महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 100 श्लोक 16-31

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शततम (100) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: शततम अध्याय: श्लोक 16-31 का हिन्दी अनुवाद

उस स्थान पर शत्रुओं के आक्रमण को रोकने के लिये सुविधा होनी चाहिये। युद्धकुशल पुरूष सेना की छावनी डालने के लिये खुले मैदान की अपेक्षा अनेक गुणों के कारण जंगल के निकटवर्तीं स्थान को अधिक लाभदायक मानते हैं। उस वन के समीप ही सेना का पड़ाव डालना चाहिये। वहाँ व्यूह निर्माण करने के लिये रथ और वाहनों से उतरना तथा पैदल सैनिकों को छिपाकर रखना सम्भव हैं। वहाँ रहकर शत्रुओं के प्रहार का जवाब दिया जा सकता हैं और आपत्ति के समय छिप जाने का भी सुभीता रहता हैं। योद्धाओं को चाहिये कि वे सप्तर्षिंयों को पीछे रखकर पर्वत की तरह अविचल भाव से युद्ध करें। इस विधिसे आक्रमण करनेवाला राजा दुर्जय शत्रुओंको भी जीतने की आशा कर सकता है। जिस ओर वायु, जिस ओर सूर्य और जिस ओर शु़क्र हों, उसी ओर पृष्ठभाग रखकर युद्ध करनेर्से िवजय प्राप्त होती है। युधिष्ठिर ! यदि ये तीनो भिन्न-भिन्न दिशाओे में हों तो इनमें पहला-पहला श्रेष्ठ है अर्थात् वायुको पीछे रखकर शेष दोको सामने रखते हुए भी युद्ध किया जा सकता है । घुड़सवार सेनाके लिये युद्धकुशल पुरूष उसी भूमिकी प्रशंसा करते हैं, जिसमें कीचड़, पानी, बाँध और ढेले न हों। रथसेनाके लिये वह भूमि अच्छी मानी गयी है, जहाँ कीचड़ और गड्ढे न हों। जिस भूमिमें नाटे वृक्ष, बहुत-से घास-फूस और जलाशय हों, वह गजारोही योद्धाओंके लिये अच्छी मानी गयी हैं। जो भूमि अत्यन्त दुर्गम, अधिक घास-फूसवाली, बाँस और बेंतोंसे भरी हुई तथा पर्वत एवं उपवनोंसे युक्त हो, वह पैदल सेनाओंके योग्य होती है। भरतनन्दन ! जिस सेनामें पैदलोंकी संख्या बहुत अधिक हो, वह मजबूत होती है। जिसमें रथों और घोंड़ोंकी संख्या बढ़ी हुई हो, वह सेना अच्छे दिनोंमें (जबकि वर्षा न होती हो) अच्छी मानी जाती है। बरसातमें वही सेना श्रेष्ठ समझी जाती है, जिसमें पैदलों और हाथीसवारों की संख्या अधिक हो। इन गुणोंका विचार करके देश और कालको दृष्टिमें रखते हुए सेनाका संचालन करना चाहिये। जो इन सब बातोंपर विचार करके शुभ तिथि और श्रेष्ठ नक्षत्रसे युक्त होकर शत्रुपर चढ़ाई करता है, वह सेनाका ठीक ढंगसे संचालन करके सदा ही विजयलाभ करता है। जो लोग सो लोग सो रहे हों, प्यासे हों, थक गये हों अथवा इधर-उधर भाग रहें हों, उनपर अघात न करे। शस्त्र और कवच उतार देनेके बाद, युद्धस्थलसे प्रस्थान करते समय, घूमते-फिरते समय और खाने-पीनेके अवसरपर किसीको न मारे। इसी प्रकार जो बहुत घबराये हुए हों, पागल हो गये हों, घायल हों, दुर्बल हो गये हों, लेखनका कार्य करते हों, पीड़ासे संतप्त हों, बाहर घूम रहे हों, दूरसे सामान लाकर लोगोंके निकट पहुँचानेका काम करते हों अथवा छावनीकी ओर भागे जा रहे हों, उनपर भी प्रहार न करे। जो परम्परासे प्राप्त हुए राजद्वारपर रक्षा आदि सेवाका कार्य करते हों अथवा जो राजसेवक मन्त्री आदिके द्वारपर पहरा देते हों तथा किसी युथके अधिपति हों, उनको भी नहीं मारना चाहिये। जो शत्रुकी सेनाको छिन्न -भिन्न कर डालते हैं और अपनी तितर-बितर हुई सेनाको संगठित करके दृढ़तापूर्वक स्थापित करनेकी शक्ति रखते हैं, ऐसे लोगोंको राजा अपने समान ही भोजन-पानकी सुविधा देकर सम्मानित करे और उन्हें दुगुना वेतन दे। सेनामें कुछ लोगोंको दस-दस सैनिकोंका नायक बनावे, कुछको सौका तथा किसी प्रमुख और आलस्यरहित वीरको एक हजार योद्धाओंका अध्यक्ष नियुक्त करे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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