महाभारत आदि पर्व अध्याय 196 श्लोक 1-12

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षण्‍णवत्‍यधिकशततम (196) अध्‍याय: आदि पर्व (वैवाहिक पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: षण्‍णवत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

व्‍यासजी का द्रुपद को पाण्‍डवों तथा द्रौपदी के पूर्वजन्‍म की कथा सुनाकर दिव्‍य द्दष्टि देना और द्रुपद का उनके दिव्‍य रुपों की झांकी करना व्‍यासजी ने कहा- पाञ्चालनरेश ! पूर्व काल की बात है, नैमिषारण्‍य क्षेत्र में देवता लोग एक यज्ञ कर रहे थे। उस समय वहां सूर्यपुत्र यम शामित्र (यज्ञ) कार्य करते थे। राजन् ! उस यज्ञ की दीक्षा लेने के कारण यमराज ने मानव प्रजा की मृत्‍यु का काम बंद कर रखा था। इस प्रकार मृत्‍यु का नियम समय बीत जाने से सारी प्रजा अमर होकर दिनों-दिन बढ़ने लगे। धीरे-धीरे उसकी संख्‍या बहुत बढ़ गयी। चन्‍द्रमा, इन्‍द्र, वरुण, कुबेर, साध्‍यगण, रुद्रगण, वसुगण, दोनों अश्विनीकुमार तथा अन्‍य सब देवता मिलकर जहां सृष्टिकर्ता प्रजापति ब्रह्माजी रहते थे, वहां गये। वहां जाकर वे सब देवता लोकगुरु ब्रह्माजी से बोले- ‘भगवन् ! मनुष्‍यों की संख्‍या बहुत बढ़ रही है। इससे हमें बड़ा भय लगता है। उस भय से हम सब लोग व्‍याकुल हो उठे हैं और सुख पाने की इच्‍छा से आपकी शरण में आये हैं’। ब्रह्माजी ने कहा- तुम्‍हें मनुष्‍यों से क्‍यों भय लगता है? जब कि तुम सभी लोग अमर हो, तब तुम्‍हें मरणधर्मा मनुष्‍यों से कभी भयभीत नहीं होना चाहिये । देवता बोले- जो मरणशील थे, वे अमर हो गये। अब हममें और उनमें कोई अन्‍तर नहीं रह गया। यह अन्‍तर मिट जाने से ही हमें अधिक घबराहट हो रही है। हमारी विशेषता बनी रहे, इसीलिये हम यहां आये हैं। भगवान् ब्रह्माजी ने कहा- सूर्यपुत्र यमराज यज्ञ के कार्य में लगे हैं, इसीलिये वे मनुष्‍य मर नहीं रह हैं। जब वे यज्ञ का सारा काम पूरा करके इधर ध्‍यान देंगे, तब इन मनुष्‍यों का अन्‍तकाल उपस्थित होगा। तुम लोगों के बल के प्रभाव से जब सूर्यनन्‍दन यमराज का शरीर यज्ञकार्य से अलग होकर अपने कार्य में प्रयुक्‍त होगा, तब वहीं अन्‍तकाल आने पर मनुष्‍यों की मृत्‍यु का कारण बनेगा। उस समय मनुष्‍यों में इतनी शक्ति नहीं होगी कि वे मृत्‍यु से अपने को बचा सकें। व्‍यासजी कहते हैं- राजन् ! तब वे अपने पूर्वज देवता ब्रह्माजी का वचन सुनकर फिर वहीं चले गये, जहां सब देवता यज्ञ कर रहे थे। एक दिन वे सभी महाबली देवगण गंगाजी में स्‍नान करने के लिये गये और वहां तट पर बैठे। उसी समय उन्‍हें भागीरथी के जल में बहता हुआ एक कमल दिखायी दिया। उसे देखकर वे सब देवता चकित हो गये। उनमें सबने प्रधान और शूरवीर इन्‍द्र उस कमल का पता लगाने के लिये गंगाजी के मूल स्‍थान की ओर गये। गंगोतरी के पास, जहां गंगादेवी का जल सदा अविच्छिन्‍नरुप से झरता रहता है, पहुंचकर इन्‍द्र ने एक अग्नि के समान तेजस्विनी युवती देखी। वह युवती वहां जल के लिये आयी थी और भगवती गंगा की धारा में प्रवेश करके रोती हुई खड़ी थी। उसके आंसुओं का एक-एक बिन्‍दु, जो जल में गिरता था, वहां सुवर्णमय कमल बन जाता था। यह अद्रुत दृश्‍य देखकर वज्रधारी इन्‍द्र ने उस समय उस युवती के निकट जाकर पूछा-‘भद्रे ! तुम कौन हो और किस लिये रोती हो ? बताओ, मैं तुमसे सच्‍ची बात जानना चाहता हूं’ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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