"श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय स्कन्ध अध्याय 13 श्लोक 42-50" के अवतरणों में अंतर

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श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी! उन ब्रम्हवादी मुनियों के इस प्रकार स्तुति करने पर सबकी रक्षा करने वाले वराहभगवान् अपने खुरों से जल को स्तम्भित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। इस प्रकार रसातल से लीला पूर्वक लायी हुई पृथ्वी को जल पर रखकर वे विष्वक्सेन प्रजापति भगवान् श्रीहरि अन्तर्धान हो गये। विदुरजी! भगवान् के लीलामय चरित्र अत्यन्त कीर्तनिय हैं और उनमें लगी हुई बुद्धि सब प्रकार के पाप-तापों को दूर कर देती है। जो पुरुष उनकी इस मंगलमयी मंजुल कथा को भक्तिभाव से सुनता या सुनाता है, उसके प्रति भक्तवत्सल भगवान् अन्तस्तल से बहुत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान् तो सभी कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं, उनके प्रसन्न होने पर संसार में क्या दुर्लभ है। किन्तु उन तुच्छ कामनाओं की आवश्यकता ही क्या है ? जो लोग उनका अनन्यभाव से भजन करते हैं, उन्हें तो वे अन्तर्यामी परमात्मा स्वयं अपना परमपद ही दे देते हैं। अरे! संसार में पशुओं को छोड़कर अपने पुरुषार्थ का सार जानने वाला ऐसा कौन पुरुष होगा, जो आवागमन से छुड़ा देने वाली भगवान् की प्राचीन कथाओं में से एक बार पान करके फिर उनकी ओर से मन हटा लेगा।
 
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी! उन ब्रम्हवादी मुनियों के इस प्रकार स्तुति करने पर सबकी रक्षा करने वाले वराहभगवान् अपने खुरों से जल को स्तम्भित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। इस प्रकार रसातल से लीला पूर्वक लायी हुई पृथ्वी को जल पर रखकर वे विष्वक्सेन प्रजापति भगवान् श्रीहरि अन्तर्धान हो गये। विदुरजी! भगवान् के लीलामय चरित्र अत्यन्त कीर्तनिय हैं और उनमें लगी हुई बुद्धि सब प्रकार के पाप-तापों को दूर कर देती है। जो पुरुष उनकी इस मंगलमयी मंजुल कथा को भक्तिभाव से सुनता या सुनाता है, उसके प्रति भक्तवत्सल भगवान् अन्तस्तल से बहुत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान् तो सभी कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं, उनके प्रसन्न होने पर संसार में क्या दुर्लभ है। किन्तु उन तुच्छ कामनाओं की आवश्यकता ही क्या है ? जो लोग उनका अनन्यभाव से भजन करते हैं, उन्हें तो वे अन्तर्यामी परमात्मा स्वयं अपना परमपद ही दे देते हैं। अरे! संसार में पशुओं को छोड़कर अपने पुरुषार्थ का सार जानने वाला ऐसा कौन पुरुष होगा, जो आवागमन से छुड़ा देने वाली भगवान् की प्राचीन कथाओं में से एक बार पान करके फिर उनकी ओर से मन हटा लेगा।
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०८:१२, २५ अगस्त २०१५ का अवतरण

तृतीय स्कन्ध: त्रयोदश अध्यायः (13)

श्रीमद्भागवत महापुराण: तृतीय स्कन्ध: त्रयोदश अध्यायः श्लोक 42-50 का हिन्दी अनुवाद

नाथ! चराचर जीवों के सुखपूर्वक रहने के लिये आप अपनी पत्नी इन जगन्माता पृथ्वी को जल पर स्थापित कीजिये। आप जगत् के पिता हैं और अरणि में अग्निस्थापन के समान आपने इसमें धारण शक्तिरूप अपना तेज स्थापित किया है। हम आपको और इस पृथ्वीमाता को प्रणाम करते हैं। प्रभो! रसातल में डूबी हुई इस पृथ्वी को निकालने का साहस आपके सिवा और कौन कर सकता था। किंतु आप तो सम्पूर्ण आश्चर्यों के आश्रय हैं, आपके लिये यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आपने ही तो अपनी माया से इस अत्याश्चार्यमय विश्व की रचना की। जब आप अपने वेदमय विग्रह को हिलाते हैं, तब हमारे ऊपर आपकी गरदन के बालों से झरती हुई शीतल बूँदें गिरती हैं। ईश! उनसे भोगकर हम जनलोक, तपलोक और सत्यलोक में रहने वाले मुनिजन सर्वथा पवित्र हो जाते हैं। जो पुरुष आपके कर्मों का पार पाना चाहता है, अवश्य ही उसकी बुद्धि नष्ट हो गयी है; क्योंकि आपके कर्मों का कोई पार ही नहीं है। आपकी योगमाया के सात्वादि गुणों से यह सारा जगत् मोहित हो रहा है। भगवन्! आप इसका कल्याण कीजिये।

श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी! उन ब्रम्हवादी मुनियों के इस प्रकार स्तुति करने पर सबकी रक्षा करने वाले वराहभगवान् अपने खुरों से जल को स्तम्भित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। इस प्रकार रसातल से लीला पूर्वक लायी हुई पृथ्वी को जल पर रखकर वे विष्वक्सेन प्रजापति भगवान् श्रीहरि अन्तर्धान हो गये। विदुरजी! भगवान् के लीलामय चरित्र अत्यन्त कीर्तनिय हैं और उनमें लगी हुई बुद्धि सब प्रकार के पाप-तापों को दूर कर देती है। जो पुरुष उनकी इस मंगलमयी मंजुल कथा को भक्तिभाव से सुनता या सुनाता है, उसके प्रति भक्तवत्सल भगवान् अन्तस्तल से बहुत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान् तो सभी कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं, उनके प्रसन्न होने पर संसार में क्या दुर्लभ है। किन्तु उन तुच्छ कामनाओं की आवश्यकता ही क्या है ? जो लोग उनका अनन्यभाव से भजन करते हैं, उन्हें तो वे अन्तर्यामी परमात्मा स्वयं अपना परमपद ही दे देते हैं। अरे! संसार में पशुओं को छोड़कर अपने पुरुषार्थ का सार जानने वाला ऐसा कौन पुरुष होगा, जो आवागमन से छुड़ा देने वाली भगवान् की प्राचीन कथाओं में से एक बार पान करके फिर उनकी ओर से मन हटा लेगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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