"महाभारत वन पर्व अध्याय 107 श्लोक 1-22" के अवतरणों में अंतर

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सप्ताधिकशततमो (107) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: सप्ताधिकशततमोअध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

सगर के पुत्रों की उत्पत्ति, साठ हजार सगर पुत्रों का कपिल की क्रोधाग्नि से भस्म होना, असमंजस का परित्याग, अंशुमान के प्रयत्न सगर के यज्ञ की पूर्ति, अंशुमान से दिलीप को और दिलीप से भगीरथ को राज्य की प्राप्ति लोमशजीकहतेहैं– भरतश्रेष्‍ट यह आकाशवाणी सुनकर भूपालशिरोमणी राजा सगर ने उस पर विश्वास करके उसके कथानुसार सब कार्य किया। नरेश एक एक बीज को अलग करके सबको घी से हुए घड़ों से रखा । फिर पुत्रों की रक्षा के लिए तत्पर हो सब के लिये पृथक पृथक धायें नियुक्त कर दी । तदन्तर दीर्धकाल के पश्चात उस अनुपम तेजस्वी नरेश के साठ हजार महाबली पुत्र उन घड़ों मे से निकल आये युधिष्ठि‍र ! राजर्षि‍ सगर के वे सभी पुत्र भगवान शिव की कृपा से ही उत्पन्न हुए थे । वे सब के सब भयंकर स्वाभाव वाले और क्रूरकर्मा थे । आकाश मे भी सब ओर घूम फिर सकते थे उनकी संख्या अधिक होने के कारण देवताओं सहित सम्पूर्ण लोकों की अवहेलना करते थे । समरभूमि मे शोभा पाने वाले वे शूरवीर राजकुमार देवताओं, गन्धर्वो, राक्षसों तथा सम्पूर्ण प्राणियों को कष्‍ट दिया करते थे । मन्दबुद्धि सगर पुत्रों द्वारा सताये हुए सब लोग सम्पूर्ण देवताओं के साथ ब्रह्माजी की शरण मे गये । उस समय सर्वलोक पितामह महाभारत ब्रह्मा ने उनसे कहा– देवताओं । तुम सभी इन सब लोगों के साथ जैसे आये हो, वैसे लौट जाओ । अब थोड़े ही दिनों मे अपने ही किये हुए अपराधोंद्वारा इन सगर पुत्रों का अत्यन्त घोर और महान संहार होगा । नरेश्वर। उनके ऐसा कहने पर सब देवता तथा अन्य लोग ब्रह्माजी की आज्ञा ले जैसे आये थे, वैसे लौट गये । भरतश्रेष्‍ठ! तदन्तर बहुत समय बीत जाने पर पराक्रमी राजा सगर ने अश्रवमेध यज्ञ की दीक्षा ली । राजन ! उनका यज्ञिस अश्व उनके अत्यन्त उत्साही सभी पुत्रों द्वारा स्वच्छन्द गति से पृथ्वी पर विचरने लगा। जब वह अश्व भयंकर दिखायी देने वाले जल शून्य समुद्र के तटपर आया, तब प्रयत्नपूर्वक रक्षि‍त होने पर भी वहां सहसा अदृश्य हो गया। तात ! तब उस उत्तम अश्व को अपहृत जानकर सगर पुत्रों ने पिता के पास आकर कहा – हमारे यज्ञिय अश्व को किसी ने चुरा लिया, अब दिखायी नही देता। वह सुनकर राजा सगर ने कहा– तुम सब लोग समुद्र, वन और द्वीपों सहित सारी पृथ्वी पर विचरते हुए सम्पूर्ण दिशाओं में जाकर उस अश्व का पता लगाओ । महाराज ! तदन्तर वे पिता की आज्ञा ले इस सम्पूर्ण भूतल में सभी दिशाओं मे अश्व की खोज करने लगे । खोजते खोजते सभी सगर पुत्र एक दूसरे से मिलें, परंतु वे अश्व तथा अश्वहर्ता का पता न लगा सके। तब वे पिता के पास आकर उनके आगे हाथ जोड़कर बोले– महाराज हमने आपकी आज्ञा से समुद्र, वन, द्वीप, नदी, नद, कन्दरा, पर्वत और वन्य प्रदेशो सहित सारी पृथ्वी खोज डाली, परंतु हमें न तो अश्व मिलान उसको चुराने- वाला ही । युधिष्ठि‍र ! उनकी बात सुनकर राजा सगर क्रोध से मूर्च्छित हो उठे और उस समय दैववश उन सबसे इस प्रकार बोले - जाओ, लौटकर न आना । पुन: घोड़े का पता लगाओ । पुत्रों ! उस यज्ञ के अश्व को लिये बिना वापस न आना । पिता का वह संदेश शिरोधार्य करके सगर पुत्रों ने फिर सारी पृथ्वी पर अश्व को ढूंढ़ना आरम्भ किया । तदनन्तर उन वीरों ने एक स्थान पर पृथ्वी में दरार पड़ी देखी ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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