महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 165 श्लोक 1-22

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:१६, १३ जुलाई २०१५ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एक सौ पैंसठवां अध्‍याय: उद्योग पर्व (रथातिरथसंख्‍यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: एक सौ पैंसठवां अध्याय: श्लोक 1- 33 का हिन्दी अनुवाद

दुर्योधनके पूछनेपर भीष्‍मका कौरवपक्षके रथियों और अति‍रथियोंका परिचय देना धृतराष्‍ट्र ने पूछा—संजय ! जब अर्जुनने युद्धभूमिमें भीष्‍मका वध करनेकी प्रतिज्ञा कर ली, तब दुर्योधन आदि मेरे मूर्ख पुत्रोंने क्‍या किया। अर्जुन सुदृढ धनुष धारण करते हैं। इसके सिवा भगवान श्रीकृष्‍ण उनके सहायक हैं; अत: मैं रणभूमिमें अपने पिता गंगानन्‍दन भीष्‍मको उनके द्वारा मारा गया ही मानता हूं। अर्जुनकी उस प्रतिज्ञा को सुनकर अमित बुद्धिमान योद्धाओंमें श्रेष्‍ठ महाधनुर्धर भीष्‍मने क्‍या कहा। कौरवकुलका भार वहन करनेवाले परम बुद्धिमान्‍ और पराक्रमी गंगापुत्र भीष्‍मने सेनापतिका पद प्राप्‍त करनेके पश्‍चात्‍ युद्धके लिये कौन सी की। वैशम्‍पायनजी कहते हैं—जनमेजय ! तदनन्‍तर संजयने अमिततेजस्‍वी कुरूवद्ध भीष्‍मने जैसा कहा था, वह सब कुछ राजा धृतराष्‍ट्र को बताया। संजय बोले—नरेश्‍वर ! सेनापतिका पद प्राप्‍त करके शान्‍तनुनन्‍दन भीष्‍मने दुर्योधनका हर्ष बढाते हुए से उससे यह बात कही-राजन! मैं हाथ में शक्तिश धारण करनेवाले देवसेनापति कुमार कार्तिकेयको नमस्‍कार करके अब तुम्‍हारी सेनाका अधिपति होऊँगा, इसमें संशय नहीं है। मुझे सेनासम्‍बन्‍धी प्रत्‍येक कर्मका ज्ञान है। मैं नाना प्रकारके व्‍यूहोंके निर्माणमें भी कुशल हूं। तुम्‍हारी सेनामें जो वेतनभोगी अथवा वेतन न लेनेवाले मित्रसेना के सैनिक हैं, उन सबसे यथायोग्‍य काम करा लेनेकी भी कला मुझे ज्ञात है। महाराज ! मैं युद्धके लिये यात्रा करने, तथा विपक्षीके चलाये हुए अस्‍त्रोंका प्रतीकार करनेके विषयमें जैसा बृहस्‍पति जानते हैं, उसी प्रकार सम्‍पूर्ण आवश्‍यक बातों की विशेष जानकारी रखता हूं। मुझमें देवता, गन्‍धर्व और मनुष्‍य—तीनोंकी ही व्‍यूहरचना का ज्ञान है। उनके द्वारा मैं पाण्‍डवोंको मोहित कर दूंगा। अत: तुम्‍हारी मानसिक चिन्‍ता दूर हो जानी चाहिए। राजन्‍ ! मैं तुम्‍हारी सेनाकी रक्षा करता हुआ शास्‍त्रीय विधानके अनुसार यथार्थरूपसे पाण्‍डवों के साथ युद्ध करूंगा। अत: तुम्‍हारी मानसिक चिन्‍ता दूर हो जाये। दुर्योधन बोला—महाबाहु गंगानन्‍दन ! मैं आपसे सत्‍य कहता हूं, मुझे असुरोंसे भी कभी भय नहीं होता है। फिर जब आपजैसे दुर्धर्ष वीर हमारे सेनापतिके पदपर स्थित हैं तथा युद्धका अभिन्‍न्‍दन करनेवाले पुरूषसिंह द्रोणाचार्य जैसे योद्धा मेरे लिये युद्धभूमिमें उपस्थि‍त हैं, तब तो मुझे भय हो ही कैसे सकता है। कुरूश्रेष्‍ठ ! जब आप दोनों पुरूषप्रवर वीर मेरी विजयके लिये यहाँ खडे हैं, तब तो अवश्‍य ही मेरे लिये देवताओंका राज्‍य भी दुर्लभ नहीं है। कुरूनन्‍दन ! आप शत्रुओंके तथा अपने पक्षके रथियों और अतिरथियोंकी संख्‍याको पूर्णरूपसे जानते हैं, अत: मैं इन सब राजाओं के साथ आपके मुंहसे इस विषयको सुनना चाहता हूं। भीष्‍म बोले- राजेन्‍द्र गान्‍धारीनन्‍दन ! तुम अपनी सेनाके रथियोंकी संख्‍या श्रवण करो। भूपाल ! तुम्‍हारी सेनामें जो रथी और अतिर‍थी हैं, उन सबका वर्णन करता हूं। तुम्‍हारी सेनामें रथियोंकी संख्‍या अनेक सहस्र, लक्ष और अर्बुदों (करोडों) तक पहुंच जाती है। तथापि उनमें जो प्रधान-प्रधान हैं, उनके नाम मुझसे सुनो। सबसे पहले अपने दुशासन आदि सौ सहोदर भाइयोंके साथ तुम्‍हीं बहुत बडे उदार रथी हो। तुम सब लोग अस्‍त्रविधा के ज्ञाता तथा छेदन-भेदनमें कुशल हो। रथपर और हाथीकी पीठपर बैठकर भी युद्ध कर सकते हो। गदा, प्राप्‍त तथा ढाल-तलवार के प्रयोगमें भी कुशल हो। तुमलोग रथके संचालन और अस्‍त्रोंके प्रहारमें भी निपुण हो। अस्‍त्रविद्या के ज्ञाता तथा भार उठाने में भी समर्थ हो। धनुष बाण की विद्या में तो तुमलोग द्रोणाचार्य और कृपाचार्य के सुयोग्‍य शिष्‍य हो। धृतराष्‍ट्र के ये सभी मनस्‍वी पुत्र पाण्‍डवों के साथ वैर बांधे हुए हैं। अत: युद्ध में उन्‍मत्‍त होकर लडनेवाले पांचाल योद्धाओं को ये समरभूमि मे मार डालेंगे। भरतश्रेष्‍ठ ! मैं तो तुम्‍हारी सम्‍पूर्ण सेनाका प्रधन सेनापति ही हूं। अत: पाण्‍डवों को कष्‍ट देकर शत्रुसेनाके सैनिकोंका संहार करूंगा। मैं अपने मुंहसे अपने ही गुणोंका बखान करना उचित नहीं समझता। तुम तो मुझे जानते हो । शस्‍त्रधारियों में श्रेष्‍ठ भोजवंशी कृतवर्मा तुम्‍हारे दलमें अतिरथी वीर हैं। ये युद्धमें तुम्‍हारे अभीष्‍ट अर्थकी सिद्धी करेंगे। इसमें संशय नहीं है । बडे-बडे शस्‍त्रवेत्‍ता भी इन्‍हें परास्‍त नहीं कर सकते । इनके आयुध अत्‍यन्‍त दृढ हैं और ये दूरके लक्ष्‍यको भी मार गिराने में समर्थ हूं। जैसे देवराज इन्‍द्र दानवोंका संहार करते हैं, उसी प्रकार ये भी पाण्‍डवोंकी सेना का विनाश करेंगे। महाधनुर्धर मद्रराज शल्‍य को भी मैं अतिरथी मानता हूं, जो प्रत्‍येक युद्ध में सदा भगवान श्रीकृष्‍ण के साथ स्‍पर्धा रखते हैं। वे अपने सगे भानजों नकुल-ब सहदेवको छोड़कर अन्‍य सभी पाण्‍डव महारथियोंसे समरभूमिमें युद्ध करेंगे। तुम्‍हारी सेनाके इन वीरशिरोमणि शल्‍यको अतिरथी ही समझता हूं। ये समुद्रकी लहरोंके समान अपने बाणोंद्वारा शत्रु पक्षके सैनिकोंको डूबाते हुए से युद्ध करेंगे। सोमदेवके पुत्र महाधनुर्धर भूरिश्रवा भी अस्‍त्रविधाके पण्डित और तुम्‍हारे हितैषी सुदृढ हैं। ये रथियोंके यूथपतियोंके भी यूथपति हैं, अत:तुम्‍हारे शत्रुओंकी सेना का महान संहार करेंगे। महाराज ! सिन्‍धुराज जयद्रथको मैं दो रथियोंके बराबर समझता हूं। ये बडे पराक्रमी तथा रथी योद्धाओंमें श्रेष्‍ठ हैं। राजन्‍ ! ये भी समरागंण में पाण्‍डवोंके साथ युद्ध करेंगे। नरेश्‍वर ! द्रौपदीहरण के समय पाण्‍डवोंने इन्‍हें बहुत कष्‍ट पहुंचाया था। उस महान क्‍लशको याद करके शत्रु वीरों का नाश करनेवाले जयद्रथ अवश्‍य युद्ध करेंगे। राजन्‍ !उस समय इन्‍होंने कठोर तपस्‍या करके युद्धमें पाण्‍डवोंसे मुठभेड कर सकनेका अत्‍यन्‍त दुर्लभ वर प्राप्‍त किया था। तात ! ये रथियोंमें श्रेष्‍ठ जयद्रथ युद्धमें उस पुराने वैरको याद करके अपने दुश्‍मन प्राणियोंकी भी बाजी लगाकर पाण्‍डवों के साथ संग्राम करेंगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अन्‍तर्गत रथातिरथसंख्‍यान पर्वमें एक सौ पैंसठवां अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख