व है, उसी में मृगस्वप्रोद्भव और ब्रीहिद्रौणिक उपाख्यान है। तदनन्तर इन्द्रद्युम्न का आख्यान और उसके बाद द्रौपदी हरण-पर्व है। उसी में जयद्रथविमोक्षण पर्व है। इसके बाद पतिव्रता सावित्री के पातिव्रत्य का अदभुत माहात्म्य है। फिर इसी स्थान पर रामोपाख्यान पर्व जानना चाहिये। इसके बाद क्रमशः कुण्डलाहरण और आरण्य-पर्व कहे गये हैं। तदनन्तर विराट पर्व का आरम्भ होता है, जिसमें [[पाण्डव|पाण्डवों]] के नगर प्रवेश और समय पालन सम्बन्धी पर्व हैं। इसके बाद कीचक वध पर्व, गोग्रहण (गोहरण) पर्व तथा [[अभिमन्यु]] और उत्तरा के विवाह का पर्व है। इसके पश्चात परम अदभुत उद्योगपर्व समझना चाहिये। इसी में सञजययानपर्व कहा गया है। तदनन्तर चिन्ता के कारण [[धृतराष्ट्र]] के रातभर जागने से सम्बन्ध रखने वाला प्रजागर पर्व समझना चाहिये। तत्पश्चात वह प्रसिद्ध सनत्सुजात पर्व है, जिसमें अत्यन्त गोपनीय अध्यात्म दर्शन का समावेश हुआ है। इसके पश्चात यानसन्धि तथा भगवदयानपर्व है, इसी में मातलिका उपाख्यान, गावल-चरित, सावित्र, वामदेव तथा वैन्य-उपाख्यान, जामदग्न्य और षोडशराजिक उपाख्यान आते हैं। फिर [[श्रीकृष्ण]] का सभा प्रवेश, विदुला का अपने पुत्र के प्रति उपदेश, युद्ध का उद्योग, सैन्य निर्याण तथा विश्वोपाख्यान-इनका क्रमशः उल्लेख हुआ है। इसी प्रसंग में महात्मा [[कर्ण]] का विवाद पर्व है। तदनन्तर [[कौरव]] एवं पाण्डव-सेना का निर्याण-पर्व है। तत्पश्चात रथातिरथ संख्या पर्व और उसके बाद क्रोध की आग प्रज्वलित करने वाला उलूकदूतागमन पर्व है। इसके बाद ही अम्बोपाख्यान पर्व है तत्पश्चात अदभुत भीष्माभिषेचन पर्व कहा गया है। इसके आगे जम्बूखण्ड-विनिर्माण-पर्व है। तदनन्तर भूमि पर्व कहा गया है, जिसमें द्वीपों के विस्तार का कीर्तन किया गया है। इसके बाद क्रमशः भगवद गीता, भीष्म वध, द्रोणाभिषेक तथा संशप्तकवधपर्व हैं। इसके बाद अभिमन्युवध पर्व प्रतिज्ञापर्व [[जयद्रथ]] वधपर्व ओर घटोत्कचवध पर्व हैं।
इसी पर्व में क्षीर सागर के मन्थन और उच्चेःश्रवा घोड़े के जन्म की भी कथा है। परीक्षित नन्दन राजा जनसेजय के सर्प यज्ञ में न भरतवंशी महात्मा राजाओं की कथा कही गयी है। सम्भव पर्व में राजाओं कि भिन्न-भिन्न प्रकार के जन्म सम्बन्धी वृत्तान्तों का वर्णन है। इसी में दूसरे शूरवीरों तथा महर्षि द्वैपायन के जन्म की कथा भी है। यहीं देवताओं के अंशावतरण की कथा कही गयी है। इसी पर्व में अत्यन्त प्रभावशाली दैत्य, दानव, यक्ष, नाग, सर्प, गन्धर्व और पक्षियों तथा अन्य विविध प्रकार के प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन है। परम तपस्वी महर्षि कण्व के आश्रम में दुष्यन्त के द्वारा [[शकुन्तला]] के गर्भ से [[भरत]] के जन्म की कथा भी इसी में है। उन्हीं महात्मा भरत के नाम से यह भरतवंश संसार मे प्रसिद्ध हुआ है। इसके बाद महाराज शान्तनु के गृह में भागीरथी गंगा के गर्भ से महात्मा वस्तुओं की उत्पत्ति एवं फिर से उनके स्वर्ग में जाने का वर्णन किया गया है। इसी पव में वसुओं के तेज के अंशभृत भीष्म के जन्म की कथा भी है। उनकी राज्यभोग से निवृत्ति, आजीवन, ब्रह्मचर्यव्रत में स्थित रहने की प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञापालन, नित्रांगद की रक्षा और चित्रागंद की मृत्यु हो जाने पर छोटे भाई विचित्रवीर्य की रक्षा, उन्हें राज्य सर्म्पण, अणीमाण्ड के शाप से भगवान् धर्म की विदुर के रूप में मनुष्यों में उत्पत्ति, श्रीकृष्ण द्वैपायन के वरदान के कारण [[धृतराष्ट्र]] एवं [[पाण्डु]] का जन्म और इसी प्रसंग में [[पाण्डव|पाण्डवों]] की उत्पत्ति कथा भी है। लाक्षागृह दाहपर्व में पाण्डवों की वारणावत-यात्रा के प्रसंग में दुर्योधन के गुप्त षडयन्त्र का वर्णन है। उसका पाण्डवों के पास कूटनीतिज्ञ पुरोचन को भेजने का भी प्रसंग है। मार्ग में विदुरजी ने बुद्धिमान् युधिष्ठिर किया, उसका भी वर्णन है। फिर [[विदुर]] की बात मानकर सुरंग खुदवाने का कार्य आरम्भ किया गयां उसी लाक्षागृह में अपने पाँच पुत्रों के साथ सोती हुई एक भीलनी और पुरोचन भी जल भरे-यह सब कथा कही गयी है। हिडिम्बवध पर्व में घोर वन के मार्ग से यात्रा करते समय पाण्डवों को हिडिम्बा के दर्शन, महाबली भीमसेन के द्वारा हिडिम्बासुर के वध तथा घटोत्कच के जन्म की कथा कही गयी है। अमिततेजस्वी महर्षि व्यास का पाण्डवों से मिलना और उनकी एक चक्रा नगरी में ब्राह्मण के घर पाण्डवों के गुप्त निवास का वर्णन है। वहीं रहते समय उन्होंने बाकसुर का वध किया, जिससे नागरिकों को बड़ा भारी आश्रर्य हुआ। इसके अनन्तर कृष्ण द्रौपदी और उसके भाई धृष्टद्युम्न की उत्पत्ति वर्णन है। जब पाण्डवों को ब्राह्मण के मुख से यह संवाद मिला, तब वे [[व्यास|महर्षि व्यास]] की आज्ञा से द्रौपदी की प्राप्ति के लिये कौतूहलपूर्ण चित्त से स्वयंवर देखने पांचाल देश की और चल पड़े।
 
|}
 
  
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत पर्वसंग्रह पर्व द्वितीय अध्याय 2 श्लोक 32-69|अगला=महाभारत पर्वसंग्रहपर्व द्वितीय अध्याय 2 श्लोक 111-142}}
+
फिर रोंगटे खड़े कर देने वाला द्रोणवध पर्व जानना चाहिये। तदनन्तर नारायणास्त्र मोक्षपर्व कहा गया है। फिर कर्णपर्व और उसके बाद शल्यपर्व है। इसी पर्व में हद-प्रवेश और गदायुद्ध-पर्व भी है। तदनन्तर सारस्वत पर्व है, जिसमे ताथा और वंशो का वर्णन किया गया है। इसके बाद है अत्यन्त वीभत्स सौप्तिक पर्व।
 +
 
 +
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 2 श्लोक 21-41|अगला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 2 श्लोक 73-101}}
  
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}
+
{{सम्पूर्ण महाभारत}}
  
 
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत अादिपर्व]]
 
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत अादिपर्व]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

०७:५५, २७ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

द्वितीय (2) अध्‍याय: आदि पर्व (पर्वसंग्रह पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 42-72 का हिन्दी अनुवाद

इसके पश्चात पौष्य, पौलोम, आस्तीक और आदि अंशावतरण पर्व हैं। तदनन्तर सम्भव पर्व का वर्ण है, जो अत्यन्त अदभुत और रोमा़ंचकारी है। इसके पश्चात जंतुगृह (लाक्षाभवन) दाहपर्व है। तदनन्तर हिडिम्बवध पर्व है, फिर बकवध और उसके बाद चैत्ररथ पर्व है। उसके बाद पांचाल राजकुमार देवी द्रौपदी के स्वयंवर पर्व का तथा क्षत्रिय धर्म से सब राजाओं पर विजय प्राप्तिपूर्वक वैवाहिक पर्व का वर्णन है। विदुरागमन-राज्यलम्भपर्व, तत्पश्चात अर्जुन वनवास पर्व और फिर सुभद्राहरण पर्व है। सुभद्राहरण के बाद हरणाहरण पर्व है, पुनः खाण्डवदाह पर्व है, उसी में मय-दानव के दर्शन की कथा है। इसके बाद क्रमाशः सभापर्व, मन्त्रपर्व, जरासन्ध-वध पर्व और दिग्विजय पर्व का प्रवचन है। तदनन्तर राजसूय अर्धाभिहरण और शिशुपाल वध पर्व कहे गये हैं। इसके बाद क्रमशः द्यूत एवं अनुद्यूत पर्व हैं। तत्पश्चात वन यात्रा पर्व तथा किर्मरिवध पर्व है। इसके बाद अर्जुनाभिगमन पर्व जानना चाहिये और फिर कैरातपर्व आता है, जिसमें संर्वेश्वर भगवान शिव तथा अर्जुन के युद्ध का वर्णन है। तत्पश्चात इन्द्रलोकाभिगमनपर्व है, फिर धार्मिक तथा करुणोत्पादक नलोपाख्यानपर्व है। तदनन्तर बुद्धिमान करुराज का तीर्थ यात्रा पर्व, जटासुरवध पर्व और उसके बाद यक्ष यु़द्ध पर्व है। इसके पश्चात निवातकवचयुद्ध, अजगर और मार्कण्डेय समास्या पर्व क्रमशः कहे गये हैं। इसके बाद आता है द्रौपदी और सत्यभामा के संवाद का पर्व, इसके अनन्तर घोषयात्रा-पर्व है, उसी में मृगस्वप्रोद्भव और ब्रीहिद्रौणिक उपाख्यान है। तदनन्तर इन्द्रद्युम्न का आख्यान और उसके बाद द्रौपदी हरण-पर्व है। उसी में जयद्रथविमोक्षण पर्व है। इसके बाद पतिव्रता सावित्री के पातिव्रत्य का अदभुत माहात्म्य है। फिर इसी स्थान पर रामोपाख्यान पर्व जानना चाहिये। इसके बाद क्रमशः कुण्डलाहरण और आरण्य-पर्व कहे गये हैं। तदनन्तर विराट पर्व का आरम्भ होता है, जिसमें पाण्डवों के नगर प्रवेश और समय पालन सम्बन्धी पर्व हैं। इसके बाद कीचक वध पर्व, गोग्रहण (गोहरण) पर्व तथा अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह का पर्व है। इसके पश्चात परम अदभुत उद्योगपर्व समझना चाहिये। इसी में सञजययानपर्व कहा गया है। तदनन्तर चिन्ता के कारण धृतराष्ट्र के रातभर जागने से सम्बन्ध रखने वाला प्रजागर पर्व समझना चाहिये। तत्पश्चात वह प्रसिद्ध सनत्सुजात पर्व है, जिसमें अत्यन्त गोपनीय अध्यात्म दर्शन का समावेश हुआ है। इसके पश्चात यानसन्धि तथा भगवदयानपर्व है, इसी में मातलिका उपाख्यान, गावल-चरित, सावित्र, वामदेव तथा वैन्य-उपाख्यान, जामदग्न्य और षोडशराजिक उपाख्यान आते हैं। फिर श्रीकृष्ण का सभा प्रवेश, विदुला का अपने पुत्र के प्रति उपदेश, युद्ध का उद्योग, सैन्य निर्याण तथा विश्वोपाख्यान-इनका क्रमशः उल्लेख हुआ है। इसी प्रसंग में महात्मा कर्ण का विवाद पर्व है। तदनन्तर कौरव एवं पाण्डव-सेना का निर्याण-पर्व है। तत्पश्चात रथातिरथ संख्या पर्व और उसके बाद क्रोध की आग प्रज्वलित करने वाला उलूकदूतागमन पर्व है। इसके बाद ही अम्बोपाख्यान पर्व है तत्पश्चात अदभुत भीष्माभिषेचन पर्व कहा गया है। इसके आगे जम्बूखण्ड-विनिर्माण-पर्व है। तदनन्तर भूमि पर्व कहा गया है, जिसमें द्वीपों के विस्तार का कीर्तन किया गया है। इसके बाद क्रमशः भगवद गीता, भीष्म वध, द्रोणाभिषेक तथा संशप्तकवधपर्व हैं। इसके बाद अभिमन्युवध पर्व प्रतिज्ञापर्व जयद्रथ वधपर्व ओर घटोत्कचवध पर्व हैं।

फिर रोंगटे खड़े कर देने वाला द्रोणवध पर्व जानना चाहिये। तदनन्तर नारायणास्त्र मोक्षपर्व कहा गया है। फिर कर्णपर्व और उसके बाद शल्यपर्व है। इसी पर्व में हद-प्रवेश और गदायुद्ध-पर्व भी है। तदनन्तर सारस्वत पर्व है, जिसमे ताथा और वंशो का वर्णन किया गया है। इसके बाद है अत्यन्त वीभत्स सौप्तिक पर्व।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।