"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 73 श्लोक 17-34" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के ५ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
== तिहत्तरवाँ अध्‍याय: उद्योगपर्व (सेनोद्योग पर्व)==
+
==त्रिसप्ततितम (73) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)==
 +
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत उद्योग पर्व: त्रिसप्ततितम अध्याय: श्लोक 17-34 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत उद्योगपर्व: तिहत्तरवाँ अध्याय: श्लोक 25- 42 का हिन्दी अनुवाद</div>
+
दीर्घकाल के पश्चात इनकी भारी पराजय होगी । इनकी स्वाभाविक शूरता-वीरता आदि नष्ट हो जाएगी और ये मेरे पास ही प्राण त्याग करेंगे'। उन दिनों जब जुए का खेल चल रहा था, अत्यंत दुरात्मा पापी दु:शासन अनाथ की भांति रोती-कलपती हुई महारानी द्रौपदी को उनके केश पकड़कर राजसभा में घसीट लाया और भीष्म तथा द्रोणाचार्य आदि के समक्ष उसने उनका उपहास करते हुए बारंबार उसे 'गाय' कहकर पुकारा ॥ यद्यपि आपके भाई भयंकर पराक्रम प्रकट करने में समर्थ थे, तथापि आपने इन्हें रोक दिया, इसलिए धर्म बंधन में बंधे होने के कारण ये उस समय उस अन्याय का कुछ भी प्रतीकार न कर सके। जब आप वन की ओर जाने लगे, उस समय भी वह बंधु-बांधवों के बीच में ऊपर कही हुई तथा और भी बहुत-सी कठोर बातें कहकर अपनी प्रशंसा करता रहा। जो लोग वहाँ बुलाये गए थे, वे सभी नरेश आपको निरपराध देखकर रोते और आँसू बहाते हुए रुँधे हुए कंठ से उस समय चुपचाप सभा में बैठे रहे ब्राह्मणों सहित उन राजाओं ने वहाँ दुर्योधन की प्रशंसा  नहीं की । उस समय सभी सभासद् उसकी निंदा ही कर रहे थे। शत्रुसुदन ! कुलीन पुरुष की निंदा हो या वध – इनमें से वध ही उसके लिए अत्यंत गुणकारक है; निंदा नहीं । निंदा तो जीवन को घृणित बना देती है।
  
 +
महाराज ! जब इस भूमंडल के सभी राजाओं ने निंदा की, उसी समय उस निर्लज्ज दुर्योधन की एक प्रकार से मृत्यु हो गई। जिसका चरित्र इतना गिरा हुआ है, उसका वध करना तो बहुत साधारण कार्य है । जिसकी जड़ कट गयी हो और जो गोल वेदी के आधार पर खड़ा हो, उस वृक्ष की भांति दुर्योधन के भी धराशायी होने में अब अधिक विलंब नहीं है ॥ खोटी बुद्धिवाला दुराचारी दुर्योधन दुष्ट सर्प की भांति सब लोगों के लिए वध्य है । शत्रुओं का नाश करने वाले महाराज ! आप दुविधा में न पड़ें, इस दुष्ट को अवश्य मार डालें। निष्पाप नरेश ! आप जो पितृतुल्य धृतराष्ट्र तथा पितामाह भीष्म के प्रति प्रणाम एवं नम्रतापूर्ण बर्ताव करते हैं, वह सर्वथा आपके योग्य है । मैं भी इसे पसंद करता हूँ।  राजन् ! दुर्योधन के संबंध में जिन लोगों का मन दुविधा में है – जो लोग उसके अच्छे या बुरे होने का निर्णय नहीं कर सके हैं, उन सब लोगों का संदेह मैं वहाँ जाकर दूर कर दूँगा ॥ मैं राजसभा में जुटे हुए भूपालों की मंडली में आपके सर्वसाधारण गुणों का वर्णन और दुर्योधन के दोषों तथा अपराधों का उदघाटन करूँगा। मेरे मुख से धर्म और अर्थ से संयुक्त हितकर वचन सुनकर नाना जनपदों के स्वामी समस्त भूपाल आपके विषय में यह निश्चित रूप से समझ लेंगे कि युधिष्ठिर धर्मात्मा तथा सत्यवादी हैं और दुर्योधन के संबंध में भी उन्हें यह निश्चय हो जाएगा कि उसने लोभ से प्रेरित होकर ही सारा अनुचित बर्ताव किया। मैं वहाँ आये हुए चारों वर्णों के आबालवृद्ध जनसमुदाय को अपनाकर उनके सामने तथा पुरवासियों और देशवासियों के समक्ष भी इस दुर्योधन की निंदा करूंगा। वहाँ शांति के लिए याचना करने पर आप अधर्म के भी भागी न होंगे । सब राजा कौरवों की तथा धृतराष्ट्र की ही निंदा करेंगे। सब लोग दुर्योधन को अन्यायी समझकर त्याग देंगे और वह निंदनीय होने के कारण नष्टप्राय हो जाएगा । उस दशा में आपका दूसरा कौन-सा कार्य शेष रह जाता है ? जिसे सम्पन्न किया जाए ।
  
महाराज ! जब इस भूमंडल के सभी राजाओं ने निंदा की, उसी समय उस निर्लज्ज दुर्योधन की एक प्रकार से मृत्यु हो गई। जिसका चरित्र इतना गिरा हुआ है, उसका वध करना तो बहुत साधारण कार्य है । जिसकी जड़ कट गयी हो और जो गोल वेदी के आधार पर खड़ा हो, उस वृक्ष की भांति दुर्योधन के भी धराशायी होने में अब अधिक विलंब नहीं है ॥ खोटी बुद्धिवाला दुराचारी दुर्योधन दुष्ट सर्प की भांति सब लोगों के लिए वध्य है । शत्रुओं का नाश करने वाले महाराज ! आप दुविधा में न पड़ें, इस दुष्ट को अवश्य मार डालें। निष्पाप नरेश ! आप जो पितृतुल्य धृतराष्ट्र तथा पितामाह भीष्म के प्रति प्रणाम एवं नम्रतापूर्ण बर्ताव करते हैं, वह सर्वथा आपके योग्य है । मैं भी इसे पसंद करता हूँ।  राजन् ! दुर्योधन के संबंध में जिन लोगों का मन दुविधा में है – जो लोग उसके अच्छे या बुरे होने का निर्णय नहीं कर सके हैं, उन सब लोगों का संदेह मैं वहाँ जाकर दूर कर दूँगा ॥ मैं राजसभा में जुटे हुए भूपालों की मंडली में आपके सर्वसाधारण गुणों का वर्णन और दुर्योधन के दोषों तथा अपराधों का उदघाटन करूँगा। मेरे मुख से धर्म और अर्थ से संयुक्त हितकर वचन सुनकर नाना जनपदों के स्वामी समस्त भूपाल आपके विषय में यह निश्चित रूप से समझ लेंगे कि युधिष्ठिर धर्मात्मा तथा सत्यवादी हैं और दुर्योधन के संबंध में भी उन्हें यह निश्चय हो जाएगा कि उसने लोभ से प्रेरित होकर ही सारा अनुचित बर्ताव किया। मैं वहाँ आये हुए चारों वर्णों के आबालवृद्ध जनसमुदाय को अपनाकर उनके सामने तथा पुरवासियों और देशवासियों के समक्ष भी इस दुर्योधन की निंदा करूंगा। वहाँ शांति के लिए याचना करने पर आप अधर्म के भी भागी न होंगे । सब राजा कौरवों की तथा धृतराष्ट्र की ही निंदा करेंगे। सब लोग दुर्योधन को अन्यायी समझकर त्याग देंगे और वह निंदनीय होने के कारण नष्टप्राय हो जाएगा । उस दशा में आपका दूसरा कौन-सा कार्य शेष रह जाता है ? जिसे सम्पन्न किया जाए ।वहाँ पहुँच कर आपके स्वार्थ की सिद्धि में तनिक भी त्रुटि न आने देते हुए मैं समस्त कौरवों से संधि-स्थापन के लिए प्रयत्न करूंगा और उनकी चेष्टाओं पर दृष्टि रखूँगा । भारत ! मैं जाकर कौरवों की युद्ध विषयक तैयारी की बातें जान-सुनकर आपकी विजय के लिए पुन: यहाँ लौट आऊँगा ॥ मुझे तो शत्रुओं के साथ सर्वथा युद्ध होने की संभावना हो रही है, क्योंकि मेरे सामने ऐसे ही लक्षण ( शकुन ) प्रकट हो रहे हैं ।  मृग ( पशु ) और पक्षी भयंकर शब्द कर रहे हैं । प्रदोष काल में प्रमुख हाथियों और घोड़ों के समुदाया में बड़ी भयानक आकृतियाँ प्रकट होती हैं । इसी प्रकार अग्निदेव भी नाना प्रकार के भयजनक वर्णों ( रंगों ) को धारण करते हैं। यदि मनुष्यलोक का संहार करनेवाली अत्यंत भयंकर मृत्यु इनको नहीं प्राप्त हुई होती, तो ऐसी बातें देखने में नहीं आती । अत: नरेंद्र ! आपके समस्त योद्धा युद्ध के लिए दृढ़ निश्चय करके भाँति भाँति के शस्त्र, यंत्र, कवच, रथ, हाथी और घोड़ों को सुसज्जित कर लें तथा उन हाथियों, घोड़ों, एवं रथों पर सवार हो युद्ध करने के निमित्त सदा तैयार रहें । इसके सिवा आपको युद्धोउपयोगी जिन समस्त वस्तुओं का संग्रह करना है उन सबका भी आप संग्रह कर लीजिये ॥ पाण्डवप्रवर ! नरेश्वर ! यह निश्चय मानिये, आपके पास पहले जो समृद्धिशाली राज्य-वैभव था और जिसे आपने जुए में खो दिया था, वह सारा राज्य अब दुर्योधन अपने जीते-जी आपको कभी नहीं दे सकता।
+
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 73 श्लोक 1-16|अगला=महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 73 श्लोक 35-42}}
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में श्रीकृष्ण वाक्य विषयक तिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
 
 
 
 
 
 
 
 
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत उद्योगपर्व अध्याय 73 श्लोक 1- 24|अगला=महाभारत उद्योगपर्व अध्याय 74 श्लोक 1- 23}}
 
  
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}
+
{{सम्पूर्ण महाभारत}}
  
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत उद्योगपर्व]]
+
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत उद्योग पर्व]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

१५:१८, २४ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

त्रिसप्ततितम (73) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

महाभारत उद्योग पर्व: त्रिसप्ततितम अध्याय: श्लोक 17-34 का हिन्दी अनुवाद

दीर्घकाल के पश्चात इनकी भारी पराजय होगी । इनकी स्वाभाविक शूरता-वीरता आदि नष्ट हो जाएगी और ये मेरे पास ही प्राण त्याग करेंगे'। उन दिनों जब जुए का खेल चल रहा था, अत्यंत दुरात्मा पापी दु:शासन अनाथ की भांति रोती-कलपती हुई महारानी द्रौपदी को उनके केश पकड़कर राजसभा में घसीट लाया और भीष्म तथा द्रोणाचार्य आदि के समक्ष उसने उनका उपहास करते हुए बारंबार उसे 'गाय' कहकर पुकारा ॥ यद्यपि आपके भाई भयंकर पराक्रम प्रकट करने में समर्थ थे, तथापि आपने इन्हें रोक दिया, इसलिए धर्म बंधन में बंधे होने के कारण ये उस समय उस अन्याय का कुछ भी प्रतीकार न कर सके। जब आप वन की ओर जाने लगे, उस समय भी वह बंधु-बांधवों के बीच में ऊपर कही हुई तथा और भी बहुत-सी कठोर बातें कहकर अपनी प्रशंसा करता रहा। जो लोग वहाँ बुलाये गए थे, वे सभी नरेश आपको निरपराध देखकर रोते और आँसू बहाते हुए रुँधे हुए कंठ से उस समय चुपचाप सभा में बैठे रहे ब्राह्मणों सहित उन राजाओं ने वहाँ दुर्योधन की प्रशंसा नहीं की । उस समय सभी सभासद् उसकी निंदा ही कर रहे थे। शत्रुसुदन ! कुलीन पुरुष की निंदा हो या वध – इनमें से वध ही उसके लिए अत्यंत गुणकारक है; निंदा नहीं । निंदा तो जीवन को घृणित बना देती है।

महाराज ! जब इस भूमंडल के सभी राजाओं ने निंदा की, उसी समय उस निर्लज्ज दुर्योधन की एक प्रकार से मृत्यु हो गई। जिसका चरित्र इतना गिरा हुआ है, उसका वध करना तो बहुत साधारण कार्य है । जिसकी जड़ कट गयी हो और जो गोल वेदी के आधार पर खड़ा हो, उस वृक्ष की भांति दुर्योधन के भी धराशायी होने में अब अधिक विलंब नहीं है ॥ खोटी बुद्धिवाला दुराचारी दुर्योधन दुष्ट सर्प की भांति सब लोगों के लिए वध्य है । शत्रुओं का नाश करने वाले महाराज ! आप दुविधा में न पड़ें, इस दुष्ट को अवश्य मार डालें। निष्पाप नरेश ! आप जो पितृतुल्य धृतराष्ट्र तथा पितामाह भीष्म के प्रति प्रणाम एवं नम्रतापूर्ण बर्ताव करते हैं, वह सर्वथा आपके योग्य है । मैं भी इसे पसंद करता हूँ। राजन् ! दुर्योधन के संबंध में जिन लोगों का मन दुविधा में है – जो लोग उसके अच्छे या बुरे होने का निर्णय नहीं कर सके हैं, उन सब लोगों का संदेह मैं वहाँ जाकर दूर कर दूँगा ॥ मैं राजसभा में जुटे हुए भूपालों की मंडली में आपके सर्वसाधारण गुणों का वर्णन और दुर्योधन के दोषों तथा अपराधों का उदघाटन करूँगा। मेरे मुख से धर्म और अर्थ से संयुक्त हितकर वचन सुनकर नाना जनपदों के स्वामी समस्त भूपाल आपके विषय में यह निश्चित रूप से समझ लेंगे कि युधिष्ठिर धर्मात्मा तथा सत्यवादी हैं और दुर्योधन के संबंध में भी उन्हें यह निश्चय हो जाएगा कि उसने लोभ से प्रेरित होकर ही सारा अनुचित बर्ताव किया। मैं वहाँ आये हुए चारों वर्णों के आबालवृद्ध जनसमुदाय को अपनाकर उनके सामने तथा पुरवासियों और देशवासियों के समक्ष भी इस दुर्योधन की निंदा करूंगा। वहाँ शांति के लिए याचना करने पर आप अधर्म के भी भागी न होंगे । सब राजा कौरवों की तथा धृतराष्ट्र की ही निंदा करेंगे। सब लोग दुर्योधन को अन्यायी समझकर त्याग देंगे और वह निंदनीय होने के कारण नष्टप्राय हो जाएगा । उस दशा में आपका दूसरा कौन-सा कार्य शेष रह जाता है ? जिसे सम्पन्न किया जाए ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।