महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 106 श्लोक 41-58

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षडधिकशततम (106) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: षडधिकशततम अध्याय: श्लोक 41-58 का हिन्दी अनुवाद

महाबाहू कुन्तीकुमार अर्जुन को भीष्म के साथ युद्ध करने के लिये उद्यत देख युधिष्ठिर वह भागती हुई विशाल सेना पुनः लौट आयी। तब बार बार सिंहनाद करते हुए कुरूश्रेष्ठ भीष्म ने धनंजय के रथ पर शीघ्र ही बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। भारत ! एक ही क्षण में बाणों की उस भारी वर्षा के कारण सारथि और घोडोंसहित उनका वह रथ ऐसा अदृश्य हो गया कि उसका कुछ पता ही नहीं चलता था। भगवान श्रीकृष्ण बिना किसी घबराहट के धैर्य धारण कर भीष्म के सायकों से क्षत-विक्षत हुए उन घोडों को शीघ्रता पूर्वक हाँक रहे थे। तब कुन्तीकुमार ने मेघ के समान गंभीर घोष करने वाले अपने दिव्य धनुष को हाथ में लेकर तीखे बाणों द्वारा भीष्म के धनुष को काट गिराया। धनुष कट जाने पर आपके ताऊ कुरूकुलरत्न भीष्म ने पुनः दूसरा धनुष हाथ में ले पलक मारते मारते उसके ऊपर प्रत्यचा चढ़ा दी। तदनन्तर मेघों के समान गम्भीर नाद करने वाले उस धनुष को उन्होंने दोनों हाथों से खींचा। इतने ही कुपित हुए अर्जुन ने उनके उस धनुष को भी काट दिया। शत्रुदमन नरेश ! उस समय शान्तनुकमार गंगनन्दन भीष्म ने धनुर्धरों में श्रेष्ठ कुन्तीपुत्र अर्जुन की उस फुर्ती के लिये उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की और इस प्रकार कहा-महाबाहो ! कुन्तीकुमार ! बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, तुम्हें साधुवाद। ऐसा कहकर भीष्म ने पुनः दूसरा सुन्दर धनुष लेकर समरांगण में अर्जुन के रथ की ओर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। भगवान् श्रीकृष्ण ने घोड़ों के हाँकने की कला में अपनी अद्भुत शक्ति दिखायी। वे भाँति-भाँति के पैंतरे दिखाते हुए भीष्म के बाणों को व्यर्थ करते जा रहे थे।
युद्धस्थल में भगवान् श्रीकृष्ण कुशलतापूर्वक सारथ्यकर्म करते दिखायी दिये। राजेन्द्र ! भीष्म अत्यन्त क्रोध में भरकर युद्ध में पार्थके ऊपर बार बार बाणों की वर्षा करते रहे। यह अदभत सी बात थीं। फिर शत्रुदमन अर्जुन ने भी क्रोध में भर कर युद्ध के लिये अपने सामने खड़े हुए भीष्म पर बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। वे दोनों रणदुर्जय वीर एक दूसरे से युद्ध कर रहे थे। उस समय पुरूषसिंह श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों ही भीष्म के बाणों से क्षत-विक्षत हो सींगों के आघात से घायल हुए दो रोषभरे साँड़ों के समान सुशोभित हो रहे थे। तत्पश्चात् भीष्म ने भी रणक्षेत्र में अत्यन्त क्रुद्व होकर अपने बाणों द्वारा बलपूर्वक अर्जुन के मस्तक पर आघात किया। उसके बाद वे बार बार सिंह के समान गर्जना करने लगे। भगवान् श्रीकृष्ण ने देखा कि अर्जुन मन लगाकर युद्ध नहीं कर रहे है। वे भीष्म के प्रति कोमलता दिखा रहे है और उधर भीष्म युद्ध में सेना के मध्यभाग में खड़े हो निरन्तर बाणों की वर्षा करते हुए दोपहर के सूर्य के समान तप रहे है। पाण्डव सेना के चुने हुए उत्तमोत्तम वीरों को मार रहे है और युधिष्ठिर सेना में प्रलयकाल सा दृश्य उपस्थित कर रहे है। तब शत्रुवीरों का नाश करने वाले महाबाहु माधव को यह सहन नहीं हुआ। आर्य ! वे योगेश्वर भगवान् वासुदेव चाँदी के समान सफेद रंगवाले अर्जुन के घोड़ों को छोडकर उस विशाल रथ से कूद पड़े और केवल भुआओं का ही आयुष लिये हाथों में चाबुक उठाये बार बार सिहंनाद करते हुए बलवान् एवं तेजस्वी श्रीहरि भीष्म की ओर बड़े वेग से दौड़े। सम्पूर्ण जगत के स्वामी, अमित तेजस्वी भगवान श्रीकृष्ण क्रोध से लाल आँखें करके भीष्म को मार डालने की इच्छा लेकर पैरों की धमक से वसुधा को विदीर्ण सी कर रहे थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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