श्रीमद्भागवत महापुराण द्वादश स्कन्ध अध्याय 11 श्लोक 29-45
द्वादश स्कन्ध: एकादशोऽध्यायः (11)
सूतजी ने कहा—समस्त प्राणियों के आत्मा भगवान विष्णु ही हैं। अनादि अविद्या से अर्थात् उनके वास्तविक स्वरुप के आज्ञान से समस्त लोकों के व्यवहार-प्रवर्तक प्राकृत सूर्यमण्डल का निर्माण हुआ है। वही लोकों में भ्रमण किया करता है । असल में समस्त लोकों के आत्मा एवं आदि कर्ता एकमात्र श्रीहरि ही अन्तर्यामी रूप से सूर्य बने हुए हैं। वे यद्यपि एक ही हैं, तथापि ऋषियों ने उनका बहुत रूपों में वर्णन किया है, वे ही समस्त वैदिक क्रियाओं के मूल हैं । शौनकजी! एक भगवान ही माया के द्वार काल, देश, यज्ञादि क्रिया, कर्ता, स्त्रुवा आदि करण, यागादि कर्म, वेद मन्त्र, शाकल्य आदि द्रव्य और फल रूप से नौ प्रकार के कहे जाते हैं । कालरूपधारी भगवान सूर्य लोगों का व्यवहार ठीक-ठीक चलाने के लिये चैत्रादि बारह महीनों में अपने भिन्न-भिन्न बारह गणों के साथ चक्कर लगाया करते हैं । शौनकजी! धाता नामक सूर्य, कृतस्थली अप्सरा, हेति राक्षस, वासुकि सर्प, रथकृत् यक्ष, पुलस्त्य ऋषि और तुम्बुरु गन्धर्व—ये चैत्र मास में अपना-अपना कार्य सम्पन्न करते हैं । अर्यमा सूर्य, पुलह ऋषि, अथौजा यक्ष, प्रहेति राक्षस, पुंजिक स्थली अप्सरा, नारद गन्धर्व और कच्छनीर सर्प—ये वैशाख मास के कार्य-निर्वाहक हैं । मित्र सूर्य, अत्रि ऋषि, पौरुषेय राक्षस, तक्षक सर्प, मेनका अप्सरा, हाहा गन्धर्व और रथस्वन यक्ष—ये जेष्ठ मास के कार्य निर्वाहक हैं । आषाढ़ में वरुण नामक सूर्य के साथ वसिष्ठ ऋषि, रम्भा, अप्सरा, सहजन्य यक्ष, हूहू गन्धर्व, शुक्र नाग और चित्रस्वन राक्षस अपने-अपने कार्य का निर्वाह करते हैं । श्रावण मास इन्द्र नामक सूर्य का कार्यकाल है। उनके साथ विश्वावसु गन्धर्व, श्रोता यक्ष, एलापत्र नाग, अंगिरा ऋषि, प्रम्लोचा अप्सरा एवं वर्य नामक राक्षस अपने कार्य का सम्पादन करते हैं । भाद्रपद के सूर्य का नाम है विवस्वान्। उनके साथ उग्रसेन गन्धर्व, व्याघ्र राक्षस, आसारण यक्ष, भृगु ऋषि, अनुम्लोचा अप्सरा और शंखपाल नाग रहते हैं । शौनकजी! माघ मास में पूषा नाम के सूर्य रहते हैं। उनके साथ धनंजय नाग, वात राक्षस, सुषेण गन्धर्व,, सुरुचि यक्ष, घृताची अप्सरा और गौतम ऋषि रहते हैं । फाल्गुन मास का कार्यकाल पर्जन्य नामक सूर्य का है। उनके साथ क्रतु यक्ष, वर्चा राक्षस, भरद्वाज ऋषि, सेनजित् अप्सरा, विश्व गन्धर्व और ऐरावत सर्प रहते हैं । मार्गशीर्ष मास में सूर्य का नाम होता है अंशु। उनके साथ कश्यप ऋषि, ताक्ष्र्य पक्ष, ऋतसेन गन्धर्व, उर्वशी अप्सरा, विद्दुच्छ्त्रु राक्षस और महाशंख नाग रहते हैं । पौष मास में भग नामक सूर्य के साथ स्फूर्ज राक्षस, अरिष्टिनेमि गन्धर्व, उर्ण यक्ष, आयु ऋषि, पूर्वचित्ति अप्सरा और कर्कोटक नाग रहते हैं । आश्विन मास में त्वष्टा सूर्य, जमदग्नि ऋषि, कम्बल नाग, तिलित्तम अप्सरा, ब्रम्हापेत राक्षस, शतजित् यक्ष और धृतराष्ट्र गन्धर्व का कार्यकाल है तथा कीर्ति में विष्णु नामक सूर्य के साथ अश्वतर नाग, रम्भा अप्सरा, सूर्यवर्चा गन्धर्व, सत्यजित् यक्ष, विश्वामित्र ऋषि और मखापेत राक्षस अपना-अपना कार्य सम्पन्न करते हैं । शौनकजी! ये सब सूर्यरूप भगवान की विभूतियाँ हैं। जो लोग इनका प्रतिदिन प्रातःकाल और सायंकाल स्मरण करते हैं, उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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