"श्रीमद्भागवत महापुराण द्वादश स्कन्ध अध्याय 11 श्लोक 46-50" के अवतरणों में अंतर

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== द्वादश स्कन्ध: एकादशोऽध्यायः (11) ==
 
== द्वादश स्कन्ध: एकादशोऽध्यायः (11) ==
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण:  द्वादश स्कन्ध: एकादशोऽध्यायः श्लोक 46-50 का हिन्दी अनुवाद </div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण:  द्वादश स्कन्ध: एकादशोऽध्यायः श्लोक 46-50 का हिन्दी अनुवाद </div>
ये सूर्यदेव अपने छः गुणों के साथ बारहों महीने सर्वत्र विचरते रहते हैं और इस लोक तथा परलोक में विवेक-बुद्धि का विस्तार करते हैं । सूर्य भगवान् के गणों में ऋषिलोग तो सूर्य सम्बन्धी ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के मन्त्रों द्वारा उनकी स्तुति करते हैं और गंधर्व उनके सुयश का गान करते रहते हैं। अप्सराएँ आगे-आगे नृत्य करती चलती हैं ।
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ये सूर्यदेव अपने छः गुणों के साथ बारहों महीने सर्वत्र विचरते रहते हैं और इस लोक तथा परलोक में विवेक-बुद्धि का विस्तार करते हैं । सूर्य भगवान  के गणों में ऋषिलोग तो सूर्य सम्बन्धी ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के मन्त्रों द्वारा उनकी स्तुति करते हैं और गंधर्व उनके सुयश का गान करते रहते हैं। अप्सराएँ आगे-आगे नृत्य करती चलती हैं ।
नाग गण रस्सी की तरह उनके रथ को कसे रहते हैं। यक्ष गण रथ का साज सजाते हैं और बलवान् राक्षस उसे पीछे से धकेलते हैं । इनके सिवा वालखिल्य नाम के साठ हजार निर्मल स्वभाव ब्रम्हर्षि सूर्य की ओर मुँह करके उनके आगे-आगे स्तुति पाठ करते चलते हैं । इस प्रकार अनादि, अनन्त, अजन्मा भगवान् श्रीहरि ही कल्प-कल्प में अपने स्वरुप का विभाग करके लोकों का पालन-पोषण करते-रहते हैं ।
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नाग गण रस्सी की तरह उनके रथ को कसे रहते हैं। यक्ष गण रथ का साज सजाते हैं और बलवान् राक्षस उसे पीछे से धकेलते हैं । इनके सिवा वालखिल्य नाम के साठ हजार निर्मल स्वभाव ब्रम्हर्षि सूर्य की ओर मुँह करके उनके आगे-आगे स्तुति पाठ करते चलते हैं । इस प्रकार अनादि, अनन्त, अजन्मा भगवान  श्रीहरि ही कल्प-कल्प में अपने स्वरुप का विभाग करके लोकों का पालन-पोषण करते-रहते हैं ।
  
 
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१२:३५, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

द्वादश स्कन्ध: एकादशोऽध्यायः (11)

श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वादश स्कन्ध: एकादशोऽध्यायः श्लोक 46-50 का हिन्दी अनुवाद

ये सूर्यदेव अपने छः गुणों के साथ बारहों महीने सर्वत्र विचरते रहते हैं और इस लोक तथा परलोक में विवेक-बुद्धि का विस्तार करते हैं । सूर्य भगवान के गणों में ऋषिलोग तो सूर्य सम्बन्धी ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के मन्त्रों द्वारा उनकी स्तुति करते हैं और गंधर्व उनके सुयश का गान करते रहते हैं। अप्सराएँ आगे-आगे नृत्य करती चलती हैं । नाग गण रस्सी की तरह उनके रथ को कसे रहते हैं। यक्ष गण रथ का साज सजाते हैं और बलवान् राक्षस उसे पीछे से धकेलते हैं । इनके सिवा वालखिल्य नाम के साठ हजार निर्मल स्वभाव ब्रम्हर्षि सूर्य की ओर मुँह करके उनके आगे-आगे स्तुति पाठ करते चलते हैं । इस प्रकार अनादि, अनन्त, अजन्मा भगवान श्रीहरि ही कल्प-कल्प में अपने स्वरुप का विभाग करके लोकों का पालन-पोषण करते-रहते हैं ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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