महाभारत वन पर्व अध्याय 189 श्लोक 51-59

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एकोननवत्यधिकशततम (189) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)

महाभारत: वन पर्व: एकोननवत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 51-59 का हिन्दी अनुवाद

सम्पूर्ण धर्मात्माओंमें श्रेष्ठ भरत-कुल-तिलक युधिष्ठिर! इस प्रकार उस प्रलयकालके आनेपर मुझे यह आश्चर्यजनक अनुभव हुआ था। नरश्रेष्ठ! पुरातन प्रलयके समय मुझे जिन कमलदललोचन देवता भगवान् बालमुकुन्दका दर्शन हुआ था, तुम्हारे सम्बन्धी ये भगवान् श्रीकृष्ण वे ही हैं। कुन्तीनन्दन! इन्हींके वरदानसे मुझे पूर्व जन्मकी स्मृति भूलती नहीं है। मेरी दीर्घकालीन आयु और स्वच्छंदमृत्यु भी इन्हींकी कृपाका प्रसाद हैं। ये वृष्णिकुल-भूषण महाबाहु श्रीकृष्ण ही वे सर्वव्यापी, अचिन्त्यस्वरूप, पुराण-पुरूष श्रीहरि हैं, जो पहले बालरूपमें मुझे दिखायी दिये थे। वे ही यहां अवतीर्ण हो भांति-भांतिकी लीलाएं करते हुए से दीख रहे हैं। श्रीवत्सचिह्न जिनके वक्षःस्थलकी शोभा बढ़ाता हैं, वे भगवान् गोविन्द ही इस विश्वकी सृष्टि, पालन और संहार करनेवाले, सनातन प्रभु और प्रजापतियोंके भी पति हैं। इन आदिदेवस्वरूप, विजयशील, पीताम्बरधारी पुरूष, वृष्णि-कुल-भूषण श्रीकृष्णको देखकर मुझे इस पुरातन घटनाकी स्मृति हो आयी हैं। कुरूकुलश्रेष्ठ पाण्डवो! ये माधव ही समस्त प्राणियोंके पिता और माता हैं। ये ही सबको शरण देनेवाले हैं। अतः तुम सब लोग इन्हींकी शरणमें जाओ। वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय! मार्कण्डेय मुनिके ऐसा कहनेपर कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन तथा पुरूषरत्न नकुल-सहदेव-इन सबने द्रौपदीसहित उठकर भगवान् श्रीकृष्णके चरणोंके प्रणाम किया। नरश्रेष्ठ! फिर सम्माननीय श्रीकृष्णने भी इन सबका विधिपूर्वक समादर करते हुए परम मधुर सान्त्वनापूर्ण वचनोंद्वारा इन्हें सब प्रकारके आश्वासन दिया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वंके अन्तर्गत मार्कण्डेयसमास्या पर्वं में भविष्यकथनविषयक एक सौ नवासीवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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